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कर्मचंद. था. या कोई अन्य कारण होगा। अगर सब गच्छोंके महात्मा अपने अपने गोत्रोंको छपाके प्रगट करे तो इसका निर्णय ठीक तौरपर हो सकता है। . जैसे अन्य गच्छों की पोसालें है वैसे खरतरगच्छकी भी बहुत पोसालें है पर वह एकाद पोसाल के सिवाय ओसवालों कि वंसावलियो नहीं लिखते है उनका कहना है कि बीकानेरमे कर्मचंद वछावतने हमारी वंसावलियां कुँवामे डाल दी थी वहांपर हमारे पूर्वजोंने आत्मघात करी और कर्मचंद वच्छावत तथा वछावतोंके कुल परिवार को बीकानेर राजाने मारडाला था मात्र एक वच्छावत कि सगर्भा ओरत ढाढी के घरमें छीपके अपना प्राण बचाया था उसकी ओलाद के वछावत हाल है उनका नाम ढाढी लिखा करते है ।
परं बीकानेर का इतिहाससे यह वात कल्पित पाइ जाती है बीकानेर इतिहास कहता है कि कर्मचंद वछावत बीकानेर का राजा रायसिंहजी का मंत्री था और बादशाह अकबर का कृपापात्र भी था. वि. स. १६५२ में कर्मचंदादि केइ लोगोने राजा रायसिंह के विरुद्ध में षट् यंत्र रच राजगादी राजकुमार दलपसिंह को देने की खटपट कर रहे थे वह खबर राजा रायासिंहको पडी. तब कर्मचंद बीकानेरसे भाग दिल्लि बादशाह अकबरके सरणमें चला गया. बाद वि. सं. १६६४ मे राजा रायसिंहजी दिल्लि गया उस समय कर्मचंद मृत्युकी शय्या पर सुता हुवा था अर्थात् सख्त बीमार था राजा रायसिंह कर्मचंदके पास गया सुखसाता पुच्छ शोक प्रगट
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