Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सर्वज्ञाय नमः श्री दंडकादिक द्वार संग्रह. पंडित शिरोमणि श्री गजसार मुनि विगरे विरचित प्राचीन महापुरुषोना बनावेला ग्रन्थोना आधार घणा विस्तार पूर्वक (४१) द्वारे करीने सहित. गुरुणीजी श्री सोनाग्यश्रीजी महाराजना सदुपदेशथी मळेल द्रव्य सहाय वडे छपावनार तथा प्रसिद्ध करनार खंभात निवासी शा. उमेदचंद रायचंद, श्री जैन ज्ञान वर्धक शाळाना धर्म शिक्षक मास्तर. ठे. पांजरापोळ. मु. अमदावाद. संवत १९७३. वीर संवत २४४३. सने १९१७. किंमत. रु. ०-५-२ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Chetroketrorkikokhikariskapoorks श्री सर्वज्ञाय नमः पंडित शिरोमणि श्री गजसार मुनि विगेरे विरचित श्री दंडकादिक द्वार संग्रह प्राचीन महापुरुषोना बनावेला ग्रन्थोना आधारे घणा है विस्तार पूर्वक (४१) द्वारे करीने सहित. तपगच्छना पूज्यपाद गुरुणीजी श्री श्री १०८ वीजकोर श्रीजीमहाराजश्रीना सुविहित शिष्या गुरुणीजी श्री देवश्रीजी तेमना शिष्या गुरुणीजी श्री सोनाग्यश्रीजी महाराजना सदुपदेशथी मळेल द्रव्य सहाय वडे छपावनार तथा प्रसिद्ध करनार खंभात निवासी शा. उमेदचंद रायचंद, श्री जैन ज्ञान वर्धक शाळाना धर्म शिक्षक मास्तर. ठे. पांजरा पोळ. मु. अमदावाद. संवत १९७३. वीर संवत २४४३., सने १९१७. आवृत्ति १ ली. * प्रत १५००. शान्तिविजय प्रिन्टिंग प्रेसमां ईश्वरलाल केशवलाल वकील अने माणेकलाल माधवजीए छाप्यु. ढींकवा चोकी-अमदावाद. किंमत. रु. ०-५-० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना सुज्ञ जैन बन्धुओ अने व्हेनो. ___आपने सुविदितज छे के आवा हमेश-भगवा वांचा विचारवा जेवा लघु पुस्तकनी प्रस्तावनानी अति आवश्यक्ता होइ शके नहि, छतां आ पुस्तक शा हेतुथी बाहार पाडवामां आव्यु, तेम कोना स. दुपदेशथी विगेरे सहज हकीकत बहार मुकवी उचित धारी छे. घणा आन्दनी वात छे के हिंदुस्तानना घणा शहेरो अने गामो मां ज्यां ज्यां आपणा पवित्र पूज्यपाद उत्तम चारित्र रत्नी विभूषित गुरुणीजी महाराजाओ विचरी रह्या छे त्यां त्यां आधुनिक समयमां जैन स्त्रीवर्गमां तेम बालिकाओमां खास परमपवित्र वितराग परमात्माना अविच्छिन्न प्रभावशाली धर्म क्रियामां तेम ते परमात्मा ना अलौकिक ग्रन्थोने पठनपाठन फरवाना उद्यम माटे पूरतो उत्साह दाखल करलो दष्टिगोचर थाय छे, दरेक स्त्रीयो अने बालिकाओ पोतानुं दुर्लभ्य मानुष्य जीवन जो वितराग परमात्माना धर्म सेवनथी तेमज पठनपाठनथी पावन करे तो ते शिवाय आनि सार दुनीयामां आत्म कल्याणनो बादशाही मार्ग बीजो कयो छे ? मतलब के तेज छे आ उत्साहने पूरो पाडवा माटे अने कर्मानुसार चारे गतिना चोवीसे दंडकमां परिभ्रमणा करवारुप दंडकादि द्वारना . पुस्तको प्रसिद्ध थयेला द्रष्टिगोचर थाय छे छतां पण आवा विस्तार पूर्वक प्रसिद्ध थयेल नहीं होवाथी अने तेनी घणी जरुर समजी तेवा प्राचीन हस्तलिखित ४१. द्वारवाली प्रत " परम उपगारी साध्वीजी Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री देवश्रीजीगुरुणीजी महाराजना सुविहित शिष्या साध्वीजी महाराज सौन्नाग्य श्रीजी" के जेओ हिंदुस्तानना घणा भागमा विचरी घणी श्रावकाओ तेम बालिकाओ उपर उत्तम उपगार करी पोताना दीव्यचारित्रमय जीवनने शोभावी रह्या छे तेमने मली आवी जे प्रत वांची तेओ साहेबनो एवो विचार थयो के आवा विस्तारवाली एक बुक बाहार पडी नथी. अने आ बुक घणी उपयोगी थइ पडशे तेथी तेओ साहेवे मने ते प्रत उपरथी शुद्ध लखावी सुधारी-छपाववानी भलामण करी तेथी में ते प्रत अत्रे एक जाणीता प्रवीण “मास्तर--जगजीवनदास पानाचंद" पासे लखावी-तेमां प्राचीन पुस्तको कर्मग्रंथ अने मोटीसंग्रहणी विगेरे नो आधार लइ बनता प्रयासे जेम पुस्तक-शुद्ध अने सारुं थाय तेम प्रयत्न करवामां आवेलो छ वली--ज्यां ज्यां टुंकामां समजी शकाय तेम न होय त्या त्यां घणा विस्तारपूर्वकते ते ध्वा रोनुं वर्णन करवामां आवेलुं छे. आ पुस्तकनी पहेलां परम उपगारी, . गुरुणीजी महाराज श्री सौभाग्य श्रीजीना उपदेशथी. ... श्रीमान् जम्बूगुरु विरचित जिनशतक नामनो संस्कृत ग्रंथ-तेमज जैन प्राचीन स्तवनादि संग्रह ए वे पुस्तको बहार पडी चुकेला छे अने ते जैन प्रजामां घणा लोकपीय थइ पडेला छे. जैन प्राचीन स्तवनादि संग्रह अत्रेज खंभात श्रावीकाशान तरफथी प्रसीद्ध करेलो हतो ते पुस्तकमां जेजे सदगृहस्थो तथा व्हेनोए मदद करेली ते खचमां जतां तेमां खुटतुं हवं. ते खुको घणीखरी तो परमपूज्य साधुसाध्वीजी महाराज साहेबोने भेट आपवामां आवेली छे अने थोडी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ घणी तेनी मूल कीमते वेचाण करेली छे तेमा जे खर्चमां खुटता रुपैया पुरा करी जे वद्ये ते आ दंडकादि द्वार संग्रह नामना पुस्तक मां वापरवा पूज्यपाद गुरुणीजी महाराजे परवानगी आपेली छे कारणके आ पुस्तकमां बीलकुल नहींज जेवी अल्प मदद मळेली छे तो पण आ पुस्तक पुज्यश्रीए योग्य साधुसाध्वीजी महाराजाने भेट आपवा मुकरर करेलुं छे अने श्रावक श्रावीकाओने जेमने आ पुस्तकनी जरुर होय तेमने प्रसिद्ध कर्तानी पांसेथी. योग्य कीमते मली शकशे. जेवी रीते उक्त गुरुणीजी महाराज तरफथी उपरना छपावेला बे पुस्तको लोकपीय थइ पडया तेम आ त्रीजुं पण अती उपयोगी पुस्तक लोकप्रीय थइ पडशे तेम अमारु सहज मानवु छे कारण के घणा विस्तारवाळा जाणवा लायक विषयोथी भरपूर छे. वली आ पुस्तकनी आवकनो कोइने अंगत लाभ पण नथी तेनी जे कीमत वेचाणथी उपजशे ते ते पुस्तकना खर्चमा जतांबाकी वधशे ते तेवाज पुस्तको उद्धार अगर ज्ञान खातामांज जवानी छे. जेथी आ पुस्तक खरीदनारने ज्ञान दान अने ज्ञाननुं प्राप्त थर्बु एम बेवडो लाभज छे. ___आ पुस्तक छपाववानो उपदेश करनार पूज्यपाद गुरुणीजी महाराज श्री देव श्रीजीना मुविहित शिष्या साध्वीजी श्रीश्री १००८ वार सौभाग्य श्रीजीमहाराजनो खरा अतःकरणथी आभार मानवामां आवे छे के जे माहा उपगारी गुरुणीजी माहाराज तरफथी उपर बतावेला उत्तम अने लोकप्रीय बे पुस्तको तो बाहार पडी आ जीर्जु पुस्तक पण तेमनाज उपदेश अने प्रेरणानुं फल छे.. अ पुस्तक प्रसिद्ध करवामां जे जे दाना गृहस्थो तथा नोए Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ मदद करी छे तेमना मुबारक नाम अहीं नीचे सविस्तर जोडवा साये मनो पण खरा अंतःकरणथी आभार मानवामां आवे छे. प्रसिद्ध कर्तानी नम्र विनंती. आ पुस्तक प्रसिद्ध करवा माटे -- पुज्यपाद गुरुणीजी महाराजश्री सौभाग्यश्रीजीए मने भलामण करेली, तेथी तेमनो अन्तःकरणथी उपकार मानुछं. परंतु वास्तविकरीते आवा ग्रन्योने प्रकाशमां मुकवां ते जो के लाभ रूप छे, पण तेमां अशुद्धि अने शास्त्रकारनी आज्ञाथी विरूद्ध थाय ते विगेरे घणुं जोखमरुप होइ तेवुं भवभीति पणुं स्वीकारी' 'शुभे यथाशक्ति यतनीयम् "ए न्यायथी, मारी अल्पशक्ति मुजब जनसमूहने उपकारी अने लोकप्रिय थाय तेम करना आ पुस्तकमां संपूर्ण प्रयत्न करेलो छे छत पण आ प्रसिद्ध थयेला पुस्तकमां दृष्टि दोषथी या यंत्र ( छापाकलाना) दोषयी शास्त्र विरुद्ध या अशुद्ध छपायुं होय ते बाबते सुज्ञ भाइयो व्हेनोनी क्षमा चाहुं हुं भने सुधारी वांचवा भलामण करुं हुं वली -छपाया पछी-तपास करतां जे जे कंइ भुलो जणाइ छे तेनुं शुद्धिपत्रक पण आ पुस्तकना छेडे जोडेलुं छे तो ते प्रमाणे प्रथमयी सुधारीनेज वांचवा भणवा विशेषे भलामण करी अत्रे विरमुं. संवत १९७३ नां चैत्र सुद १५ ली. प्रसिद्ध कर्ता. मास्तर, उमेदचंद रायचंद. मुं. अमदावाद टा. पांजरापोळ. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ पुस्तक प्रसिद्ध करवामां जे जे गृहस्थो तथा ब्हेनोए मदद करेली छे तेनां मुबारक नामो नीचे मुजब छे. २५-०-० चोकशी अमरचंद मुलचंदनी पत्नि सोभाग्यवंती बाइ समरत मुं. खंभातं बंदर.. २५-०-० अमरचंद कानजीनी विध्वा बाइ दीवाळीबाइ मुं.मांगरोळ. १०-०-० कालीदास उमेदचंद मुं. अमदावाद. ५-०-० मफाभाइ चुनीलाल डागवाला मुं. अमदावाद. ५-०-० हीरालाल चुनीलालनी विध्वा बाइ जामुद मुं.अमदावाद कुल ७०-०-० सूचना. पुस्तकने जेम तेम ज्यां त्यां रखडतुं मूकी आशातना करवी नहि. तेमज अशुद्ध हाथे पुस्तकने अडकवू नहि. उघाडे मुखे पुस्तक वांच_ नहि. मंगल, जैनो धर्मः प्रकटविभवः संगतिः साधुलोके, विद्वद्गोष्ठी वचनपटुता कौशलं सत्क्रियासु । साध्वी लक्ष्मीश्वरणकमलोपासना सद्गुरूणां, शुद्धं शीलं मतिरमलिना प्राप्यते नाल्पपुण्यैः ॥१॥ . सार-प्रगट प्रभाववालो जैनधर्म, संत-सुसाधु जनोनी संगति, ज्ञानी पुरुषो साथे गोष्टी, वाक्चतुराइ, शुभकरणीमां कुशलता, न्यायोपार्जित लक्ष्मी, सद्गुरुना चरणकमलनी उपासना, निर्मलशील अने शुद्धमति, एटलां वानां प्रबल पुण्ययोगेज प्राप्त थइ शके छे. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ विषयानुक्रमणिका. .. . - अनुक्रम नाम पृष्ट द्वार चोवीस दंडके कहेवाना एकतालीश बोलना नामनी गाथा. १ १ दंडकं द्वार.. २-१३ २ भुवन द्वार. १३-४७ ३ शरीर द्वार. ४८-५१ ४ अवगाहना द्वार. ५१-६२ ५ लेझ्या द्वार. ६२-७४ ६ इंद्रिय द्वार. .... ७५-७७ ७ समुद्घात द्वार. ७८-८२ ८ संघयण द्वार. ८२-८६ ९ संस्थान द्वार. ८७-९० १० प्राण द्वार. ९०-९२ ११ पर्याप्ति द्वार. ९२-९५ १२. योनी द्वार.. ९५-९७ १३ कुलकोटी द्वार. ९७-९८ १४ ज्ञान द्वार. ९९-१०० १५ अज्ञान द्वार. १०१ १६ दर्शन द्वार.. १०१-१०३ १७ दृष्टि दार.. १०३-१०४ १८ योग द्वार.. १०४-१०८ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ उपयोग द्वार. ... १०९-११० २० गुणस्थानक द्वार. ... १११-१२३ २१ आहार द्वार. ... १२३-१२५ २२ आहारनी इच्छा द्वार. १२५-१२६ २३. कीमाहार द्वार. १२७-१२८ २४ जीव भेद द्वार. ... १२८-१३२ २५ वेद द्वार. १३३-१३७ २६ कषाय द्वार. १३७-१३९ २७ संज्ञा द्वार. १३९-१४२ २८. स्वकाय स्थिति द्वार........ १४२-१४४ २९ विरह काल द्वार. ... . १४५-१४८ ३०-३१. चवननुं तथा उपजवान संख्या द्वार. ... १४८-१५० ३२ मति द्वार.. १५०-१५७ ३३ आगति द्वार. १५७-१६३ ३४. संपदा द्वार. १६३-१६९ ३५ देव द्वार.. १६९-१७१ ३६ संजति द्वार. १७१-१८१ ३७ जराउध्वार.. १८१-१८२ ३८ परिग्रह द्वार.. ३९ अल्प बहुत्वद्वार. १८२-१८९ ४० संत्री द्वार. १८९-१९१ ४१ प्रकीर्ण द्वार... १९१-१९८ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सर्वज्ञाय नमः अथ श्री दंडकादिक द्वार लख्यते. me ॥ गाथा ॥ दंमग जुवण शरीरं, जंगादणा बेस्सेंदिच्य समुब्धाया. संघयण संघाण पाणा, पज्जति योनी कुलकोमी. ॥१॥ नाणान्नाणं दंसण, दिधि जोगोवलंग गुण गणाप्राहारं शहाहारे, किमाहाराऊ जी नेया ॥ २ ॥ वे कसाय सन्ना, य कार्यविश विरहकाळन चैव: चवणोववाय संख्खा, गइ याग संपया देव ॥३॥ संज्या जरा परि-ग्गढ़ व्यप्प बहु सन्निय इच्चाई. दाराई झ्ग चत्ता, सरणेध्यं संग्गदे इथं ॥ ४ ॥ १ रुक- २ भुवन ३ शरीर ४ अवगाहना ५ लेश्या Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) ६ इंद्रिय ७ समुद्घात ८ संघयण ए संस्थान १० प्राण ११ पर्याप्ति १२ योनी १३ कुळ कोमी १४ ज्ञान १५ अज्ञान १६ दर्शन १७ द्रष्टि १० जोग १७ उपयोग २० गुणगणा २१ आहार २२ आहारनी इछा २३ किमादार २४ जीवभेद १५ वेद २६ कषाय 29 संज्ञा २० स्वकाय स्थिति २५ विरकाळ ३० चत्रन संख्या ३१ उपजवानी संख्या ३२ गति ३३ प्रगति ३४ संपदा ३५ देवद्वार ३६ संजति ३७ जराऊ ३८ परिग्रह ३० अल्प बहुल ४० संझी ने वळी ४१ प्रकीर्ण विगेरे एकतालीस द्वारोना संज्ञारवाना अर्थे संग्रह करीएबीए. Err पदक द्वार प्रारंनः दंमयते जीवा यस्मिन स दंमकः - जीवो जेने विषे काय बे तेने दंक कहीए. ए दमक चोवीश बे के जेमां सर्व संसारी जीवो परिभ्रमण करे बे. ते दंगक ना नाम तथा वाख्या निचे प्रमाणे. प्रथम नारकीनो एक दंक:- नारकी एटले - शुभ कर्मोदयवंत जीवोनुं वसवुं बे जेमां एवं जे स्था Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नक ते नारकी कहीए, ते नारकी पृथ्वीना नेदे करीने सात जे तेना नाम. १ घमा ५ वसा ३ सेला ४ अंजणा ५ रिहा ६ मघा ७ माधवति. दश जुवनपतिना दश दंगकः-जुवन पति-अधो लोकमा रहेला जे शास्वता जुवन-घर-तेना पतिधणी-ते जुवनपति, तेना दशनेद, तेनानाम, असुर कुमारनिकाय, नागकुमारनिकाय, सुवर्णकुमारनिकाय, विद्युतकुमारनिकाय, अग्निकुमार निकाय, छीपकुमारनिकाय, उदधिकुमारनिकाय, दिशीकुमारनिकाय, वायुकुमारनिकाय, अने स्तनितकुमारनिकाय एवं अगियार दंगक. पृथ्वीकायनो एक दमकः-तेना मूळ बे नेद सूदम ने बादर, तेमां सुक्ष्म एटले अतिशे कोणा चढुथी नहि देखाय एवा सुमनाम कर्मोदयवंत जीवो, के जे आचौदराजलोकमां सर्व ठेकाणे नयी ने कोश्थी बेदाय नेदाय नहि पर्वतादिमांथी पर्ण आरपार जाय आवे अग्निथी बळे नहि कोश्ना उप. योगमा न आवे एवा अने निरतीशायी जीको तेसु. . . Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) हम कहेवाय. बादर एदले स्थुल शरीरवाळा चक्षुथी देखी शकाय एवा बादर नाम कर्मोदय वंत, नीयत स्थानवर्ती अने बीजाथी द नेद थाय एवा जीवो बादर कहेवाय, ते बादर पृथ्वीकायना शुरू, वायुका, मणसिल, शर्करा, सुंहाळी, अने खरपृथ्वी ए मूल बे. तथा बीजा स्फटिक रत्न, मणिरत्न, परवाला हिंगळोक, हमताळ, पारो, सोनु, रु', तांबु, जसत, शिशु, कथीर, अबरख, खमी, रमची, तूरी माटी, खारी माटी, सुरमो, सिंधव, संचळ, तथा पाषाणनी सर्व जाती अने मी विगेरे घणानेद बादर पृथ्वी, कायना ने.॥ एवं बार दंमक ॥ थपकाय--पाणीना जीवो-तेनो एक दंमक, तेना मूळ बेनेद एक सुक्ष्म अने बीजो बादर तेमा सुक्ष्म ते पुर्वोक्त रीते जाणवा अने बादर ते नूमीनू पाणी,' आकाशनुपाणी, काकळy, करानु, ही. मनु, लालाघासउपरनुं धुंवरीनूतथा घनोदधि अने १ कुवा अने वावडी वगेरेनुं पाणी. २ नदी तलाव अने सरोवरनुं पाणी. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तनोदधि विगेरेना पाणी ते सर्व बादर अपकायना नेदो जाणवां, ॥ एवं तेर दंमक ॥ तेऊकाय श्रमिना जीवोनो एक दमक. तेना सुदमने बादर एवा बे नेद , सुक्ष्म ते पूर्वोक्त रीते जाणवा ने बादर ते अंगारानोअग्नि ज्वालानो अ. ग्नि, नरसामयनो अग्नि, उक्कापातनो अग्नि, कणीबानो अग्नि, असनी(घसारार्थी अग्नि उत्पन थाय डे ते जेवा के लो? चकमक अरणी वगेरे घसवाथी अग्नि पेदा थाय ते),अने विजळी विगेरे बादर अग्नि कायना नेदो . ॥ एवं चौद ॥ वाऊकाय-चायराना जीवोनो एक दंडक. ते वायु कायना सुदमने बादर एवा बे नेद . तेमा सुदम ते पूर्वोक्त रीते जाणवा अने बादरते उद्घामक(उंचे चमतो) वायु, उत्कलिक (निचे पमतो) वायु मंकळीक (वंटोळी) वायु, महा (मोटो-जे आंधी कहेवाय ते) वायु, शुइ(सुखकारी कीणो) वायु, एंज ( घुघुवाट करतो ) वायु, धनवायु अने तन Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायु वगेरे बादर वायु कायना घणा नेदो . तेनो एक दंमक ॥ एवं पंदर ॥ . वनस्पतिकाय-काड पालाना जीवोनो एक दंमक ते वनस्पतिकायना, साधारण अने प्रत्येक एवा बे नेद ले, तेमा साधारणएटले अनंताजीवोनुं एक शरीर होय, ते साधारणवनस्पतिकाय, तेना बे नेद, एक सुक्ष्मने बीजो बादर, सुदन वनस्पतिकाय ते पूर्वोक्त सुक्ष्म जीवोना जेवा जाणवा, अने बादर साधारण वनस्पतिकायने जेना सांधा नसो गांग वगेरे प्रमट न देखाताहोय लांगवाथी सरखा नाग थता होय, तांतणा(रेशां ) विनाना होय अने बेदीने वाववाथी पण उगे एवी सर्व वनस्पति जेवी के सर्व जातना कुंणाफळ, कंद, अंकुरा, कुंपळो, पांचवर्णनी लील फूल, बिलामीना टोप, लीबुं श्राऊ, लीली हळदर, लीलो कचुरो, मोथ, थेग, थोर, गळो, थने सण वगेरेना पांदमा तथा कुंवारनुं पातु वगेरे बादर सा. धारण वनस्पतिकायना घणानेदोजाणवा. प्रत्येक बनस्पतिकाय ते एक शरीरने वीषे एक जीव होय ते Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येकवनस्पतिकाय, तेना फळ, फुल, बगल, काष्ट, मूळीथा, पांदमा अने बीज ए सर्व प्रत्येक वनस्पति काय जाणवा ॥ एवं १६ दंझक ॥ ___विगडिय-पांच इंडीयी उनी जे इंशी जेने एवा त्रसजीवो ते विगलेंज्यि कहेवाय, तेना बेईजीय, तेइंडीय, अने चौरीडीय, एम एय दंगक बे, तेमा बेइंडीय ते स्पर्श (चाममी) इंडी, अने रश (जीन) इंडी ए बे इंडीय वालाजीव जेवा के शंख, कोमा, गंगोळा, जलो, चंदनक, अलशिया,लाळीयां जीवो, मेर (लाकमामां थता जीवो) करमीआ, पोरा, अने चुमेल विगेरे बेखीय जीव जाणवा तेनो एक दमक, तथा स्पर्श-रस अने घ्राण (नाक) ए त्रय इंडीवाला जीवो जेवा के कानखजुरा, माकण, जुश्रा, जुन, लिंखो, कीमी, उद्धेहिउँ, मंकोमा, श्यळो, धीमेलो, सवा (वाळना मूळमां पाय ) गीगोमा (हुतराना कान उपर थाय ने ते) ईतरमी, महीया, चोरकीमा, गणना कीमा धान्यना कीमा (धनेरा) कुंथुश्रा, अने मोपासीक वगेरे पक्षी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 6 ) जातना तेइंद्रियजीवो जाणवा, तेनो एक दमक, स्पर्श-रस-प्राण ने चक्कु (आंखो ) ए चार इंद्रीयवाळा जीवो जेवा के विंबी, जमरा, नमरीज, तीमो, मांखी, मांस, मछर, कसारी, करोळीयां, खकमांकडी अने पतंगीच्या विगेरे घणीजातना चौद्रीय जीव बे तेनो एक दंक ॥ एवं १० दमक थया ॥ तिर्यच पंचेंद्रिय - तियैच-तीर्डा (वांका) चाले, अथवा स्वकर्मोदयी सर्व दंरुके परिभ्रमण करे एवा पंचेद्रिय स्पर्श, रस घ्राण चक्षु धने श्रोत ( कान ) ए पांचेइंद्रियवाळा जीवो ते तिच पंचेद्रिय कदेवाय तेना मूळ पांच भेद बे. ते या प्रमाणे मांडला-काचबा, फुंक ने सुसुमार विगेरे जलचर, १ गाय, श, घोगा, हाथी वगेरे चोपगा, २ नोळीच्या, उंदर, खिसकोली वगेरे जुज परी सर्प, ३ सर्प, अजगर वगेरे जर परि सर्प, ४, चकली कागमा कावर पोपट मोर वगेरे स्वांटान्री पांखवाळा अने चामाचीमीयां वगेरे चाममानी पांखवाळा तथा संकोचेली अने वीस्तारेली पांखोवाळा ते सर्व खेचर ५ कद्देवाय. उपर क Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेला जलचर, चोपगा, जुजपरि सर्प, उरपरिसर्प अने खेचर ए पांचे जातना तियेच पप्रिय वळीसमुर्गम अने गर्नज एम बे प्रकारना छे. तेथी पांच ने पांच दश नेद तियेच पचेंडियना थया तेनो एक दंगक ॥ एवं वीस ॥ ____ मनुष्य-मनुथकी उत्पन्न थयेला ते मनुष्य कहीए था मनुष्य शब्द राज्यादिशब्दनी पेठे जाणवो तेना मुख्य चार नेद ने कर्म नूमिज अकर्म नूमिज अंतरछीपना अने समुमम. . कर्मचूमि-असि (शस्त्र) मसि (मेस) कृषि(खेती) नो व्यवहार जेमां बे एवा क्षेत्रो, ते ५ जरत, ५औरवृत्त ५ महाविदेह ए पन्नर कर्म भूमि डे. अकर्मचूमि-असि मसि अने कृषिनो व्यवहार जेमा नथी एवा क्षेत्रो ते ५ हैमवंत ५ औरण्यवृत्त ५ हरिवर्ष ५ रम्यक ५ देवकुरु ५ उत्तरकुरु एम अकर्म नूमि त्रीस . अंतरहीप-या जंबुद्धीपमा मेरुथी दक्षिण दिशाए नरत क्षेत्रना बेमे १०० जोजन ऊंचो १०५५ जो. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन १५ कला पहोळो अने श्वए जोजन नाथाशरे लांबो पीळा सोनामय पूर्व पश्चिम लवण समुन पर्यंत चुल्ल हेमवंत नामनो पर्वत ने. तेना बन्ने बेमा ने विषे लवण समुष्मा HD जोजनथी कांइक श्रधिक लांबी एवी बब्बे दाढा विदिशीने विषे नीकळी डे. ते चारे दाढा उपर सात सात अंतरछीपडे ते अंतरहीप माहेला पहेला चार अंतर बीप जगती. थी ३०० जोजन पूर, ३०० जोजनना विस्तारवाळा , तथा जगतीथी ४०० जोजन पूर, ४०० जोजनना विस्तारवाळु बीजं अंतरछीपनुं चतुष्क डे, एम सर्वने विषे १०० जोजननी वृद्धि करतां सातमुं अंतरछीपर्नु चतुष्क ए. जोजन पूर,ए०० जोजनना विस्तारवाळू जे एम २७ अंतरछीपो थया, तेमजवळी मेरु पर्वतथी उत्तर दिशाए औरवृत्त क्षेत्रने मे हेमवंत सपश्य शिखरी पर्वत ने तेने पण पूर्वोक्त प्रकारे चार दाढा डे तेमां पूर्वोक्त रीते सात सात अंतरछीपो ने तेथी ते २७ अंतरछीपो भने प्रथमना हेमवंतपर्वतना १७ अंतरछीपो मळी ५६ अंतरछीपो भया. तेमा युग Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ळिया (जोम्ला) वसे बे. उपर कहेला कर्मचूमि अकर्म चूमि अने अंतरछीपना मनुष्योना बळी गर्नज श्रने समुर्गम एवा बब्बे नेद . गर्नज ते गर्नमा उत्तपन्न थायडे, अने समुमम ते मनुष्यना (विष्टा) मळमूत्र, बरखा, नाकनोमेल, वमन, पित्त, परु, लोही, वीर्य, शुक्रना सु. कायेला पुद्गल, ममदां, स्त्रीपुरुषना संयोग, नगरनी खाळ, अने सर्व अशुचि उगंध मय स्थानोने, विषे उत्पन्न थाय . ॥ एवं १ दंगक ॥ ___ व्यंतर-विविध प्रकारचें अंतर ते व्यंतर कहिये, व्यंतरादिक आश्रय पणाए करीने जे जेने एटले व्यंतर, वनांतर अने शैलांतरोमां वसे , ए स्पष्ट रीते सर्व विज्ञात . ते व्यंतरो सोळ प्रकारना , तेमां पिशाच,जूत,यक्ष,राक्षस,किन्नर,किंपुरुष,महोरग, थने गंधर्व, ए आठ प्रकारनां व्यंतर ३ तथा अणपन्नि, प्रणपन्नि, एसीवादी, नूतवादी, कंदीत, महाकंदीत, कोहंम, अने पतंग, ए थाउ प्रकारनां वाणव्यंतरो छे ॥ एवं १२ दंगकः ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) ज्योतिषि - ज्योतिष्य प्रकाशवाळा जे देव ते ज्योतिषि कहीए. ते चंद्र सूर्य ग्रह नक्षत्र अने तारा ए पांच प्रकारनां बे. तेमां श्रीद्वीप मांदेला पांच चर ने द्वीप बाहेरना स्थिर ठे. एम दश बे भेद थया तेनो एक दंक || एवं २३ दंगक ॥ वैमानिक - विशिष्ट पुन्ये करी घणा जीवो थकी उपभोग थाय बे जेनो ते विमान कहिए ते विमानने विषे रहेला जे देवो ते वैमानिक जाणवा तेना बे नेद बे, तेमां एक कल्पोत्पन्न ने बीजा कल्पातीत. तीहां कल्प ते स्थिति, जाति, सामानिकादि व्यवस्था मर्यादा बे ज्यां अथवा तिर्थकरना कल्यापादिके मनुष्य लोकने विषे ववानो व्यवहार बे जेनो तेने कल्पोत्पन्न कहीए तेनां नाम सौधर्म देवलोक, इशानदेवलोक, सनतकुमारदेवलोक, माहेंद्र देवलोक, ब्रह्मदेवलोक, लांतक देवलोक, महाशुक्र देवलोक, सहसारदेवलोक, आणंतदेवलोक, प्राणंत देवलोक, चारणदेवलोक, अने अच्युत देवलोक, एम बार बे, कपातीत - कल्प- स्थिति, जाति, सामानिकादि Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवस्थारुप मर्यादाथी अतित-रहीत जे अर्थात ज्यां स्वामि, सेवक नाव नथी. ते करूपातित कहीए. ते कल्पातित वळी बे प्रकारे ले १ नव ग्रैवेयक श्रने ५ पांच अनुत्तर विमान नवग्रैवेयक-चौद राज लोकरुपपुरुषाकारना ग्रीवा( गळा )ना स्थाने वसवू जे जेनुं तेने प्रैवेयक कहीए ते सुदर्शन, सुप्रतिबक, मनोरम, सर्व ना, विशाल, सुमनस, सोमनस,प्रीयंकर,अनेथादित्य एम नव प्रकारनां अनुत्तर-सर्वथी उपर ले विमान जेना ते अनुत्तर कहीए ते विजय, विजयंत, जयंत,अ. पराजित, श्रने सर्वार्थसि, एम पांच प्रकारना श्रनुत्तर विमान .॥ एवं २४ दमक ॥ . अथ श्री बीजो नुवनहार. प्रथम नारकीना जुवननी विविदा करवाने माटे साते नारकीनां गोत्र कहे . १ रत्नप्रना २ शर्करा प्रना ३ वालुका प्रना ४ पंक प्रना ५ धुम प्रना ६ तम प्रत्ना तम तम प्रना. रत्नप्रजा पृथ्वीने पहेले कामे (वळीये) एटले पृथ्वीना जामपणना अमुक नागे रत्नो घणां ले कडं Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) के. ॥ गाथा ॥ तथ्य सहस्सा सोलस, खरकंड पंक बहुल कंडंतु; चुलसी सहस्साई अस जल बहुल कंडेतु. ॥१॥ अर्थः-ते रत्न प्रनामां पहेलो सोख हजार जोजन कठण रत्नमय कांग डे, बीजो चोरासी हजार जोजनना पंक (कादव) बहुल कांम अने एंसीहजार जोजननो जल बहुल कांगडे, एरीतेत्रण कांग बे, तेमां पहेले कामे रत्न घणा , माटे तेनुं नाम रत्न प्रना, बीजी नरक पृथ्वीने विषे कांकरा घणा होवाथी तेनुं नाम शर्करा प्रना, त्रीजीनरक पृथ्वीने विषे वेलु (रेती) घणी होवाथी तेनुं नाम वालुका प्रना, चोथी नरक पृथ्वीने विषे कादवघणो होवाथी तेनुं नाम पंक प्रना, पांचमी नरक पृथ्वीने विषे धुमामो घणो होवाथी तेनुं नाम धुम प्रना, ही नरक पृथ्वीने विषे अंधकार घणो होवाथी तेनुं नाम तमप्रना अने सातमी नरक पृथ्वीने विषे घणो घणो अंधकार होवाथी तेनुनाम तमनमप्रना कहेल , एम साते नरक पृथ्वीनां गुण निष्पन्न गोत्र जाणवा. