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________________ चौहान | सांभर | ककसूरि १.७१ पँवार धारानगरी सिद्धसूरि १०७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कांकरेचादि . रावआभड कोणेजादि | रावछाहड ,, | वागमारादि - सूर्यमल पीच्छोलिया | पीपलादि । वासुदेव । बौहान | तुंडग्रामे | गौड ब्राह्मण | पाल्हणपुर | देवगुप्तसूरि । १२.४ हथुडिया ,, | छपनयादि । राउ अभय० । राठोड हथुडि ११४१ भंडोवरा ,, | रत्नपुरादिः । देवराज पडिहार भंडोर . सिद्धसूरि ९३५ वीतरागादि मलवराव राठोड खेडयामें - " " ९४९ १८ | मुंदेचा, गोगलीयादि | राव लाधो पडिहार पावागढ़ देवसूरि १०२६ www.umaragyanbhandar.com ... उपकेश गच्छाचार्योमें पहला पाचवे पाट बाद तीसरे पाट वहका वह नाम आया करते है जैसे देवगुप्तसूरि सिद्धमरि ककसरि. उपकेशगच्छ द्विवन्दनिकगच्छ और खजवाणा कि साखा एवं तीनों पटावालियोमें कक्कसूरि, देवगुप्तसरि, सिद्धसरि नाम वारवार आया करते है वास्ते कीतने ही स्थान पर समय निर्णय करनेमें लोक चक्रमें पड जाते है और भाटों कि वंसावलियों में तो संवत् सालमें इतनी गडबड है कि वह सत्यसे सेकडों हाथ दूर रहेती है विशेष खुलासाके लिये लेखकसे दरियाफत करो या " जैन जाति महोदय " कीताब देखो । (८१)
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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