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अठारा गोत्र.
( १३ ) उत्त० यह भी निर्मूल है न तो भिन्नमाल का राजा जैन 'हुवा न वहां मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई ओशीयों के साथ कोरंटनगर में प्रतिष्ठा हुई थी वह मन्दिर भी अभी तक मौजुद है देखिये.
उपकेशे च कोरंटे तुल्यं श्रीवीर बिंबयों ।
प्रतिष्ठा निर्मिताशक्त्या श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥ १॥ पूर्व-ओसवाल होनेका समय २२२ वर्षों की गनती में मोशीयों का मन्दिर बनने में १० वर्ष लागा लिखा है. ____ उत्त० २२२ वर्ष की गीनती भी मिथ्या है और ओशीयो का मन्दिर बनने में १० वर्ष लागा लिखा सो भी निर्मूल है कारण मन्दिर पहले से तैय्यार था पर नारायण के नाम से सम्पुरण नहीं होता था तब सूरिजीने महावीर का नाम से बनाने की सूचना करी बाद मन्दिर तय्यार हो गया वीरात् ७० वर्षे मगशर शुक्ल ५ मि गुरुवार ब्रह्मण मुहूर्त में आचार्य रत्नप्रभसूरिने प्रतिष्ठा करी.
पूर्व-वि. सं. १०८० पाटण का दुर्लभराजा की सभा में जिनेश्वरसूरि और चैत्यवासियों में चर्चा हुइ जिस्में राजा दुर्लभने जिनेश्वरसूरिजीको खरतर बिरुद दीया और चैत्यवासियोंकों कउलया ( कवला ) शब्द से तिरस्कार कीया इत्यादि.
उत्त० अव्वलतो १०८० में पाटण में दुर्लभराजा का 'राज ही नहीं था दूसरा १०८० जिनेश्वरसूरि जाबलीपुर (जालौर ) में हरिभद्रसूरि कृत अष्टकपर टीका लिख रहे थे
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