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बांठिया गौत्र. रोग हुवा था वि० सं० ११६७ मे जिनवल्लभसूरिने चिकत्सा कर जैन बनाया. लालसिंहका वडा पुत्र बांठा था जिसका बांटीया ब्रह्मदेवके ब्रह्मचा लालाके लालाणी हरखाके हरखावत उदयसिंहको भरूचके नबाबने शाह पति दी ++ चीमनवांठीया वि० सं० १५०० हमायू बादशाहाकी फोजमें लेनदेन करता था मुशलमानोके सोनाका वरतन पीतलके भाव ले लेनेसे बहुत धनाढ्य हुवा संघ निकलके अकबरी मोहरकी लेण दी इत्यादि
समालोचना-अव्वलतो विक्रम कि बारहवीशताब्दीमें रणथंभोर पर पँवारोका राज होना कीसी इतिहाससे सिद्ध नहीं होता है किन्तु रणथंभौर चौहानोंका राज सिलालेखोंसे सिद्ध है दूसरा वि० सं० १५०० में हमायूका राज तो क्या पर जन्म भी नहीं था वि. सं. १५८७ में हमायू दिल्लिका बादशाह था आगे चीमनबांठीयाके बारामें जैन एसे धोखाबाज न थे की सोनाका वरतन पीतलके भाव में ले ले ! क्या मुसलमान एसे मूर्ख थे की चीमनवाडीयाको सो. नाका वरतन पतिलके भावमें दे देते थे? क्या यतिजी ! वह वरतन रात्रिमें देते थे या दिनमें? यतिजीने राजा लालसिंहके पुत्रोसे वांठीया ब्रह्मेचा लालाणी शाहा हरखावत जातियो होनी लिखी है जब तपागच्छीय कुलगुरुओंकी वंसावलिमें लिखाहै कि श्राबुके पास प्रामा ग्रामके पँवार राजा मधुदेवको वि. सं. नागपुरिया तपागच्छाचार्य भावदेवसूरिने प्रतिबोध दे जैन बनाया बाद वि. सं. १३४० में कवाड जाति १४९९ में बांठीया १६३१ शाहा हरखावत जातिनिकली पाठकवर्ग यतिजीका समय ओर इन जातियोंका समयका मालान करे कि कतिना अन्तर है अजमेर वाले धनरूपमलजी शाहाके पास खुर्शी नाम तैय्यार है बाठीयादि का गच्छ तपा है
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