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमनी रत्नप्रना पृथ्वी-एक लाख एंशी हजार जोजन जामी, असंख्याता हजार जोजन विस्तारवाळी (लांबी पहोळी) अने विस्तारथी त्रण गणीकाफेरी परिधिए (घेरावे) करीने सहित कालरना आकारे . परिधिने फरता वळीयाकारे जोजन सुधी घनोदधि, सामाचार जोजन सुधी धनवात अने दोढ जोजन सुधी तनवात बे, पडी अलोक . ते नरक पृथ्वीने नीचे घनवात, तनवात अने आकाशना पीम अनुक्रमे नीचे नीचे एक बीजाथी असंख्यात असंख्यात जोजनना रहेला डे एटले घनोदधिथी असंख्यात गुणो घनवातनो पीक, धनवातना पीनथोलसंख्यात गुणो तनवातनो पीमअने तनवातना पीमथी असंख्यात गुणो आकाशनो पीमबे, तेनी नीचे बीजी नारकी रहेली बे, हवे ते रत्नप्रना नरक पृथ्वी एक लाख एंसी हजार जोजननी जे जामी कही बे तेमांथी उपर नीचे हजार हजार जोजन काढीए त्यारे बाकीनी एक लाख अग्योतेर हजार जोजन पृथ्वी रही, तेने विषे तेर प्रतर (माल, पाठमा) . ते नीचे Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुजब बे, १ सोमंतो २ शेरुङ ३ रंन ४ उज्जंत ५ संत्रात ६ असंघात ७ विज्रांत नक्त ए शीत १० वक्रान्त ११ श्रवक्रान्त १५ विका श्रने १३ शेरुक ते दरेक प्रतर त्रण हजार जोजननाउंचा, असंख्यात जोजनना लांबा पहोळा अने अगीयार हजार पांच सो त्यासी जोजन उपर एक जोजनना त्रीजा नाग जेटला अंतरे अंतरे एक बीजाथी नीचे नीचे . तेमां त्रीस लाख नरकावासा . ते बे प्रकारना . १ पुपावकीणे एटले बटा फलनी पेठज्यांत्यां रहेला डे, ते गणत्रीस लाख पंचाएं हजार पांचसो समस डे, श्रेणीबंध चार हजार चार सो तेत्रीस. एम बने मळी ३०००000 नरकावासा . पहेला सीमता ना. मना प्रतरना मध्य नागमां सीमंत नामनो इंडक [मूख्य]नरकावासो पीस्ताळीस लाख जोजननोसांबो पहोळो . अने बाकीना सर्वे नरकावासा संख्याता तथा असंख्याता जोजनना लांबा पहोळा . तेमां नारकीना जीवो रहे . बीजी शर्करा प्रना नरकपृथ्वी-एक लाख बत्रीस Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) हजार जोजन जामी, असंख्याता हजार जोजन वि. स्तारवाळी अने विस्तारथी त्रण गणी कामेरी परिधिए करीने सहित साखरना थाकारे ले. परिधिना फरता वळीयाकारे उ जोजन एक गाज उपरांत गाउना त्रीजानागसुधी घनोदधि, चार जोजन त्रण गान सुधी घनवात अने एकजोजन बे गाउ उपरांत गाउनात्रीजानागसुधी तनवात . ने ते पळी अलोक ले. ते नरकपृथ्वी नीचे वीसहजारजोजन घनोदधिनो पींग डे. तेनी नीचे घनवात, तनवात अने आकाशना पीक अनुक्रमें नीचे नीचे एक बीजाथी असंख्यात असंख्यात जोजन पूर्वोक्त रीते रहेला जे. तेनी नीचे त्रीजी नारकी . हवे ते शर्कश प्रना नरकपृथ्वी एक लाख बत्रीश हजार जोजननी जेजामी कही ले तेमांथी उपर तथा नीचेथी एक एक हजार जोजन काढीएत्यारे बाकीनी एक लाख त्रीश हजार जोजन पृथ्वी रही तेने विषे श्रगीयार प्रतर बे. ते नीचे मुजब ३-१ स्तनिक १ स्तनक ३मणक४ चणक ५. घट्ट ६ संघट्ट ७ जीप्न अवजीप्न ए लोल १० Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) लोलावत ११ घणलोबुक. ते दरेक प्रतरत्रण हजार जोजनना उंचा असंख्यात जोजनना लांबा पदोळा अने नव हजार सातसो जोजनना अंतरे अंतरे एक वीजाथी नीचे नीचे बे. तेमां पचीसलाखनरकावासा बे, ते बेप्रकारना , १ पुष्पावकीर्ण एटले बुटां फुलनीपरे ज्यांत्यारहेलांडे, ते चोवीश लाख सत्ताएं हजार त्रणसो ने पांच ले अने ५ बीजा श्रेणीबंध बेहजारउसोपंचागुंडे, एमबंनेमळी २५००000 नरकावासा. तेसर्वनरकावासामा केटलाएक संख्याता अने केटलाक असंख्याता जोजननां लांबापहोळांबे, तेमां नारकीना जीवोरहे जे. त्रीजीवालुकाप्रभा-नरकपृथ्वी एकलाख अठावीसहजार जोजननी जामी,असंख्याता जोजननीविस्ता रवाळी अनेविस्तारथी जणगणी माझेरी परिधिए करीने सहित कालरनां आकारे दे. परिधिनेफरतां वळीयाकारे बजोजनबेगाउनपरांत गाउनात्रणनागकरीए एवाबेनागसुघी धनोदधि पांचजोजनसुधी घनवात अने एकजोजनबेगाउनुपरांतएकगाउनात्रण Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ए) जागकरीए एवा बेनागसुधीतनवात,नेतेपछी अलाके आवेडे. ते नरकपृथ्वीनीनीचे वीशहजार जोजन घनो दधिनो पीम तेनीनीचे धनवात, तनवात अनेकाशनापीम अनुक्रमे नीचेनीचे एक बीजाथी असंख्यातअसंख्यातजोजनना पूर्वाक्त रीते रहेलांडे, अने तेनीनीचे चोथीनारक पृथ्वी बे, हवे ते वालुकाप्रना नरकपृथ्वी एकलाखबहावीसहजारजोजननीजे जामी कही तेमा उपरथी तथा नीचेथी एकेकहजारजोजनकाढीए त्यारे बाकोनी एकलाखब्बीसहजारजोजनपृथ्वी रहो तेने विषे नवप्रतर.तेना नाम-तप्त, तपिक,तपन,तापन, विदाय,प्रज्वलित,उज्वलित,संज्वलित, अने संप्रज्वलित, ते दरेकप्रतरत्रणहजार जोजननां ऊंचा, असंख्यात जोजननां लांबा पहोळा अने बारदजारत्रणसेंपंचोतरजोजनना अंतरे अंतरे एक बीजाथी नीचे नीचे . तेमां पंदरलाख नरकावासा बे. ते बेप्रकारनामे, १ पुष्पावकीर्ण एटलेबुटाफुलनीपेठे ज्यांत्यांरहेला ठे, ते चौद लाखश्रठाणुंहजारपांचसो ने पंदर.अने र श्रेणी बंध एकहजारचारशानेपंचाशी Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) 3. एम बन्ने मळो १५००००० नरकावासा . ते सर्व नरकावासामा केटलाएक संख्याता तथा केटलाएक असंख्याता जोजना लांबा पदोळां . तेमा नारकीना जीवो रहे . __ चोथीपंकरना नरकपृथ्वी-एक लाख वीस हजार जोजननी जामी, असंख्याता जोजननी विस्तारवाळी अने विस्तारथी त्रण गणी कारी परिधिएकरीने सहीत कालरनां श्राकारे . परिधिनां फरतां वली याकारेसातजोजनसुधीघनोदधि, पांचजोजनने एक गाउघनवात, अनेएकजोजननेत्रणगान सुधीतनवात . ने तेपलीश्रलोकयावे. ते नरकपृथ्वीनी नीचे वी शहजारजोजनघनोदधिनो पीले, तेनीनीचेघनवात, तनवातअनेथाकाशनापी अनुक्रमे नीचेनीचे एक बीजाथी असंख्यातअसंख्यातजोजनना पूर्वोत्तरीते रहेखांडे, अने तेनीनीचे पांचमीनरकपृथ्वी .हवे ते पंक प्रना नरकपृथ्वी जे एक लाख वीश हजार जोजननी जामी कही . तेमाथी उपर तथा नीचेथी एकेक हजार जोजन काढीए त्यारे बाकीनी एक लाख थ. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) ढार हजार जोजन पृथ्वी रही, तेने विषे सात प्रतर बे. तेना नाम, -आर, तार, मार, वर्व, तम, खामखम अने खंगखम. ते दरेक प्रतर त्रण हजार जोजनना उंचा, असंख्यातहजारजोजननां लांबा पहोळां, अने सोलहजार एकसे बसवजेोजनउपरांत एक गाउन जाग करीए एवा चारनागनाांतरेयंतरे एकबीजाथी नीचेनीचेडे, तेमां दशलाखनरकावासाठे. ते बेकारना. एक पुष्पावकीर्ण एटले बुटांफूलनीपेठे ज्यांत्यां रहेलांबे, ते नव लाख नवाणु हजारबसें त्राएं बे बीजा श्रेणीबंध सातसो नेसात बे. एमए बन्ने मळी १०००००० नरकावासा छे. ते सर्वनरकावासामां केटलाएकसंख्याता ने केटलाएक असंख्याताजोजननां लांबापोळांबे. तेमांनारकीनांजी चोर देखे. पांचमी धुमप्रजा नरकपृथ्वी - एकलाखादार इजारजोजननीजामी, श्रसंख्याता हजारजोजननी लांबी पहोळी ( विस्तारवाळी ) अने विस्तारथी त्रणगणी कारी परिधिएकरी ने सही तफालरनांचा कारेबे, परिधिनांफरतां वळीयाकारेसात जोजन एक गाऊ उपरांत Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) एकगाउनात्रीजानाग सुधी घनोदधि, पांचजोजन अने बेगाउसुधी घनवात अने एकजोजनत्रएयगाऊउपरांत एकगाउना त्रीजानागसुधी तनवात. ने तेपडी अ. लोकले. ते नरकपृथ्वीनी नीचे वीशहजारजोजन घनोदधि नोपींमडे, तेनीनीचे घनवात, तनवात अने आकाशनांपीम अनुक्रमे नीचेनीचे एकबीजाथी असंख्यात असंख्यातजोजनना पूर्वोक्तरीतेरहेलांडे अने तेनीनीचे बहीनरकपृथ्वी . हवे ते धुमप्रना नरकपृथ्वी जे एक लाख अढारहजारजोजननीजामीकही. तेमांथी उपर तथा नीचेथी एकक हजार जोजन काढीए त्यारे बाकीनी एकलाखसोलहजारजोजन पृथ्वी रही तेने विषे पांच प्रतर (माल) , तेना नाम-आत, तमस ऊस, अंध, अने तिमिस. ते दरेक प्रतरत्रएय हजार जोजननां ऊंचा असंख्यात जोजननां लावापहोळां अने पचीसहजारबसेंपचासजोजननां अंतरे अंतरे एक बीजाथी नीचे नीचे . तेमां त्रएयलाख नरका. वासाले, ते बेप्रकारनांडे एकपष्पावकीर्ण एटले बुटा Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुलनीपेठे ज्यांत्यांरहेलांब. ते बे लाख नवाणुंहजार सातसोपांत्रीश अने बीजाश्रेणीबंध बसेंपांसग्ने एम बन्नेमळी ३०००० नरकावासा जे ते सर्वनरकावासामां केटलाएक संख्याता अने केटलाएक असंख्याता जोजनना लांबा पहोळां.तेमां नारकीनांजीवो रहे. ठी तमनना नरकपृथ्वी-एक लाख सोळ हजार जोजननीजामी, असंख्याताहजारजोजननी लांबी पहोळी अने विस्तारथी त्रएय गणी काफेरी परिधिए करीने सहीत कालरना आकारे बे. परिधिनां फरतां वळीयाकारे सात जोजन बे गाउ उपरांत एक गाउनां त्रएयत्नागकरीएएवाबेनागसुधी घनोदधि, पांच जोजनत्रण्यगाजसुधी घनवात अने एकजोजनत्रएय गाज उपरांत एकगाउनात्रण नागकरीएएवा बेनाग सुधी तनवात. ने ते पनी अलोकडे. ते नरक पृथ्वीनी नीचे वीशहजार जोजन घनोदधिनोपीम, तेनी नीचे धनवात, तन वात, अने आकाशनांपीमअनुक्रमे निचे निचे एक बोजाथी असंख्यात असंख्यात जोजननां पूर्वोक्त रीते रहेलां . ने तेनी नीचे सातमी नरक Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) पृथ्वी.हवेते तमप्रना नरकपृथ्वी जे एकजाखसोळहजार जोजननी जामीकही. तेमांथीउपर तथा निचेथी एकेक हजारकाढीए त्यारे बाकीनी एक लाख चौद हजार जोजन पृथ्वी रही तेने विषेत्रणप्रतर तेनां नाम-वाही, वादल, अने लल्लक, ते दरेक प्रतर त्रण हजार जोजननां ऊंचा, असंख्यात जोजननां लांबा पहोळां अने बावन हजार पांचशोजोजननां अंतरे एकबीजाथी निचे निचे . तेमां नवाणुं हजार नवसो पंचाणुं नरकावासा ते बेप्रकारनां नवाएं हजार नवसो बत्रीस पुष्पावकीर्ण अने त्रेसठ श्रेणी बंध एम बन्नेमळी एएएएए नरकावासा . ते सर्व नरकावासामा केटलाक संख्याता अने केटलाक असंख्याताजोजनमा लांबापहोळांनरकावासा ने. ते सबेमां नारकीनां जीवो रहे . सातमी तमःतम प्रभा नरकपृथ्वी एक लाख आठ हजारजोजननीजामी, असंख्याताहजारजोजननीविस्तारवाळी अने विस्तारथीत्रण गणीकारीपरिधिए करीनेसहीत कालरनेत्राकारे. परिधिनाफरतावळी Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) याकारेबाजोजनसुधी घनोदधि, उजोजनसुधी घ. नवात अने बेजोजनसुधीतनवात. नेतेपली थलोक श्रावे. ते नरकपृथ्वीनी निचे वीशहजारजोजनघनोदधिनो पीम तेनी निचे घनवात, तनवात अने था. काशनां पीम अनुक्रमे निचेनिचे एकबीजाथी असंख्यात असंख्यात जोजननां पूर्वोक्त रीते रहेला . ने तेनीनिचे अलोकले. हवेते तमःतमप्रना नरकपृथ्वी जे एकलाखआठहजारजोजननीजामीकही. तेमाथी सामीबावनहजारजोजनउपर मुकीए अने सामीबावनहजारजोजन नीचे मुकीए, तेनी वचमां एक प्रतर ले तेनुं नाम थपश्वाणो. ते प्रतर त्रणहजारजोजनउंचो, असंख्यात जोजननो लांबो पहोळो बे अनेतेमां एकजप्रतरहोवाथीअंतर नथी. ते नरकपृथ्वीमां पांचनरकावासाने तेश्रेणीबंधळे तेपांचनरका वासामां मध्यनोअपश्वाणो नरकावासोएकलाखजोजननोलांबोपहोळोजे अने बाकीनाचारे नरकावासा असंख्यातअसंख्यात जोजनना लांबापहोळांडे, तेमां नारकीनाजीवो रहे . Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊपर कह्या प्रमाणे साते नारकीमा सीमंत प्रत. रथी अपवाणाप्रतरसुधीसर्वेमळीनेगणपचास प्र. तरो. तेमां पहेला सीमंत नामनाप्रतरने विषेसीमंत नामनोनरकावासो जेपीस्ताळीसलाख जोजननो डे, तेनेफरतां चारदिशाए गणपचास गणपचास तथा चारविदिशाए थमताळीसश्रमताळीसनरकावासा तेश्रेणीबंधले. तेमाथी तेनी नीचेना बीजा प्रतर वगेरे सर्वे प्रतरोमां दिशा तथा विदिशाएथश्ने आग्याउ नरकावासा जैनाउँदा श्रेणीबंध डे.