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बोत्थरा.
(५३) करनेको अयोग्य है ? झावकों की ख्यांत में भी आपने झाबदेका एक पुत्रको राजके लिये धर्मसे वंचीत रख दीया । दर असल दादाजी का यह विचार न होगा परं डरपोक यतियोंका ढंचा है देखिये राजा उपलदे चंदगुप्त संप्रति श्रामराजा भाणराला विजयगजा गोशलभाटीराजा और कुमारपालादि संख्याबन्धराजा जैनधर्म पालता हुवा गज करते थे और राजके जरिये जैनधर्मकी कीतनी उनति करी ? वह जगद्विख्यात है. अब हमें यह पत्ता निकालना चाहिये कि यति जीने यह ढंचा कीस प्राधारपर खडा कीया है इतिहासद्वाग ज्ञात होता है की विक्रमकी १७ वी शताब्दीमें चितोडके राणा प्रतापके भाई जगमाल अोर सागर था वह दोनों कुलकलंक बादशाह अकबरसे जा मीले तब अकबग्ने हिन्दुओंको श्रापसमें लडानेको जगमालको तो सीरोहीका श्राधा गज और सागरको चित्तोडका राज अभिषेक कर दीया उसी समय सीरोहीमें सावंतसि देवडा हुवा था यतिजी को यह तो पूर्ण विश्वास है कि कलदारके किचडमें खुंचे हुवे श्रोसवालों को कुच्छ भी लिख देंगे तो निर्णयकरने जीतना श्रवकाश बोत्थरो को है नहीं दूसग इतिहासकी तरफ तनक भी रूची नहीं जबतक निर्णय न होगा तबतक बोत्थरा खरतरोंको ही गुरु मान. सेटी पीछोवडी हमको दीया करेगा। एक-दो पीढीमें क्रियाका कदाग्रह जील जावेगा तो फीर अज्ञानी लोक हटको कभी नहीं छोड़ेंगे । इस वास्ते सावंतसिंह देवडा और सागर शिशोदीयाको बाप बेठा बनाके ५०० वर्ष पहेले हुए दादाजीका नाम बोहित्थके साथ जोड दीया
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