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________________ प्रस्तावना. (९) यतियोंकी समज गलत है दरअसल दादाजी एसे गृहस्थ कार्य करनेवाले नहीं थे उन महात्माओंने जो कुच्छ कीया वह अपनी प्रात्मशक्ति और सदुपदेशद्वारा ही कीया था यतियोंने एक पापी पेटके लीय पूर्वाचार्यों पर अपनी प्रवृत्तिका आक्षेप कीया हैं उसीका प्रतिषेध इस समालोचनामें कीया गया है वह भी सप्रमाण न कि यतियों के माफीक कपोलकल्पित । . अन्तमें यह निवेदन है कि मेने यह समालोचना कीसीके खंडनमंडनकी नियतसे नही लिखी है मेरा हेतु सत्यासत्यका निर्णयकाही है दूसरा मेरा हेतु यह है कि इन जातियोंका निर्णय होजानापर जो में " जैनजाति महोदय" कीताब लिख रहा हूं उसका भी मार्ग निष्कण्टक हो जायगा वास्ते हरेक निर्णयार्थी भाई इसे अपनदृष्टि से पढे अगर इसमें कीसी प्रकारकी त्रुटी रही हो तो सज्जनताके साथ हमे सूचीतकरे ताकि द्वितीयावृत्तिमें सुधाग करवा दीया जाय इत्यलम. इससमालोचना के अन्दर प्रमाणमें दीये हुवे ग्रन्थोंकी सूची(१) गजपुताना का इतिहास | कर्ता-रायबाहादुर पण्डित गौरीशंकरजी (२) सीरोहीराज का इतिहास ) मोका. (३) सिंधका इतिहास ) (४) यवनराजों का " कर्ता-मुन्शी देविप्रसादजी. (५) राजपुतानाकी सोधखोल) (६) भारत के प्राचीन राजवंस भाग १-२-३ कर्ता--साहित्याचार्य विश्वेश्वर नाथ रेउ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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