डेवटसर्वथीनीचला अपश्गणा नामनानरकावासानीचारदिशाए एकेको नरकावासोले सर्व श्रेणीबंध नरकावासा नवहजार उसो त्रेपन अने पुष्पावकीर्णनरकवासा त्यासीलाखनेहजारत्रएयसोसुमताळीसो. ते बन्ने मळीने चोरासीलाखनरकावासाथया. तेमां पहेलो सीमंतो तथा बेटलो अपश्चगणो मुकीने बाकीना सर्वे नरकावासा संख्याता असंख्याता जोजननां लांबा पहोळा उपर कह्यांप्रमाणे, तेनुं कांश्क प्रमाण समजाववानेमाटे शास्त्रशोकहेडेके. कोश्देवतात्रणवारचपटीवगामतां Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) जेटलोवखतलागे तेटला वखतमा आजंबुद्धीपनेएकवीसवारप्रदिक्षणादे, एवी शीघ्रगतिए सामाठापाठ लाखजोजन- पगबु जरतो नरकावासामांचाल, तो पण कोश्कनो एक मासे अने कोश्कनो उ मासे, संख्याता जोजनवाळानरकावासानोपारपामे. पण असंख्याता जोजनना नरकावासानोपारपामेनहि,एवा मोटा ते नरकावासाने. संख्याता अने असंख्याता जोजनना नरकावासामांअनुक्रमे संख्याताअने असंख्याता नारकी रहे , श्रेणीबंधनरकावासावाटला, त्रिखूणां अने चोखूणां आकारे, अने पुष्पावकीर्ण विविध आकारनां जे. रत्नप्रना, शर्कराप्रनाथने वाबुकामना महिनासर्वे, तथा पंकप्रन्ना मांहेना घणां, अने धुमप्रनामांहेनाथोमानरकावासानी नूमीका लालचोळखेरनांअंगाराथीपणअति उष्ण .अनेथोमा पंकप्रनामांहेना, घणां धुमपना मांहेना अने तमप्रनातथातमःतमप्रनामांहेना सर्वे नरकावासा, जामेलापाणी( बरफ )थी पण अति शीतळ नूमीवाळा बे, उष्ण नृमीमां रहेलां नारकीने उष्णवेदना, अने Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीतनूमीमा रहेला नारकीउँने अति शीत वेदना . जेम पीत्तज्वर (ताव ) वाळो माणस आच्छादन वीना उनाळाना दिवसमां मध्यान काळे घारेबाजुए अग्निनीवचमारहलोहोय अने त्यांतेनेजेटली उष्णबेदनाथाय, तेनाथी अनंतगुणी उष्णवेदना उष्णजूमीना नरकावासामा रहेलानारकी-नेहोय ,अने अतिपुर्बळवृक्ष माणस कांपणयाछादनवीना शियाळानीरात्रे, उंचेथी बरफपमतोदोय, चारेबाजुथी शी. तवायु वातोहोय, अने हीमाचळनाउँमाप्रदेशमा बरफ उपररहेलोहायतो त्यां तेने जेटली शीतवेदना थाय, तेथी थनंतगुणी शीतवेदना शीतजूमीना नरकावासामारहेलां नारकीउने होय. नरकावासाना केत्रोनो वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श अति जयंकर, बिहामणो अने अति फुःखदायी छे. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यंत्र. सात नारकीन पृथ्वी पींग प्रतर, पुष्पावकीर्ण श्रेणीबंध | सर्व नरका नाम. वासा. | रत्न प्रना. | १,50000 | १३ ए,ए५,५६७ ४,४३३. ३०,00000 शर्करा प्रना. | २,३२००० | १ ४,,३०५ २,६५ २५,00000 वालुका प्रना. १,२७००० | ए १४,७,५१५ १,५५ २५,00000 पंक प्रना | १,२०००० | एएए,शए३| ७०७ १०,00000 धुम प्रता. १,१6000 २,एए,७३५ २६५ ३,00000 तम प्रना. एए,ए३२ .६३ । एएएए५ तमःतम प्रजा. १,20200 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) दस जुवनपति निकायना जुवनो रत्नप्रना पृथ्वीनो पीम एक लाख एंशी हजार जोजननो जामो . तेमांथी एक हजार जोजन उपर अने एक हजार जोजन नीचे मुकीए बाको एक लाख अठयोतेर हजार जोजन पीक रह्यो ते मांहे यथायोग्यपणे दस जातिना जुवनपति निकायना देवोनाजुवनोडे. मेरुपर्वतना जेआठ रुचकप्रदेश , त्यांथी अर्को अर्धबे खंग करीए, एक दक्षिण दिशिनुं अर्ध अने बीजं उत्तर दिशिनुं अर्ध, एवा बे लागे जुवनपतिना जुवनोनी श्रेणीन डे, तेमां दक्षिण दिशानी श्रेणीमां असुरकुमार निकायना चोत्रीस लाख जुवन दे. नागकुमार निकायनाचुंवालीसलाख, सुर्वणकुमार निकायना आमत्रीसलाख, विद्युतकुमारनिकायनांचालीसलाख,अग्निकुमार निकायनां चालीस लाख, छीपकुमार निकायनां चालीस लाख, उदधिकुमार निकायनां चालीस लाख, दिशिकुमार निकायनां चालीसलाख, पवनकुमारनिकायनां पचासलाख, अने स्तनितकुमार निकायनां चालीसलाख जुवनो डे, ए सर्व मळी Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दक्षिण दिशानी श्रेणीए चार क्रोम अने उ लाख जुवन , तथा उत्तर दिशिनी श्रेणोमां असुरकुमार निकायनांत्रीस लाख जुवन बे, बोजानां चालीस लाख, त्रीजानां चोत्रीसलाख, चोथानां बचीस लाख, पांचमानां त्रीस लाख, बहानां बनीस लाख, सातमांनां त्रीस लाख, थाउमानां बत्रीसलाख, नवमानां बेताळीस लाख, अने दशमानां त्रीस लाख जुवनो बे,ए सर्व मळी उत्तर दिशानी श्रेणीए त्रण क्रोम बासठ लाख जुवनडे,एबनेश्रेणीनामळीने कुल सातकोमबहो तेरलाख जुवनपतिना जुवनो डे ए नुवनोनानामां नाना जंबुद्वीप जेवमा मोटा , मध्यम संख्याता जोजनना अने मोटामां मोटा असंख्यात जोजन लांबा प. होळा, बहारथी वाटला, अंदरथी चोखुणा अने नूमी तळीए कमळनीकर्णीकानाआकारे, घणांसुंदर, सान कुळ, वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्श करीने सहीत . ते दरेकमां मनोहर जीनजुवन डे. एकेका जीन जुवनमां एकसोने एंसी एंसी शाश्वतीजीनप्रतिमा ने.संख्याता जोजनवाळा जुवनमां संख्याता, अने असं Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) ख्याता जोजनवाळा जुवनमां संख्याता देवो रहे बे. व्यंतरना जुवनो - रत्नप्रभा पृथ्वीमां उपर मुकेलो जे एक हजार जोजननो जाको पृथ्वी पींड. तेमांधी एक सो जोजन उपर छाने एक सो जोजन निचे मुकीने वचलो ठसें जोजननो जागो, असंख्यात जोजननोलांबो पहोलो पृथ्वीपकडे. तेमायावजातिनां व्यंतर देवोना उत्तर तथा दक्षिण श्रेणीए असंख्याता भुवनो बे, ते नानामां नाना जरतक्षेत्र, जेवमां, मध्यम महाविदेह क्षेत्र जेवमां ने मोटामां मोटा जंबुद्वीप जेवमा लाख जोजननां बे, ते सर्वे जुवनो बहारथी वाटला, अंदरथी चोखुणां, अने भूमी तळीए कमलनी कर्णीकाने कारे, अति सुंदर, मनोहर, सानुकुल, वर्ण, गंध, रस, वने स्पर्शेकरीनेयुक्त तेमां व्यंतरनां देवो रहे बे. वली रत्नप्रना पृथ्वीमां उपर मुकेलो जे एकसोजोजननो जामो पृथ्वी प तेमांथी दश जोजन उपर छाने दश जोजन नीचे मुकीने वचलो एंसी जोजननो जामो, श्रसंख्यात जोजननो लांबो पहोलो पृथ्वी पींग डे. तेमां आठ 1 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) जातिनां वाणव्यंतर देवना उत्तर तथा दक्षिण श्रेणीए असंख्याता जुवनोबे, ते नानामां नाना नरतक्षेत्र जेवमा, मध्यम महाविदेह जेवमा अने मोटामां मोटा जंबुद्धीप जेवमां लाखजोजननां . उपर कह्यां प्रमाणे व्यंतरना तथा वाणव्यतरना असंख्याता नुवनोबे, तेमां सर्वे मळीने असंख्याता जीन नुवनो बे. ___ अनंतानंतश्राकाशप्रदेशनांमध्यन्नागमां, कटीए ( केनये ) हाथराखीपगपसारीउनेलापुरुषनांथाकारे अकृत्रिम, निश्चळ, अने पंचास्तिकायनां समुदाययुक्त चौदराज प्रमाण लोक. ए चौदराजलोकना मध्यमां एकराज लांबो पहोळो अने मेरुसमीपे समजुतलापृथ्वीथी नवसें जोजन नीचो ने नवसेंजोजनचंचो तिजेलोकजे, ते तिर्गलोकमां पच्चीसकोमाकोमी उघारपट्योपमनां जेटलांसमयथाय तेटलां छीप अने समुझो . अर्थात् असंख्याताछीपने असंख्यातासमुखो . ते सर्वनी अत्यंतरमा लाखजोजननो लांबो पहोलोथने थाळीनाथाकारे गोळ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) श्रा प्रथम जंबुद्धीप बे; तेनां फरतो चुमीनांथाकारे बे लाख जोजनना विस्तारे लवण समुप डे अने ते पबी धातकीखंग, काळोदधि समुड, पुष्करवरहीपने पुष्करवरसमुऽविगेरे एक बीजाथी बमणां बमणां विस्तारे चुमीनाकारे अने प्रशस्तवस्तुनां नामे असंख्याताछीपने असंख्यातासमुझो ले. सर्वथी नेल्लो स्वयंजुरमण नामेसमुळे ते अर्धा राजलोक प्रमाण विस्तारे . जंबुद्धीपमां बेचंड ने बे सूर्य, लवण समुडमा चार चंद्र ने चारसूर्य, धातकीखंगमां बारचंड ने बार सूर्य, काळो दधि समुडमां बहेताळीस चंड ने बदेताळीस सूर्य अने पुष्करार्धमा बहोतेर चंद्र ने बहोंतेर सूर्य . ए बधां मळी एकसो बत्रीसचंड ने एकसोबत्रीससूर्य तथा ग्रहादिक ज्योतिषीनां विमानो था मनुष्य क्षेत्रमा दे, ते सर्वे चर ले. मनुष्य क्षेत्रनी बहार असंख्याता डीप तथा समुप्रोमां असंख्याता ज्योतिषीनां विमानो बे, ते सर्वे स्थिर . दरेक चं ने अठयासी ग्रह अव्यावीस नक्षत्र अने Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) गसठ हजार नवसें पंचोतेर कोमाकोमी तारानो परिवार . संजूतला पृथ्वीथी सातसें नेलं जोजने तारानां विमान बे, आठसे जोजने सूर्यनुं विमान डे, आठसें एंसी जोजने चंडमानुं विमान बे, आठसेंचोरासी जोजने नक्षत्रनां विमानडे, बाउसेंअग्यासी जोजने बुधनुं विमान डे, आठसेंएकाएं जोजने शुक्रनुं वि. मान बे, आठसेंचोराणुं जोजने बृहस्पतिनुं विमान, आठसेंसत्ताणुं जोजने मंगळy विमान अने नवसें जोजने सर्वथी उपर शनिनुं विमान . एम समजुतला पृथ्वीथी सातसें नेलं जोजन उपरांत एकसो दश जोजनमां ज्योतिष चक्र , ते विमानो मेरुपर्वतथी अगीयारसें एकवीस जोजन चारे तरफ पुर ने अने अगीयारसें अगीयार जोजन अलोकथी मांहेलीकोरे जे. एटले अलोकनी अबाधाए ज्योतिष चक्र . ___ मनुष्यदेव माहेनां चंडमानां विमान एक जोजनना एकसठनाग करीए एवमा उप्पन्न नागनां Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लांबा पहोळां ने अव्यावीसन्नागनां जंचा. सूर्यनां विमान एकसठीया अमताळीस नागनां लांबा प. होळां ने चोवीस नागनां उंचा डे, ग्रहना बे गाउनां लांबा पहोळां ने एक गाउनां ऊंचा , नक्षत्रनां एक गाउनां लांबा पहोळां ने अर्ध गानां ऊंचा , अने तारानां पांचशेधनुष्यथी एक हजारधनुष्य सुधीनां लांबा पहोळांने अढीसेंथी पांचसे धनुष्य सुधीनां उंचा . मनुष्य क्षेत्रन। बहारनांज्योतिषीनां विमानोनुं प्रमाण मनुष्य क्षेत्रना विमानोथी अर्धं अर्धं ले एटले मनुष्य क्षेत्रमा रहेला चंऽनुं विमान एकस. गीयां बप्पन्न नागनुं बे; तो मनुष्य क्षेत्रनी बहारना चंडना विमान एकसठीया अळ्यावीस नागनां . एम पांचेज्योतिषीननां विमानोनी लंबाइ, पहोळा अने उंचाइनुं प्रमाण अर्धं अर्ध बे.चंड तथा सूर्यनां विमानवाहक देवो सोळ सोळ हजार बे, ग्रहनां विमानवाहक देवो आठहजार , नत्रनां विमान वाहक देवो चारहजार अने ताराना विमानवाहक देवो बब्बे हजार ले. चंड, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र अने Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) सारानी चालवानी गति अनुक्रमे एक बीजाथी शीघ्र शीघ्रतर बे, ज्योतिषीनां विमाननुं मांहोमांहे अंतर, व्याघाते उत्कृष्ट बारहजार बसें बढ़ेताळीस जोजननुं जघन्य वसेंनेबास जोजननुं बे, निर्व्याघाते ( व्याघात न होय त्यारे ) उत्कृष्ट बे गाउनुं घने जघन्यथी पांचसें धनुष्य एक ताराथी बीजा तारानी बच्चे अंतर बे. सूर्य उंचो सो जोजन तपे बे नीचो दारसें जोजन तपे बे ने तिच्छे सुमताळीस हजार बसेंत्रेसठ जोजन ने साठीया एकवीस जाग तपे बे. एटले उपर कह्या प्रमाणे सूर्यनुं ताप क्षेत्र बे. लवण समुझे ज्योतिषीना विमानो बे ते उदक स्फाटिक रत्ननां ने बीजा सर्व ज्योतिषीना विमानो स्फाटिक रत्ननां बे, ते सर्व विमानो अर्ध कवीar (कोठफळ) कारे, मनोहर जोनवने सहीत, देदीप्यमान प्रकाशवाळा छाने यति सुंदर ज्योतिषीजनां विमानोडे तेमां संख्याता ज्योतिषी देवो बे. वैमानिक देवानां विमानो: - ज्योतिषीनां विमानो संख्यात कोमाकोमी जोजने अथवा था Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) उमा राजलोकनां बेमे, घनोदधिना आधार, पहेलो सौधर्मदेवलोक दक्षिण दिशाए अने बीजो शानदेवलोक उत्तर दिशाए ते बन्ने देवलोकनां नेगा मळी वळीयाकारे तेर प्रतर बे. तेरे प्रतरनी वच्चे अर्कोथर्ध बेखंगकरीए; एक दक्षिण दिशिखंम अने बीजो उत्तर दिशिखम, दक्षिण दिशि खमनो अधिपति सौधर्मेऽ अने उत्तरदिशिखंझनो अधिपति इशाने जे. सौधर्मेजना बत्रीसलाख विमान , तेमां चारसें चोराणुं त्रिखूणां, चारसे उयासी चोखूणा, सातशंसत्तावीस वाटलां अने एकत्रीस लाख अहाएं हजारबसें त्राणुं विविध आकारनापुष्पावकीर्ण विमानो बे, तथा शानेजना अठ्यावीसलाख विमान , तेमां चारसे चोराणुं त्रिखूणां, चारसेंब्यासीचोखूणां. बसेंअमत्रीस वाटला अने सत्तावीस लाख अठाणुंहजार सातसें ब्यासी विविध थाकारनां पुष्पावकीर्ण विमानो बे; ते बन्ने देवलोकना सर्व विमानना नोंय तळीयानो पृथ्वीपीम बे हजार सातसें जोजननो जामो ने नेते विमानो पांचशे जोजननां उंचा बे, केटला एक सं Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) ख्याता जोजननांने केटलाएक असंख्याता जोजन नां लांबा पहोळां ने अने काळा, नीला, राता, पीळाने धोळा एम पंचवर्णनां बे, ते विमानोनी उपर असंख्यात जोजने अथवा नवमा राजलोकनां मे, घनवातना आधारे त्रीजोसनत्कुमार