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पीपाडा. गो. कां.
(६३) मिथ्या है क्या यतिजीने स्वप्ना की तो वात नहीं लिख मारी है ? गुजरात का इतिहास कहता है कि वि. सं ११४६ मे सिद्धराज जयसिंह पाटण की गादीपर गजा हुवा पञ्चास वर्ष राज्य कर ११६६ में स्वर्गवास हुआ । इस राजा के पुत्र न होने से राजाने अपनी मोजुदगीमें चाहड को दत्त लीया था पर राजा का देहान्त होने के बाद सामन्तो--मंत्रियोमें दो मत्त हो गया । एक पक्षवालों का कहना था कि राजगादी चाहड को दी जावे तब दूसरा पक्षवालों का आग्रह था कि त्रीभुवनपाल के तीन पुत्रों से कुमारपाल को राज दीया जावे अाखिर सर्व सम्मति से राजतिलक कुमारपाल को कीया गया । अगर यतियों के लिखा माफीक राजा को पुत्र होता तो यह घटना क्यों बनती ? दर असल ढढ्ढों कहते है कि हमारा तपागच्छ है वंसावलियों नाणावलगच्छवाला लिखते है ढहोकों चाहिये कि वह अपना खुर्शी नामा तैय्यार करें। ' (३२) पीपार
इस जाति के बारेमे वा० लि० पीपाड़ नगर का गेहलोत राजा कर्मचन्द को वि. स १०७५ में वर्धमानसूरिने जैन बनाके पीपाडा जाति स्यापन करी.
समालोचना--पीपाड खुद ही विक्रम की बारहवी शताब्दीमे पीपाडोंने वसाया था. १०७२में पीपाड ही नहीं था तो कीस कर्मचंद को जैन बनाया दर असल पीपाडा जाति नागपुरीया तपागच्छोपासक है खराडी बलुदा के तपगच्छीपोसालवाला सरूसे वंसावलियो लिखते हैं। पीपाडोंमें हीराणादि चार गोत्र और भी मीलते हैं।
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