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वरडिया गौत्र. समालोचना-अव्वलतो दोनों यतियोंमे आचार्यका तथा समयका कीतना अन्तर है ? आगे एक यति कहता है कि धन तो था परं संतान नहीं था दूसरा लिखता धाराका राजवंस. है कि धनसंतान दोनों नहीं था फिर भी दोनों कहते है कि
उपेन्द्र (कृष्णाराज) (६२०) हमने प्राचीन इतिहाससे वैरासिंह ( प्रथम ) लिखा है तो हम कीसको सत्य
सीयल ( प्रथम ) समजे ? इतिहासकी तरफ देखते है तो दोनोंका लेख
वाक्यपति ( प्रथम ) निर्मूळ-मिथ्या है। कारण वैरीसिंह ( दूसरा ) वि. स. ६५४ मे न तो धारा
सीयक (दूसरा ) (१०२९) पर राजा भोजका राज था न धारा तुंवारोने छीनली थी वाक्यपति (दूसरा) (१०६१) न उस समय वरदिया जाति सिन्धुराजा हुई थी देखिये शिला
भोजराजा (१०९९) लेखोंद्वारा धाराके पँवारांकी वंसावलिः
जयासिंह ( १११२) वि. सं. ९५४ में धारापर उदयदित्य (९९४३) भोजका राज तो क्या परं
लक्षमण (११६१) भोजका जन्म ही नहीं था और भोजके पीछे तँवरोंका
नरवर्मा ( ११६४) राज भी धारापर नहीं हुवा | यशोवर्मा (११६२)
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