देवलोक दक्षिण दिशाए अने चोथो माहेंज देवलोक उत्तर दिशाए बे. ते बन्ने देवलोकनां लेगा मळी वळीयाकारे बार प्रतर जे तेमां पण पूर्वोक्त रीते दक्षिण दिशिखंमनो अधिपति सनत्कुमारे अने उत्तर दिशिखंमनो अधिपति माहें . सनत्कुमारजना बारलाख विमान बे तेमा त्रणसें बप्पन्न त्रिखूणां, त्रणसेंयमताळीस चोखूणां, पांचसें बावीश वाटलां अने अगियारलाख अठाणुंहजार सातसेंचुम्मोतेर विविध आकारनां पुपावकीर्ण विमान ले तथा माहेजना आउलाख वि. मान , तेमां त्रणसेंबप्पन्न त्रिखूणां, त्रणसो अमताळीस चोखूणां एकसो सीत्तेर वाटलां अने सातलाख नवाणुं हजार एकसो बीस विविध आकारनां पुप्पावकीर्ण विमान . ते बन्ने देवलोकना विमानना Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) जोयतळीयानो पृथ्वीपीम बे हजारडसेंजोजन जामो बे, ते विमानो बशें जोजन उंचा, केटलाएकसंख्याता जोजननां ने केट लाएक असंख्याता जोजननां लांबा पहोळां अने काळा वर्ण सिवाय चार वर्णनां . त्रीजा, चोथा देवलोक उपर असंख्याता जोजने अथवा दशमा राजलोकमां घनवातना आधारे पांचमो ब्रह्म देवलोक . ते देवलोकमां उ प्रतर ने चारलाख विमानो ने तेमां बशें चोरासी त्रिखूणां, बशेबोंतेर चोखूणां, बशें चुम्मोतेर वाटलां अनेत्रणलाख नवाएं हजार एकसो बासठ विविध आकारनां पुष्पावकीर्ण विमान बे. ते विमानना नोयतळीयानो पृथ्वीपीम बे जहार पांचसे जोजन जामो, ते विमानो सातसें जोजनना उंचा, केटलाएक संख्याता अने केटलाएक असंख्याता जोजननां लांबा पहोला अने कालाने नीलावर्ण सिवाय त्रणवर्णनां . पांचमा देवलोकनां उपर असंख्याता जोजने अथवा दशमाराजलोकनां बेमे घनोदधिने घनवातना आधारे हालांतक देवलोक जे. ते देवलोकमां पांच प्रतरने पचाशहजार Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) विमानो डे तेमां बशें त्रिखूगां,एकसो बाणुं चोखूणा, एकसो त्राणुं वाटला अने जंगणपचाशहजार चारशें पन्नर विविध आकारनां पुष्पावकीर्ण विमान ले. ते विमानना नोयतलीयानो पृथ्वीपीम बे हजार पांचसे जोजन जामो डे, ते विमानो सातसें जोजननांउंचा, केटलाएक संख्याता अने केटलाएक असंख्याता जोजननां लांबा पहोलां अने कालाने नीला वर्ण सिवाय त्रणवर्णनांडे. हा देवलोकनां उपर असंख्याता जोजने अथवा अगियारमा राजलोकमां घनोदधि अने घनवातनां आधारे सातमो शुक्र देवलोक ते देवलोकमां चार प्रतरने चालोशहजार विमानो डे,तेमा एकसो उनीस तिखूणां, एकसोबत्रीस चोखूणां,एकसो अहावीस वाटलां अने उंगणचाळीश हजार बसेंनेचार विविध आकारनां पुष्पावकीर्ण विमान ते विमाननां नोंयतळीयानो पृथ्वीपीम बेहजार चारशें जोजन जामो, ते विमानोआठसेंजोजननां ऊंचा केटलाएक संख्याता अने केटलाएक असंख्याता जोजननां लांबा पहोला अने काळा, नीलाने राता वर्ण सिवाय बे Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) वर्णना , सातमादेवलोकनांउपर असंख्याताजोजने अथवा अगियारमा राजलोकनां मे घनोदधि अने धनवातना आधारे श्राठमो सहस्रार देवलोक ले. ते देवलोकमां चार प्रतरने उहजार विमानोडे, तेमां एकसोसोळ त्रिखूणां, एकसोपाठ चोखूणां, एकसोश्राउ वाटलां अने पांचहजार बसेंअमसठ विविध थाकारनां पुष्पावकीर्ण विमान.ते विमानना नोंयतळीयानो पृथ्वीपीम बेहजार चारसेंजोजन जामोजे, ते विमानो आठसेंजोजननां जंचा केटलाएक संख्याता अने केटलाएक असंख्याता जोजननां लांबा पहोला अने काळा, नीलाने रातावर्ण सिवाय बे वर्णनां . आउमा देवलोकनां उपर असंख्याता जोजने अथवा बारमा राजलोकमां आकाशनां श्राधारे नवमो श्राणत अने दशमो प्राणत ए बे देवलोक जोमाजोम अने ते बन्ने देवलोकनोएकऽ . ते बन्ने देवलोकमां थश्ने चार प्रतरने चारसें विमानो. तेमां बाणुं त्रिखूणां, अग्यासी चोखुणां, अग्यासी वाटलां श्रने एकसोवत्रीसविविधयाकारनां पुष्पावकीर्ण Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) " विमानबे ते विमाननां नोंयतलीयानो पृथ्वीप बे हजार त्रपसें जोजन जामोडे, ते विमानो नवसें जोजन उंचा, केटलाएक संख्याता ने केटलाएक छसंख्याता जोजननां लांबा पहलां ने एक धोला वर्णनांज बे, नवमा खने दशमा देवलोकनां उपर संख्याता जोजने अथवा बारमा राजलोकनां बेने आकाशनां व्याधारे अगियारमो चरण ने बारमो अच्युत देवलोक जोमाजोन बे ते बन्ने देवलोकनो एक इंद्र बे. ते बन्ने देवलोकमां थश्ने चार प्रतरने त्रणसें विमानो बे, तेमां बहोंतेर त्रिखूणां, असठ चोखूणां, चोस वाटला अने बन्नु विविध कार नां पुष्पावकीर्ण विमान बे. ते विमानना जोयतलीयानो पृथ्वीपींग वे दजारत्र से जोजन जामो बे, ते विमानो नवसें जोनजनां उंचा, केटलाएक संख्याता अने केटलाएक संख्याता जोजननां लांबा पहोळां एक धोळा वर्णनांज बे. अगियारमा घने बारमा देवलोकri उपर असंख्यात जोजने अथवा तेरमा राजलोकमां यकाशनां श्राधारे नवत्रैवेयक बे Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) ते दरेकनो अकेको प्रतर होवाथो नदौौयकना नव प्रतरो . ते नव प्रतरोमां प्रथम नीदेनी त्रीके त्रण प्रतरे एकसो अगियार विमान , तेमां चालीश त्रिखुणां, बत्रीस चोखुणां अने पांत्रीस वाटसां विमान . ए हेलो त्रीकमां पुष्पावकीर्ण विमान नथी,तेना उपर असंख्यात जोजने बीजी मध्यनी त्रीके एकसो ने सात विमान ने तेमां अठावीस त्रिखुणां, चोवीस चोखुणां, तेवीस वाटला अने बत्रीस पुष्पावकीर्ण बिमान ने तेना उपर असंख्यात जोजनेअथवा तेरमाराजलोकने मे उपरनुं त्रीजुत्रीकडे. तेनां एकसो विमान ने तेमां सोळ त्रिखूणां, बार चोखुणां, अगियार वाटलां अने एकसठ पुष्पावकीर्ण विमान बे, एम नवग्रेवेयकनां सर्वे मळी त्रणसे अढार विमान . तेनां नोयतळीयानो पृथ्वीपीम बे हजार बसेंजोजन जामोडे ते विमानो एक हजार जोजननां ऊंचा, केटलाएक संख्याता अने केटलाएक असंख्याता जोजनना लांबा पहोळा अने एक धोळा वर्णनांजले. नवअवेयकनी उपर असंख्यात जोजने अथवा चौदमा Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) राजलोकनां बेमे आकाशनां आधारे पांचअनुत्तरविमान ले तेनोएक प्रतरने पांच विमान .तेमां वचनु सर्वार्थसिविमान लाख जोजन- लांबु पहोलू अने वाटडं जे ते सर्वार्थ सिह विमाननी चारे दिशाए अनुक्रमे विजय, विजयंत, जयंतने अपराजीत एम चार विमान . ते त्रिखुणां . ते विमानना नोंयतळीयानो पृथ्वीपीमबे हजारने एकसो जोजन जामो बे. ते विमानो एक हजार ने एकसो जोजन उंचा, असंख्यात जोजननां लांबा पहोळां अने एक धोळा वर्णनांज . ते पांच अनुत्तर विमाननी उपर बार जोजने, पीस्तालीस लाख जोजननी लांब पदोळी, बत्राकारे, मध्यत्नागे था जोजननी जामी, मे माखीनी पांख जेवी पातळी, एकक्रोम बढ़ेतालीस लाख त्रीसहजार बसें उंगणपचास जोजन काफेरी परिधि अने पाणीनाकणीया,मचकुंदनुंफूल,रुपानोपाटो ने मोतीना हारथी पण अधिकउजळी एवी प्तिपशिलाले. ते सिशिलानी उपर एक जोजनने मे लोकनो अंत डे तीहां एक गाउनो छोनाग एटले त्रणसेंतेत्रीस धनु Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) प्यनी उपर बत्रीस यांगळमां सर्व सिझनाअनंताजीवो रह्यां . ___ बार देवलोक, नवगैवेयक अने पांच अनुत्तर विमानना सर्वेमळीने चोरासीलाख सत्ताणुं हजारने त्रेवीस विमानो .ते विमानो अत्यंत सुगंधीमय, माखणना जेवो मृऽस्पर्श, नित्यग्द्योतवंत, मनोहर,अने जीनजुवनोए सहीत , तथा शब्द, रुप, गंध, रस, स्पर्श, ऋद्धि, गति, लावण्य, कान्ति, स्थिति, ए दशवाना मनोज्ञ जेमां एवा अति सुंदर विमानो ने विषे असंख्यात देवो रहे छे. पृथ्वीकायादि एकेंख्यिनां-पांच दंमकबे इंजियादि विगछियनां त्रण दंगक तिर्यंच पचेंडियनो एक दंभक अने मनुष्यनो एक दंझक एम दश दंमके जुवनो अनिश्चल अनित्य अने अनियमीत जे. जुवनपति निकायमा सातकोमने बहोंतेर लाख जीनजुवन , वैमानिकमां चोरासीलाख सत्ताएं ह. जारने त्रेवीस जीन जुवन ने अने ति लोकमांत्रण हजार बसें उंगणसाठ जीनजुवन के. एम सर्वे मळी Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) आक्रोम सत्तावनलाख बसें ने ब्यासी तथा व्यंतर निकाय अने ज्योतिषीमां असंख्याता जीनजुवनो. ते सर्वेशास्वता बे. जुवनपति निकायनां दरेकजीनजुवनमा एकसो एंसी एंसी जीनप्रतिमाजी ने. नवग्रैवेयकना त्रणसें अढार अने पांच अनुत्तरनां पांच मळीने त्रणसें त्रे वीस जीनजुवनोमा एकसोवीस वीस जीनप्रतिमाजो अने बीजा सर्व वैमानिकना जीनजुवनोमां एकसो एंसी एंसी जीनप्रतिमाजी . तिर्वा लोकनां साठ जीनजुवनोमां एकसो चोवीस चोवीस अने बाकीना त्रण हजार एकसो नवाणुं जीनजुवनमा एकसोवीस वीस प्रतिमाजी . एम गणतां सर्वमळी पंदरबज बेतालीस करोड अठावन लाख उत्रीस हजारने एंसी जीनप्रतिमाजी तथा व्यंतर निकायमां अने ज्योतिषीमां असंख्यात जीनप्रतिमाजी ने.सर्व जीनप्रतिमाजी ऋषन्न, चंबानन, वारिखेण ने वईमान ए चार नामनी अने सदा शास्वती ॥ इति जुवनहार ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) अथ त्रीजु शरीरहार. शरीर-"शीर्यते तबशरीरं " प्रतिक्षणेपुद्गलना उपचयअपचयेकरीने वधे, घटे ते शरीर कहीए; ए शरीर पांच .१ औदारिक, २ वैक्रिय, ३ आहारक, ४ तैजस, ५ कार्मण, - औदारिक-उदार-प्रधान तिर्थंकरगणधरादिक पदवीनीअपेक्षाएसर्वशरीरोमां उत्तम, स्थुल पुद्गलोर्नु बनेझुं, उत्पन्नथयापनीतरतवधे, घटे, परिणमे अने - दन नेदन ग्रहणादियश्शकएवं; औदारिकनाम क. मनांउदये औदारिकशरीरयोग्य पुद्गलग्रहणकरीजीव पोताना प्रदेशसाधेमेळवी शरीरपणेनिपजावे ते श्री. दारिकशरीरकहेवाय . वैक्रिय-विविध प्रकारनी विक्रिया करे जेमके नानामोटुं-मोटानुनानु, सुरुप-कुरुप-कुरुपर्नुसुरुप, दृश्य-अदृश्य-अदृश्य-दृश्य, एकनुं अनेक-अनेकनुं एक, अप्रतिघातीनुं प्रतिघाती-प्रतिघातीन अप्रति घाती, नूचरनुंखेचर-खेचरनुं जूचर, इत्यादि घणा प्रकार- यश्शकेएवं वैक्रिय नामकर्मनां उदयथी वैक्रिय Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४ ) शरीर योग्य पुद्गल ग्रहण करी जीव पोताना प्रदेशनी साथे मेळवी शरीर पणे निपजावे ते वैक्रियशरीर कहेवाय छे. ते वैक्रिय शरीरनां घे नेद छे. १ नव प्रत्ययिक, २ लब्धि प्रत्ययिक.. पाहारक-अल्पकाळने माटे जे ग्रहण कराय ते श्राहारक शरीर, चौदपूर्वधर लब्धिवंत साधु संदेह टाळवानिमिते अथवा तिर्थकरनीरीछि जोवाने अर्थे स्फाटिकनां जेवू अति उज्वळ, मुढा हाथ प्रमाण, अंतरमूहुर्तनीस्थितिवाळू; आहारकनामकर्मोदये आहारकशरीरयोग्य शुन्न विशुः६ पुद्गल ग्रहण करी जीवप्रदेशसाथे मेळवी शरीरपणे निपजावे ते आहारक शरीर कहेवाय डे. ___तैजस-तेजनो विकार, तेजोमय, तेजपूर्णएवं; करेला नोजनने पचावनार अने तेजोलेश्या तथा श्रापके अनुग्रहनां प्रयोजनवाळू, तैजस नामकर्मनां उदयथी तैजस शरीर योग्य पुद्गल ग्रहण करीजीव पोताना प्रदेशनी साथे मेळवी शरीरपणे निपजावे ते तैजस शरीर कदेवाय . Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) कामण-कर्मनोविकार, कर्ममय, कर्मस्वरुप, सर्व शरीरोनुं बीज एवं, खीरनीरनीपेठे जीव प्रदेशनीसाथे जे कर्मदळमळीरह्यांडे ते कार्मण शरीर कहेवाय डे. औदारिकनी अपेक्षाए वैक्रियनां प्रदेश असंख्यातगुणा, वैक्रियनी अपेक्षाए आहारकनां प्रदेश असंख्यातगुणा, आहारकनी अपेक्षाए तैजसनां प्र. देश अनंतगुणा अने तैजसनी अपेक्षाए कार्मण शरीरनांप्रदेश अनंतगुणा ने, औदारिकथी वैक्रियनी अवगाहनां सूक्ष्म, वैक्रियथी आहारकनी अवगाहनां सूक्ष्म अने आहारकथी तैजसने तैजसथी पण कार्मणनी अवगाहनां सूदम . तैजस अने कार्मण शरीर अप्रतिघाति एटले कोथी रोकाय नहि अथवा कोश्नेरोकेनहिएवा, जीवने अनादिसंबंधवाळा . नारकीनो एक दमक, जुवनपतिना दशदंमक, ज्योतिषीनो एक दमक, व्यंतरनो एक दंमक अने वैमानिकनो एक दंगक, ए चौद दंगके वैक्रिय, तैजस Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) अने कार्मण, एम त्रण शरीर होय . बे इंजिय, ते इंडिय, चौरिध्यि, पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय अने वनस्पतिकाय, ए सात दंमके, तथा समुर्छिम तिर्यंच पंचेंज्यि अने समुर्बिम मनुष्यने औदारिक तैजस ने कार्मण एम त्रण शरीर होय , वायुकाय अने गर्नज तिर्यंच पंचेंपियना दंमके औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने कार्मण, एम चार शरीर होय अने गर्नज मनुष्यना दंमके पांचे शरीर होय . ॥ इति शरीरहार ॥ अथ अवगाहना हार. अवगाहना-शरीरनुं प्रमाण-जघन्य तथा उस्कृष्ट चोवीश दंमके कहे . प्रथम नारकीना दंगके सामान्यपणे अवगाहना जघन्य अंगुलनां असंख्यातमां नाग जेटली अने उत्कृष्ट पांचशे धनुष्यनी ने, जुदी जुदी नारकीनीअ. पेक्षाए पहेली नारकीनी पोणाग्राउ धनुष्य ब अंगुल, बीजी नारकीनी सामापंन्नर धनुष्य बार अंगुल त्रीजी नारकीनी सवाएकत्रिस धनुष्य, चोथी नारकीनी Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) सामीबासठ धनुष्य, पांचमी नारकीनी सवासो धनुष्य, बही नारकोनी अढीसें धनुष्य अने सातमी नारकीनी पांचसे धनुष्यनी वधारेमां वधारे अवगाहनां . प्रथम नारकीमा पहेलो प्रतरे नारकीना जीवोर्नु उत्कृष्ट देहमान त्रण हाथर्नुकछु , अने बीजा प्रतरे पांच हाथ सामाआ3 अंगुळमुं, त्रीजा प्रतरे सातहाथ सत्तर अंगुळy देहमान डे; एम दरेक प्रतरे प्रतरे बे हाथ सामायाग्याउअंगुळ वधारतां बेवा तेरमा प्रतरमा नारकीना जीवोनुं उत्कृष्ट देहमान पोणाबाठ धनुष्य ने ब अंगुळनुं जाणवं. बीजी नारकीमा पहेले प्रतरे नारकीना जीवोनुं उत्कृष्ट देहमान पोगाथाउ धनुष्य ने उ अंगुलनु का बे, अने बीजा प्रतरे सामााउ धनुष्य ने नव अंगुलनु, त्रीजा प्रतरे सवानव धनुयष्यने बार अंगुलनु, एम दरेक प्रतरे त्रण हाथने त्रण अंगुल वधारता बेलां अगियारमा प्रतरमा नारकीना जीवोनुं उत्कृष्ट देहमान साडा. पन्नर धनुष्यने बार अंगुलनुं जाणवू, त्रीजी नारकीमा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) पहेला प्रतरे सामापन्नर धनुष्यने बार अंगुलनु, बीजा प्रतरे सामासत्तर धनुष्य सामासात अंगुलनुं एम दरेक प्रतरे सातहाथने सामागणीस अंगुलनी वृद्धि करता करता बेल्ला नवमा प्रतरे सवाएकत्रीस धनुध्यनुं उत्कृष्ट देहमान जाणवू. चोथी नारकीमा पहेले प्रतरे सवाएकत्रीस धनुष्य- देहमान कयु ने अने बीजा प्रतरादि दरेक प्रतरे पांच धनुष्यने वीस अंगुळनी वृद्धि करता करता बेक्षा सातमा प्रतरे सामी बासठ धनुष्यनुं उत्कृष्ट देहमान जागवू. पांचमी नारकीमा पहेले प्रतरे सामोबासठ धनुष्यनुं अने बीजा प्रतरादि दरेक प्रतरे पन्नरधनुष्यने अढीहाथनी वृद्धि करता करता बेल्ला पांचमा प्रतरे एकसो पच्चीस धनुष्यनुं उत्कृष्ट देहमान जाणवू. ही नारकीमां पहेले प्रतरे एकसोपच्चीस धनुष्यनुं अने बीजा प्रतरादि दरेक प्रतरे सामीबासठ धनुष्यनी वृद्धि करता करता बेला त्रीजा प्रतरमा नारकीना जीवोनुं उत्कृष्ट देहमान बसेंपच्चास धनुष्यनुं जाणवू. सातमी नारकीमा एक प्रतर ने तेमांना नारकीनां जीवोनुं उत्कृष्ट Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) देहमान पांचसें धनुष्यनुं जाणवुं; ए प्रमाणे साते नारकीमां दरेक प्रतरोना नारकीनुं जव प्रत्ययिक शरीर मानक ने ते नारकीना जीवो उत्तरवै क्रिय शरीर करे तो जघन्यथी अंगुलना संख्यातमां जाग जेटलुं अने उत्कृष्टथी पोताना जव प्रत्ययिक शरीरथी बमणुं करी शके बे.. भुवनपतिना दशदंमक, व्यंतरनो एक दंगक ज्योतिषीनो एक दंगक एम बार दंगके देवदेवनुं जव प्रत्ययिक शरीर एटले स्वाभाविक शरीर जघन्य अंगुळना असंख्यातमां जाग जेटलुंने उत्कृष्ट सात हाथनुं होय . अने ते देवो उत्तरवैक्रिय शरीर करे तो जघन्य अंगुलना संख्यातमां जाग जेटलुंने उत्कृष्ट लाखजोजनपर्यंत करी शके बे, जघन्य शरीर उत्पत्ती समज होय . पृथ्वी काय, अपकाय, ते काय वाकाय ने साधारण वनस्पतिकायना जीवोनुं शरीर जघन्य अने उत्कृष्टथी अंगुळना असंख्यातमा जाग जेटलुं होय ते. प्रत्येक वनस्पतिकायनुं शरीर जघन्यथी अंगुळना असंख्या ف Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) तमा नाग जेटयुने उत्कृष्टथी हजार जोजनथी काकेलं जाणवू. सूदम ने साधारण नाम कर्मना उदए करीने अनंता जीवोए ग्रहण करेबुं एक शरीर ते सूक्ष्म नि. गोद (सूम साधारण वनस्पतिकाय)नुं शरीर कहेवाय ए शरीर, सर्वजीवोना शरीरथी अतिसूक्ष्म अंगुलना असंख्यातमा नाग जेटवू दे. सूक्ष्म निगोदिवाना शरीरथी असंख्यात गणुं मोटु सूक्ष्म वाजकायनु शरीर जाणवू. एटले असंख्याता सूदमनिगोदना शरीरे एक सूक्ष्म वाउकायतुं शरीर होय . सूक्ष्म वायुकायना शरीरथी असंख्यात गणुं मोटु सूक्ष्म तेजकाय, तेथी असंख्यातगणु मोटुं सूदम अपकायतुं अने तेथी असंख्यातगणुं मोटु सूक्ष्म पृथ्वीकायतुं शरीर कयुं . हवे सूक्ष्म पृथ्वीकायना एक शरीरथी असंख्यात गणुं मोटु एक बादर वाउकायर्नु, तेथी असंख्यातगणुं मोटु एक बादर अग्नीकायर्नु, तेथी असंख्यातगणुं मोटु एक बादर थपकाय, तेथी असंख्यातगणुं मोटु एक बादर पृथ्वी Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) कायर्नु अने तेथी पण असंख्यातगणुं मोटु एक बादर निगोद (साधारण वनस्पति काय)नुं शरीर का डे. ए प्रमाणे पांच सूदमने पांच बादर ए दशेना शरीर मांहोमांहे एक बीजाथी अनुक्रमे असंख्यात गुणा मोटा मोटा कह्या बे, परंतु दशेना शरीरोमांहेर्नु मोटामां मोटु शरीर पण अंगुलना असंख्यातमा नाग जेटबुंज जाणवू कारण के अंगुलना असंख्यातमां नागना पण असंख्यात नेद कह्या बे. .... पृथ्वीकायादिक पांचे सूक्ष्म एकैछिय जीवोना शरीर एवां सूमके, एक शरीरतो देखायज नदि पण असंख्याता के अनंता सूक्ष्म जीवोना शरीरोनो पीम एकठो होय तो पण ते देखाता नथी अने प्रत्येक वनस्पति काय सिवाय पृथ्वीकायादि पांचे बादर एकेंजिय जीवोना शरीर पण एवा जीणा के ते असंख्याता जीवोना शरीरनां पीक एकगं होयतोज देखाय ले तेने माटे शास्त्रज्ञो कहेले के एक पत्थर के मीगना ककमाने को अतिबलवान पुरुष घणी वखत वाटी वाटीने कीणो जुको करे तोपण तेमां Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहेला केटलाएक जीवशरोरोने कोखामणा थाय अने केटलाएक जीवशरीरने कीलामणा पण न थाय, केटलाएक मरे ने केटलाएक मरे पण नदि अने केटखाएकने तो मालम पण पमे नहि. जेमके-बार जोजननी लांबीने नव जोजननी पहोळी नगरीने विषे घणा सोको वसे , तेमां कोश्ना घेर चोर धामपामे, बुंटे के मारे, तेनी खबर नगरीना लोकमां कोश्ने पमे ने कोश्ने न पड़े, तेम अहीं पण जाणी खे. ... शंख विगेरे बेइंडिय जीवोनुं उत्कृष्ट शरीर प्रमाण बारजोजननु, कानखजुरा, विगेरे तेत्रिय जीवोनुं उत्कृष्ट शरीर प्रमाण त्रणगाजनुंअने नमा विगेरे चौरिऽिय जीवोनुं उत्कृष्ट शरीर प्रमाण चार गाउनुं का बे, बेजिय, तेइंडिय अने चौरिप्रियजीवोनुं जघन्य शरीरप्रमाण अंगुलना असंख्यातमा जाग जेटबुं जाणवू. . गर्नजजलचर तथा उरपरिसर्पनी उत्कृष्ट अवगाहना एकहजारजोजननी, गर्नज जुजपरिसर्पनी पृश्क्त्व ( बेथी नव ) गाउनी, गर्नज चोपगा (गाय Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (40) विगेरे ) नी बगाउनी अने गर्न खेचरजीवोनी पृथक्त्व धनुष्यनी उत्कृष्ट अवगाहना कही बे. समुच्छिम जलचरनी उत्कृष्ट अवगाहना हजार जोजननी, समुमि नरपरिसर्पनी पृथक्त्व जोजननी, समुमि चोपगानी पृथक्त्व गाउनी अने समुर्खिम भुजपरिसर्प तथा समुर्छिम खेचरजीवोनी पृथक्त्व धनुयनी उत्कृष्ट अवगाहना कही बे. तिर्यंच पचेंद्रिय कोइ जीव लब्धियोगे वैक्रिय शरीर करे तो जघन्य गुलनो संख्यातमो नाग ने उत्कृष्ट नवसेंजोजन सुधी करी शके बे. → समुमि मनुष्योनुं उत्कृष्ट अने जघन्य देहमान गुलना श्रसंख्यातमां नागनुं कथं बे. गर्भज मनुष्यनुं जघन्य देहमान अंगुलना असंख्यातमा जाग जेटलुंने ऊत्कृष्ट त्रण गाउनुं कयुं छे. क्षेत्रनी छापेकाए पांच देवकुरुने पांच उत्तर कुरुक्षेत्रना मनुष्यनुं उत्कृष्ट देहमान त्रण गाउनुं, पांच हरिवर्षने पांच रम्यकक्षेत्रना मनुष्यनुं उत्कृष्ट देहमान बे गाउनुं, पांच हेमवंतने पांच भैरण्यवृत क्षेत्रना मनुष्योनुं उत्कृष्ट Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) देहमान एक गाउनु, बप्पन्न अंतरछीपना मनुष्यानुं उत्कृष्ट देहमान आठसे धनुष्यनुं अने पांच महाविदेना क्षेत्रना मनुष्योनुं उत्कृष्ट देहमान पांचसें धनुः प्यनुं कडं बे. पांच लरतने पांच औरव्रतक्षेत्रमा पहेले श्रारे, धुरे (आरो बेसतां) त्रण गाउनुं ने बेमे (आरो उतरतां) बे गाउनु, बोजेआरे धुरे बे गाउनु, ने मे एक गाउनु, त्रीजे थारे,धुरे एकगाउनु,ने मे पांचसे धनुष्यनु, चोथेयारे, धुरे पांचसे धनुष्यनु, ने मे सात हाथ, पांचमे आरे, धुरे सात हाथर्नु, ने मे एक हाथy. अने बठे आरे, धुरे एक हाथर्नु, ने मे एक हाथ माठेरुं, देहमान आ अवसर्पिणी काळमां कडं . को मनुष्य लब्धियोगे उत्तर वैक्रिय शरीर करेतो जघन्यअंगुलनासंख्यातमानागजेटलुं ने उत्कृष्ट तो लाख जोजनथी काफेलं पण करी शके.. _ वैमानिकनां दंगके जघन्य शरीर अंगुलना श्रसंख्यातमा नागर्नु उत्पत्ती काळे होय ,अने उत्कृष्ट देहमान पहेला सौधर्म ने बीजा शान देवलोके देव (देवी) नुं सात हाय, त्रीजाने चोथा देवलोके Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवोनुं ब हाथ, पांचमाने बहा देवलोके पाच हा अनु, सातमाने आम्मा देवलोके चार हाथर्नु,नवमा, दशमा, अगियारमा ने बारमा देवलोके त्रण हाथर्नु, नवग्रैवेयके बे हाथर्नु अने अनुत्तर विमाने एक हाथर्नु उत्कृष्ट देहमान कयुं . ___ असुर कुमार निकायना देवोना शरीर स्याम, वायु कुमारना नीला, सुवर्ण कुमार, दिसिकुमार, ने स्तनितकुमारना सुवर्ण जेवा पीळां, अग्निकुमार, वि. द्युतकुमार,ने छीपकुमारना राता,अने नागकुमार तथा उदधिकुमारना गौर वर्णवाळां शरीर कह्यां ने.पिशाच, चूत, यक्ष, महोरग श्रने गंधर्व निकायना देवोना शरीरस्याम, किन्नरना नीला, अने राक्षस तथा किं. पुरुषना गौर (धोला) वर्णवाळां शरीर कह्या . ज्योतिष देवो मांहे तारार्जना शरीर पंचवर्णा अने बीजा सर्वेना तपावेला सुवर्ण सरखा वर्णवाळां शरीर कह्या ३. सौधर्म अने शान देवलोकना देवना शरीर राता सुर्वण सरखा कान्तिवाळा, सनत्कुमार, माहें, अने ब्रह्मदेवलोकना देवोना शरीर कमळनी केसराना स . Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रखा कान्तिवाळा अने लांतकादि उपरना सर्व देवलोकना देवानो वर्ण एक बीजाथी उत्तरोत्तर उज्वल, उज्वलतर अने उज्वलतम कह्यो बे. सिझना जीवोनी क्षेत्रावगाहना जघन्य एक हाथ ने आठ अंगुलनी, मध्यम चार हाथने सोळ अंगुलनी अने उत्कृष्टी त्रणसें तेत्रोस धनुष्यने बत्रीस अंगुलनी जाणवी. था श्रवसर्पिणो काळमां त्रीजा, चोथा धारामा चोवीस तिर्थकर थया तेमनुंदेहमान-रुषन्नदेवनु५०० धनुष्यनु, अजीतनाथर्नु ४५० धनुष्यनु, संन्नवनाथर्नु ४०० धनुष्यनु, अनिनंदन- ३५० धनुष्यनु, सुमतिना थर्नु ३०० धनुष्यनु, पद्मप्रचुर्नु २५० धनुष्यनु, सुपार्श्वनाथनुं २०० धनुष्यनु, चंडप्रजुनुं १५० धनुष्यनु, सुविधिनाथर्नु १०० धनुष्यनु, शीतळनाथनुं एक धनुष्य मुं, श्रेयांसनाथy G० धनुष्यनु, वासुपूज्यनुं ७० धनुप्यनु, विमळनाथर्नु ६० धनुष्यनु, अनंतनाथर्नु ५० धनुष्य-, धर्मनाथ- ४५ धनुष्यनु, शांतिनाथन ४० धनुष्यनु, कुंथुनाथर्नु ३५ धनुष्यनु, अरनाथर्नु ३०धः Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नुष्यनु,मलिनाथ- २५धनुष्यनु, मुनिसुव्रतस्वामिनु५० धनुष्य, नमिनाथनुं १५ धनुष्यनु, नेमिनाथनुं १० धनुष्यनु, पार्श्वनाथनुं ए हाथ, अने वर्षमान स्वामिनु ७ हाथ- देहमान जाणवू. ॥ इति अवगाहनाधार ॥ _ अथ पांचमुं लेश्याहार. जेणे करी जीव कर्म साथे आश्लेश पामे तेने लेश्या कहीए. ते लेश्याना बे नेद , एक व्यलेश्या तथा बीजी नावलेश्या, त्यां आत्माने काळा तथा पीळादिक ऽव्यरुप कर्मपुद्गळ संयोगते अव्य लेश्या, अने तेथी आत्माना शुनाशुन्न परिणाम ते नावलेश्या, अर्थात ब लेश्यानी को एवीजातनी अनंती वर्गणा ने के तेमाथी आत्मानी योग प्रवृति ( मन वचनकायनो व्यापार) ना अनुसारे लेश्यानी वर्गणा ग्रहण कराय ते अव्य लेश्या, अने तेथी जीव उपर थती असर ते नात्र लेश्या जाणवी... अशुन्न लेश्याथी थतीअशुन असर, आत्माना स्वान्नाविक शुन्न अध्यवशाय उपर थती नथी, त्यां Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) अष्टांत कहे बे, जेम लाल, धोळा काचमां प्रतिबींब पमे खलं, पण तेथी ते धोळो काच रंगाय नहि. अधोलोकमां पाये ( घणु करीने ) अशुन्न ऽव्योजले अने उर्वलोकमां प्राये शुन्नमव्यो , माटे अधोलोकमां अशुन्न अव्यलेश्या अने उर्ध्वलोकमां शुन अव्यलेश्याज ग्रहण थांय जे तेथी उर्व अने अधोलोकमां अव्यलेश्या अवस्थित रहे अने नावलेश्या फर्या करे बे. ते लेश्याना नाम परिणाम, लक्षण वर्ण रस स्पर्श गंध स्थानक स्थिती चवनगति अने दंगकादिक कहे . नाम कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म अने शुक्ल ए लेश्याना नाम जाणवा. परिणाम-अव्यलेश्याथी जीवना अध्यवशाय जे थाय ते परिणाम कहेवाय . ते परिणाम ज्छाम्य मध्यम उत्कृष्ट विगेरे घणा प्रकारना है मूळ ते न लेश्याना परिणाम केवा होय? तेने मेंटे. कहने के ॥गाथा ॥ पंथान परिद्नष्ठा, उ पुरिस्सा अमवि मावा गारंम्मि जंबु तरुस्स देठा, परप्परंतेवि चिंतेति.॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) निम्मूल खंध साखा, सालागुडे पक्केय परिय सडियाएं, जह एएहिं जावा, तह लेसान विनायवा, ॥ १ ॥ मार्ग की परिष्ट थयेला एवा व पुरुषो वनम याराम लेवाने एक जंबुवृनी देव (नीचे) यावी बेठा, ने माहोमा विचारखा लाग्यो के आ वृक्षना फळ नक्षण करीने यापणे कुधातृषा समावीए, एम विचारी एक पुरुष फळने अर्थे ते वृक्षने मूळथी बेदवा लाग्यो, त्यारे बीजो कहे थमथी बेदीए, त्रीजो कहे मोटी माळा बेदीए, चोथो कहे नानी माळी बेदीए, पांचमो कहे के फळनेज तोमीए त्यारे बो कड़े के पृथ्वी उपर खरी पमेला फल मध्ये थी वीणी खइए. जेम एव पुरुषना परिणाम जुदा जुदा तेम कृष्णादी कथी मांगी यावत् शुक्ल लेश्याना परिणाम पण जुदा जुदा जाणवा. लक्षण - पांचे याश्रव, त्रण अगुप्ति, व जीवनि कायनीति, यरंजने विषे तित्र परिणाम, डोहि, पापने विषे साहसिक, सुग (डुगंधा) सहित, निध्वंश Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिणाम अने अजीतप्रिय वगेरेना व्यापारेसहित जीवनापरिणाम ते कृष्ण वेश्यानुं लक्षण जाणवू. इर्षा, श्रमर्षवंत. श्रतपस्वि, मायावि, पापथकी बीहेनहि, गृह (थाशक्त), प्रमादी, रसनोलोलुपी, मायागघेषी, थारंजी भवति अने पापनेविषेसाहसिक वि. गरेव्यापारेसहितजीवनापरिणाम ते नीललेश्यानुं सक्षणजाणवू. वांकु वांकु समाचरे, नीवम माया करे, सरख पणाथी रहित, मोढे जुदो अने पुंठे जुदो, मिथ्यावि, थनार्य, पुष्टवचनबोले, चोर अने महरी विगेरेना व्यापारेसहितजीवनापरिणाम ते कापोतलेश्यानुसक्षणजाणवू. श्रमार, अचपळ, अकुतुहळी, विनित, दमितेंघिय योगवंत, उपधान वंत, पुढधर्मी, प्रियधर्मि अने पापथकी बीहे, ए विगेरे व्यापारसहित जीवनापरिणाम ते तेजोलेश्यानुं ल. क्षणजाणवू. क्रोधमानमाया श्रने खोलए चारे कषाय पातळा, प्रशांत चित्त, (इजियोने दमनार),योगवंत, उपधानवंत, थोमॅबोले उपशांत श्रने जीतेंघिय विगेरे व्यापारे सहित जीवनापरिणाम ते पद्मलेश्यानुं Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) लक्षणजावं. या रौद्र ध्यान वर्जी धर्म शुक्ल ध्यान ध्यावे, प्रशांत चित्त, आत्म रमणता, पांच समितिए समित, त्रण गुतिए गुप्ता, सरागी तथा वितरागी उशांत चित्ताने जीतेंद्रिय विगेरे व्यापारे सहित जीवनापरिणाम ते शुक्ल लेश्यानुं लक्षण जाणवुं. वर्ण - स्निग्ध मेघनीघटासरखो, नेंसना शिंगमानीगोळी, अंजण, खंजण, अरिष्टरत्न, नेत्रनी कीकी ने काळा सुरमाथी अनंत गुणो कृष्ण लेश्या नो वर्ण महा जयंकर जाणवो. अशोक वृना अंकुर, नीलचाशपक्षी ने वैकुर्यरत्नथी अनंत गुणो नील लेश्या नोवर्ण जावो. अळशी नाफूल, कोकीलानी पां ने पारेवानाकंवना वर्णथी अनंतगुणो कापोत लेश्यानोवर्ण जावो. हिंगळोक, जगतो सूर्य, दिपकनी शीखा, पोपटनीचांच ाने तपावेला लाल सोनानावर्णथी अनंतगुणो तेजो लेश्यानो वर्ण जावो. हरियाळनो मध्यवर्ण, हळदर छाने सेणानाफूलना वर्णथी अनंतगुणो पद्मलेश्यानो वर्णजावो. शंख, मचकुंदना फूल, दूध, पूर्णचंद्रमा, मोतीनो दार ने Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) रुपाना वर्णथी अनंतगुणो शुक्ल लेश्यानोवर्ण जाणवो. ..गंध-गाय, श्वान अने सापनाशब (मुमदा)ना गंधथी अनंतगुणो खराब गंध कृष्ण, नील अने का. पोतलेश्यानोडे. वासपीस, कपुर, कस्तुरी अने उ. त्तम अत्तरोथी पण अनंतगुणो प्रशस्त (सारो) गंध तेजो, पद्मअनेशुक्ल लेश्यानो जाणवो. ___ रस-कमवा तुंबमा, इंऽवारुणी, लीबमो अने रोहणना रसथी अनंतगुणो कमवोरस कृष्णलेश्या नो जाणवो. सूंठ, मरी, पीपर अने गजपीपरना रसथी अनंतगुणोतीखोरस नीललेश्यानोजाणवो.काची केरी अने काचाकोग्नारसथी अनंतगुणो तुरोरस कापोतलेश्यानोजाणवो. पाकाआंबा,पाका को अने पाकाबीजोरानारसथी अनंत गुणो मोठोरस तेजोखेश्यानोजाणवो.प्रधानवारुणी, (मदीरा)विविधप्रकारनाआसवभने मधकरतांअनंतगुणोमीठोरस पद्मलेश्या नोजाणवो.खजुर,जाद,ऽध,साकर,खांम अने गोळथी अनंतगुणो गळ्यो रस शुक्ल लेश्यानो जाणवो.. . स्पर्श-काकचीनापांदमा, गायनीजीन, सागना Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) पत्र अने करवतनीधारथी अनंतगुणो करकश स्पर्श कृष्ण नील अने कापोत लेश्यानो जाणवो, बुरो ना. मनीवनस्पति,सरसवनाफुल श्रने मांखणथीथनंतगुणो सुमाळस्पर्श तेजो, पद्म अने शुक्ललेश्यानो जाणवो. . स्थानक-असंख्याती उत्सर्पाणी, श्रवसीणीना जेटलासमयथाय, अथवा लोकनाजेटलाप्रदेश थाय तेटला खेश्याना स्थानक डे ते जाणवा. ___ स्थिति-खेड्याजीवनेकेटलोवखत रहे एम कहेवू तेनुनामस्थितिकद्देवाय. आए लेश्यामांथी दरेकलेश्या उगमांउनी(जघन्य) अंतरमुहुर्तरहे अने वधारेमा वधारे (उत्कृष्ट) कृष्णवेश्यानीस्थिति. तेत्रीससागरोपमउपरअंतरमुहुर्तनी. नीललेश्यानी उत्कृष्टीस्थिति दशसागरोपमउपर पख्योपमनोअसंख्यातमो नाग, कापोत लेश्यानी उत्कृष्टीस्थिति त्रणसागरोपमउपर पस्योपमनोयसंख्यातमोनाग, लेजोलेश्यानी उत्कृष्टी स्थिति सागरोपमउपर पक्ष्योपमनोअसंख्यातमो नाग, पद्मखेश्यानी उत्कृष्टीस्थिति दशसागरोपमनपर अंतरमुहुर्त श्रने शुक्ल लेश्यानी उत्कृष्टी स्थिति तेत्रीस Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६ए) सागरोपमउपरअंतरमुहुर्त जे. · व्यवन-कश् लेश्याएजीव कश् गतिमांजाय एम जे कहे, तेनुनाम अहीं च्यवन कहेझुंडे. कृष्ण, नील अने कापोत एत्रणलेश्यावाळाजीवों च्यवी ( मरी) ने उरगति(नारकी तथा तिर्यंच)मां जाय,अने तेजो पद्म अने शुक्ल एत्रणलेश्यावाळाजीवो च्यवीने सद्गति [मनुष्य अने देवगति]मां जाय. ' गाथा, अंतमुहुत्तम्मिगए ॥ आंतमुहुत्तम्मि सेस ए चेव । खेसाहि परिणयाहि ॥ जीवा वच्चंति परलोयं ॥ अर्थ-मनुष्य तथा तियेच ते परनवनी खेश्या श्राव्यापली, अंतरमुहुर्तेमरणपामे, अने देवता तथा नारकी पोतानी मुलगी (नवस्थ ) लेश्यानुमुहुर्त थाकतुं रहे [बाकी रहे ] तेवारे मरणपामीने परजव जाय. .. अल्पबहुत्व-कश्लेश्याए जीवथोमा अने कर खेश्याए जीवघणाहोय एमकहे, ते अल्पबहुत्व. बए सेश्यामांहे सर्वथीयोमाजीबो शुक्ललेश्याए होग, Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) शुक्ललेश्यावंतकरतां पद्मलेश्याए जीव असंख्य गुणा होय, पद्मलेश्याथी तेजोलेश्याएवर्तता जीवो असंख्य गुणाजाणवा, तेजोलेश्याएवर्तता जीवोथी कापोतलेश्याएवर्तताजीवो अनंतगुणाजाणवा. कापोतलेश्यावंतजीवोकरतां नीललेश्याएवर्तताजीवो विशेषाधिक अने नीललेश्यावंत जीवोथीपण विशेषाधिक कृष्णखेश्यावंतजीवोकह्यां ने, एटले सर्वलेश्याउँमा सर्वथी अधिकजीवो कृष्णलेश्याएहोय. गति-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति अने देवगति. एचारगति तेनेविषे लेश्यानीस्थिति कहे डे-पहेलीनरकगतिमां कृष्णलेश्यानी दससागरोपमाधिकपत्योपमनोअसंख्यातमोनाग जघन्य, अनेतेत्रीश सागरोपमनीउत्कृष्टी स्थिति बे, तथा नीललेश्यानीत्रण सागरोपमाधिकपक्ष्योपमनोअसंख्यातमोनागजघन्य अने दससागरोपमाधिक पढ्योपमनोअसंख्यातमो नाग उत्कृष्टीस्थितिजे.अने कापोतलेश्यानीदशहजार वरसनीजघन्यने त्रणसागरोपमाधिक पढ्योपमनो असंख्यातमोजाग उत्कृष्टीस्थितिजाणवी. बीजी तिर्य Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) वगति अने त्रीजी मनुष्यगतिने विषे बएलेश्यानी जघन्य तथा उत्कृष्टी स्थिति अंतरमुहुर्तनीबे, पण तेमा एटलुं विशेष जाणवुंके मनुष्यगतिए शुल्कलेश्यानी उत्कृष्ट स्थिति केवळी मनुष्यनी अपेक्षाएनववरसउणी पूर्व क्रोमवरसनी होयडे. एटलुं विशेषजाणं. वे चोथी देवगतिए समुदाये बल्लेश्या होय तेमां कृष्णलेश्यानी जघन्यस्थिति दशहजारवरसनी अने उ. स्कृष्टी स्थितिएकपल्योपमनाश्रसंख्यातमांनाग जेटली जाणवी, जेटली कृष्णवेश्यानी उत्कृष्टी स्थिति कही तेथे एकसमयअधिक नीललेश्यानी जघन्य स्थिति ने उत्कृष्टी स्थितिपट्योपमना असंख्यातमां जागजेटली जाणवी, जेटली नीललेश्यानी उत्कृष्टीस्थितिकड़ीबे तेथी एकसमयाधिक कापोतलेश्यानी जघन्य स्थिति ने उत्कृष्टी स्थिति पल्योपमनाथसंख्यातमांनाग जेटली जाणवी, हवे तेजोलेश्यानी जघन्य स्थिति दशहजारवरसनी ने उत्कृष्टी स्थिति बेसागरोपमउपर पल्योपमना असंख्यातमांज्ञागजेटली जाधवी, जेटली तेजोलेश्यानी उत्कृष्टी स्थि तिकड़ीछे Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) तेथी एकसमयअधिक पद्मलेश्यानी जघन्यस्थिति अने उत्कृष्टीस्थिति दशसागरोपमयधिक अंतरमुर्छतनीजाणवी, जेटली पद्मलेश्यानी उस्कृष्टीस्थितिकही ने तेथी एक समयअधिक शुक्लेश्यानीजघन्य स्थिति डे अने उत्कृष्टी स्थिति तेत्रीससागरोपम उपर अंतर मुहर्तनीजाणवी. जेम लोटामां, नाना घमामां अने मोटाघमामांथी पाणीनरेढुहोय तेमां ते दरेकमा असंख्याता जीवळे अने ते एकबीजानीअपेक्षाए थोमा काका जीवकहेवाय , तेम कृष्ण, नील अने का. पोत लेश्यानी उपर कह्या प्रमाणे पोपमनायसंख्यातमांनागनीउत्कृष्टी स्थितिकही ते दरेक एक बीजाथी अधिक अधिकतर जाणवी केमके असं. ख्यातानाअसंख्यातानेदडे एम सर्वत्रजाणवू. चोवीश दमके लेश्या. नरक गतिमां कृष्ण, नील थने कापोतं ए त्रण लेश्या होय , तेमां पहेलीयनेबीजीनरके एक कापोत लेश्या त्रीजी नरके कापोत थोमी अने नीत . Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) घणी,चोयी नरके एकनीखवेश्या पांचमीनरके नीसथोमीथने कृष्णघणी, बठीनरके एककृष्ण खेश्या अनेसात मीनरके महाकृष्णलेश्याहोय.दशजुवनपतिनादंरके प्रथमनीचारलेश्याहोय.वादर थपर्याप्ता पृथ्वीकाय, अपकाय अने वनस्पतिकायनेविषे प्रथमनीचारलेश्या होय श्रने तेए पर्याप्तिपुरीकर्यापटीतेजोसिवाय बाकी नीत्रण लेश्याहोय.पृथ्वीकायादिकांचेसुदम पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता, पादरतेनकायअने वानकाय पर्याप्ता तथाथपर्याप्ता,विगप्रियपर्याप्तातर्थाथपर्याप्ताअने समु म तियेच पचेंद्रिय पर्याप्तातथाथपर्याप्तानेविषे प्रथमनीत्रणलेश्याहोयडे. समुझेममनुष्यने एककृष्णलेश्याहोय श्रनेगर्नजतिर्यंच तथागर्नजमनुष्यने कृष्णा दिकबएलेश्याहोय.व्यंतर थने वाणव्यंतरने प्रथमनी चार लेश्याहोय ज्योतिषीएतथा पहेलेदेवलोके आने बीजेदेवलोके एक तेजोलेश्या त्रीजे,चोथेअने पांचमेदेव लोके एक पद्मलेश्या,उहादेवलोकथीवारमा देवलोकसुधीश्रने नवग्रैवेयके शुक्ल लेश्यात यापांचअनुत्तर विमाने परमशुक्ललेश्याहोय.सिहनाजीवोधलेश्यावंतजाणवा Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चोवीस दंडके लेश्याद्वार | वैमानिक १ ज्योतिष १ व्यंतर १ गर्भजमनुष्य १ गर्भजतिर्यच १ विगलेंद्रिय ३ वनस्पतिकाय ? तेउकाय १ बाउकाय १ | १ अपकाय १ नारकी १ दक्ष भुवनपति १० १ पृथ्वीकाय १ | १ गावं लेश्या द्वार mmm mm १ कृष्ण. * * * * * * * * * * * * | R its. | छ लेश्याना नाम . om m mom 2 m mmmm |३कापोत. यंत्र.. (R6) mmmm ० ० ० ० ० ० ० ० | ४ तेजो. ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० | ५ पा. - lam mc m mm c alccc c |७कुल. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) अथ तुं इंडियधार. इंडिय-इंश एटले परमेश्वर्यवान् श्रात्मा तेर्नु चिन्ह अथवाजीवेरचेल, सेवेल अने जीवाधिन ते इंप्रियजाणवी. ते इंडियोपांचवे, १ स्पर्शेडिय (चाममी), ५ रसेंघिय (जीन), ३घ्राणेंजिय, (नाक), ४ चकुरिंजिय (नेत्र ) अने, ५ श्रोडिय (कान), दरेकइंडियो बेप्रकारे, एक अप्रिय अने बीजी जावेंजिय "प्रिय ते निर्माणनामकर्म अने अंगोपांग नामकर्मनाउदयथी प्राप्तथाय; तेनां बेन्नद , १ निर्वृत्तिऽडिय श्रने ५ उपकरण अप्रिय, निर्वृत्ति प्रवेजियनो बाह्य भने अत्यंतर आकार ले. तेमां बाह्याकार जातिनी अपेक्षाए घणां प्रकारनो , जेमके:-मनुष्यनांकान संदरनेत्रनीबन्नेबाजुए,अश्वनांकान उपलानागमांनेश्रणीदारने अने हाथीनांकान मोटा विशाळनेविंफणा (पंखा) ना आकार अथवा कोश्नां नाकचपटां, कोश्ना श्रणीदारहोय एवीरीते पांचेइंडियोनां बाह्याकार घणप्रकारनां ने Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) अने अन्यंतर श्राकारमा स्पर्शेजियनोथाकार घणांप्रकारनो एटले पोतपोतानां शरीरसरखो, रसेंजि. यनोखुरपा (अस्त्रा) सरखो, घाणेजियनो अतिमुक्त. कपुष्पसरखो, चहुरिंडियनो मसुरनीदाळसरखोअने श्रोतेंजियनो कदंब वृक्षनां फुलसरखोथाकार, ए प्रमाणे निर्वृत्ति अने स्वविषय ग्रहणकरवानीशक्तिरुपउपकरणप्रिय जाणवो. - नाजिय-मतिज्ञानावर्णादिकर्मोनां दयोपशमप्रमाणे स्वविषयजाणवानी के समजवानी शक्ति ते नार्वेजिय, तेनां बेन्नेदले. एकलब्धिनार्वेजिय अनेबीजी उपयोगनावेंडिय, लब्धि नावेंद्रिय-जाति अने गत्यादिकोथी अने जातिगत्यादिनेश्रावरणकरवावाळाएवा कर्मनां क्षयोपशमथी जे शक्ति उत्पन्नथायते सब्धिनार्वेजिय कहेवाय . उपयोग जावेंजिय-इंजियोने पोतपोतानांविषयोमांसावधानता एटले जेज्ञाननोव्यापारते उपयोग नावेंडिय कही. स्पर्शे यिनो विषय उनो, टाढो, नारे, हळवो, शिलाध, रुक, मृफु अने बरसट डे, रसेंजियनो विषय Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9.) मीगे, खाटो, कषायेलो, तीखो श्रने कमवो हैं. प्रा. जियनो विषय सुगंध अने दुगंध .चक्षुरिंजियनो विषय पोळो, रातो, पीळो, नीलो भने काळो .श्री. तेंजियनो विषय सचित, अचित भने मिश्र शब्द ले वधारेमांवधारे ( वैक्रिय शरीरनी अपेक्षाए ) स्पर्शेजिय, रसेंजिय थने त्राणेजियनी ग्रहण शक्ति नवजोजनसुधीनी, चक्षुरिंजियनी ग्रहण शक्ति एक लाख जोजनथी काजेरी अने श्रोतेंजिवनी प्रहण शक्ति पार जोजनसुधीनी. पृथ्वीकाय, अपकाय, तेनकाय, वाउकाय अने वनस्पतिकाय ए पांच एकेंद्रिानां दमके एक स्पर्शेद्रिय, शंखविगेरे बेइंद्रियनां दमके स्पर्श अने रस, मांकण विगेरे तेइंद्रियनां दमके स्पर्श, रस अने प्राण, विडी विगेरे चौरिंद्रियना दंभके स्पर्श, रस, घाण अने चतु, नारकी, दश जुवनपति, व्यंतर,ज्योतिषी,वैमानिक, तिर्यंच अने मनुष्यनां दंगके स्पर्श, रस, प्राण, चा अने श्रोत ए पांच इंद्रियो बे. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) ॥ एवं इंद्रियघार ॥ अथ सातमुं समुद्घात हार. समुदघात-सम-एकीनाव, उत्-प्रबळता, घात क्षय एकीनाववमेकरी घणांजकर्मनोदयजेनी अंदर तेनुनाम समुद्घात अथवा वेदनादिना प्रा. बल्यतावमेकरी एकीनावना योगे घणांज कर्मक्षय डे जेक्रियानोअंदर तेनाम समुद्घात, ते समुद्घातसातले. १ वेदनासमुद्घात, २ कषाय समु. द्घात, ३ मरणसमुद्घात, ४ वैक्रियसमुद्घात, ५ तेजससमुद्घात, ६ आहारकसमुद्घात अने s केवलीसमुद्घात. वेदना समुद्घान-अत्यंत वेदनाउत्पन्नथवाथी तेनीअंदरआत्मानुं तन्मयपणुंथश्जवू अने तेमां घणांजर्मनोक्ष्यथवो तेनुनाम वेदनासमुद्घात. ज्यारेजीवने अत्यंतवेदनाथायडे त्यारे पोतानाश्रात्मप्रदेशोबहारनीकळे, ते नोकळेला आत्मप्रदेशथी पोसाणनोनागपुरीदेने लांबाकाळे नोगववालायककर्मने उदीरणाकरणवमेखेंची वर्तमानकाळेनोगवीले, जोके Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) तेवखते कर्मोनोक्ष्य थाय, पण फरी अशातावेदनीयकर्मदळ घणांज बंधायले.अशाता वेदनीयनोज समुद्घात थाय, पण शातावेदनीयनो समुद्घात नथाय कारणके जेनी शांती नथाय तेनेमाटे समुद्घातहोय, पण शांती थाय तेनेमाटे समुद्घात नहोय जेमकेःपोताने क्रोधादिजदयाव्यांडतां तेने विषे तन्मय न थाय ने दबावीराखेतो समुद्घातथायनहि, पण कोधादिययेते तेने न दबावे [ शांती धारण न करे ] ने तेने विषे तनमय एटले एकी नाव थर जाय तो समुद्घात थाय बे, वेदना समुद्घातनो काळ अं. तर मुहुर्तनो . . कषायसमुद्घात-ज्यारे जीवने तिनकषाय थाय त्यारे कषायनीप्रबलतावमेकरीने एकीनाव [ तनमय ] ना योगे पोताना आत्मप्रदेशो बहार नोकळे डे, नीकळेलाजीवप्रदेशथी पोलाणनोनाग पुरीदेडे अने लांबाकाळे नोगववालायक कषायने उदीरणा करणवझे खेंची वर्तमानकाळे नोगवी लेले. तेथी ते कर्मोनो तो तय थाय पण अशुन परिणाम Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) व बीजा नवा कर्म घणां बंधाय . ते कषाय समुद घातनो काळ अंतरमुहुर्तनो डे ने पीथी यात्मप्रदेशो शांत थ जाय . ___ मरण समुद्घात-ज्यारे जीवने अंतरमुहुर्त था. युष्य धाकीहोयत्यारे आत्मानाप्रदेशोने जे गतिमा जवानुहोयत्यांसुधीलंबावेले अने अंतरमुहुर्तनुं श्रायुप्य जोगवीले श्रावखते ते नवसबंधीना बाकीरहेला कर्ममोक्षयकरेले पण ते समुद्घातथी नवांकर्मो बं. धातानथो. मरणसमुद्घात असमाधीवाळो जीवकरले. ___ वैक्रिय समुद्घात-ज्यारे जीवने वैक्रिय समुद्घात करवीहोय त्यारे वैक्रियनामकर्मवझे वैक्रिययोग्यपुजलग्रहणकरीने श्रात्मप्रदेशो बहार काढी श्रनेकरुप करे ने वैक्रिय समुद्घात जोगवी खेडे. तेनो काळ उत्तरवैक्रियशरीरनी विकुर्वणानाप्रमाणेजाणवो. तैजस समुद्घात-ज्यारे जीवने तैजस समुद्घात करवी होय, त्यारे तेजस नामकर्मवमे पुलोग्रहण करी जेना उपर तेजो लेश्या मुकवी होय, त्यांसुधी आत्मप्रदेशो लंबावे, जेनाउपर तेजो लेश्या मूकी होय Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) अने ते लेश्या जो शीतळ होय तो तेने शांत करे ने उष्ण लेश्याहोयतो बाळी नांखेले. तैजस समुद्घात नो काळ अंतरमुहुर्तनो बे.. - आहारक समुद्घात-ज्यारे जीवने आहारक समुद्घातकरवीहोयत्यारे आहारक शरीर नामकर्मवझे करआहारकनांपुजगलोलश्ने मुंढाहाथ प्रमाण शरीरकरे ने तेनीअंदरयात्मानाप्रदेशो खेपवी महाविदेह क्षेत्रने विष तिर्थकरनीहिजोवा अथवा कोश सूदमशंकानुसमाधानकरवा मोकले बे. ते आहारक श्रीरत्यां जर अंतमुहुर्तमां पाबुंधावी विसराळथ जाय रे.. . केवळी समुद्घात-ज्यारे केवळीने समुद्घात करवीहोयत्यारे पोतानाश्रात्मप्रदेशोने बहार काढी चौदराजलोकप्रमाण दंगकरे, बीजेसमये ते प्रदेशोने उत्तरदक्षिण लंबावे, त्रीजे समये पूर्व, पश्चिम संबावे, चोथेसमये आंतरापुरे अने पांचमेसमये ते अांतरा. संहरे, बठेसमये उत्तरदक्षिणना श्रात्मप्रदेश संहरे, सातमे समये पूर्वपश्चिमना श्रारमप्रदेश संहरे अने Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्राठमेलमये दंगसंहरे बे, केवळीसमुद्घातवमे घणां कर्मनो क्षयकरे . नारकी अने वाउकायना दंगके वेदनी, कषाय, मरण, अने वैक्रिय ए चार समुद्घात होयडे, पृथ्वी काय, अप्पकाय, तेउकाय, वनस्पतिकाय, बेइंज्यि, तेत्रिय अने चौरिंडिय ए सातदंमके, एक वेदना बीजी कषाय अने त्रीजी मरण समूद्घात , दश. जुवनपतिना दशदंमक, व्यंतरनो एकदमक, ज्योतिषीनो एकदमक, वैमानिकनोएकदमकने गर्नजतियः चनो एकदंमक एम चौद दंमके, वेदना, कषाय, मरण, वैक्रिय अने तैजस एम पांच समुदघात होयडे अने गर्नज मनुष्यना दमके वेदना, कषाय, मरण, वैक्रिय, श्राहारक, तैजस अने केवळी एम साते समुद्घात कही . ॥ इति समुद्घात हार ॥ अथ थाउमुं संघयण द्वार. संघयण-सहनन एटले हामना संधि विशेष प्राप्त थाय डे शरीरावस्थाना अवयवो जेणे करीने ते र. .. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . ( ३) संहनन अर्थात शरीरना हामनो दृढ दृढतरदृढतमबंध तेने संघयणकहीए, ते संघयण बडे १ वज्ररुषन्न नाराच, ५ रुषननाराच,३ नाराच,४थर्धनाराच,५कीलिका, ६ सेवार्त्त, वज्रषजनाराचसंघयण-वज्र-खीली, रुषन्नपाटो, अने नाराच एटले मर्कटबंध वांदरीने तेनुं बच्चु बे हाथे आंकमा नीमावे के तेम सांधाना हा. मना माहोमाहे आंकमेयांकमाजोमेलाहोय तेने मर्कटबंधकहे, एटलेहामने बेपासे मर्कटबंध तेना उपर बीजुं पाटानी पेठे फरतुं हामकुंअने तेना उपर त्रणे हामने आरपार खीलीरुप हामकुं एवो अति दृढहाढ संधिबंध ते वज्र रुपननाराच संघयण कहेवाय बे. वज्रषननाराचसंघयणवाळो कदि जं. चेथी पत्थरउपरपोतो ते पत्थरना चुरेचरा थइ जाय पण तेनी हामसंधि त्रुटेके वबुटे नहि. ए प्रथम संघयणनो धणी अतिउत्कृष्ट विशुःअध्यवसाये चढती पदवीना देवतामांहे उपजे अने कोइक कर्म खपावी केवळझानपामी मोहपाजाय, अत्यंतदृढतरसंधि Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G४.) वधरुपपदेलासंघयण विना बीजासंघयणथी मोक्ष साधीशकायनहि. अति अशुन्न अध्यवशाए करी सातमी नारकीए पण वज्रषननाराच संघयण वाळोज जाय . - रुषननाराचसंघयण-बे पासेमर्कटबंध अने उपर पाटो होय ते रुषन्ननाराचसंघयणकहेवाय. ए रुषाननाराचसंघयणनोधणी अति उत्कृष्ट विशुः अध्यवसाये बारमा अच्युत देवलोक सुधी अने अति संक्लिष्ट अध्यवसाये ही नारको सुधी जाय बे. नाराचसंघयण-बे पासे मर्कटबंध होय पण उपरपाटोकेखीलीनहोय ते नाराचसंघयण कहेवाय. ए नाराच संघयणनो धणी अतिनत्कृष्ट विशुः६ अध्यवसाये दशमाप्राणतदेवलोकसुधी अने अति संक्लिष्ट अध्यवसाये पांचमी धुमप्रनानारकी सुधी जाय . । अब नाराच संघयण-हामसंधिना एक पासाए मर्कटबंध अने बीजा पासाए कीलिका होय पण बन्ने पासाएमर्कटबंध, पाटोकेखोलिनहोय ते अर्धनाराच Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) कहेवाय. ए अर्धनाराच संघयणनो धणी अति विशुद्ध अध्यवसाए करी ठेवट आउमा सहस्त्रार देवलोक सुधी अने अतिसंक्लिष्टयध्यवसाए चोथी पंकप्रना नारकी सुधी जाय . कीलिकासंघयण-हामसंधिबंध फक्त एक खीलिएज होय पण मर्कटबंधके पाटोन होयते कालिका संघयण कहेवाय. ए कीलिका संघयणनोधणी अति विशुः अध्यवसाए करी बेवट बकालांतक देवलोक सुधी अने संक्लिष्टअध्यवसाए त्रीजीवालुका प्रती नारकी सुधी जाय . सेवार्त-हामकाना बेमा लगे एकएक बीजाची जोमे लागेला होय एटले अमेला होय पण खीलि पाटो के मर्कट बंध न होय ते सेवार्त्त संघयण कहे. वाय. ए सेवार्त्त संघयणनोधणी अति विशुःअध्यवसाएकरी बेवट बहुमां बहु चोथा माहेंड देवलोक. सुधीजाय अने अति संक्लिष्टअध्यवसाए डेवट बीजी शर्करा प्रना नारकीसुधी जायजे. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) __ गर्नज-मनुष्य तथा गर्नज तिर्यंचना दंगके बए संघयण होय. बेप्रिय, तेप्रिय अने चौरिप्रिय ए त्रण दमकने विषे एक सेवा संघयण होय अनेनारकी, जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषीने वैमानिकए चौद दंगक तथा पांच एकेंजियना पांच दमकमळी उंगणीश दमकना जीव बए संघयणरहीत एटले असं. घयणी कह्या बे, कारणके ए उंगणीशदमकना जीवो ने हाड मांस होय नहि अने हाम मांस विना संघयण होतु नथी. केटलाएक आचार्यो तिर्यंच पंचेप्रिय संमूर्बिम अने मनुष्य संमूर्जिमने आए संघयण, पांचे एकेंजियने सेवार्त संघयण अने तेरदेवतानादंमके वज्ररुषन्न नाराच संघयण कहेडे पण ते कथन औपचारीक जाणवू. तिर्थकर, चक्रवर्ती, बळदेव,वासुदेव, तद्नव मोक्षगामी मनुष्य अने असंख्याता वरसना आयुषवाळा तिर्यंच तथा मनुष्योने पहेझुंज संघयणं कयुं . ॥ इति संघयणधार ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्रय नवमुं संस्थान छार. संस्थान-जे श्राकृतियें प्राणी रुमी रीते रहे एवो शरीरनो आकार विशेष तेने संस्थान कहीए तें संस्थान बे प्रकारे बे. एक जीवसंबंधीने बीजुअजीव संबंधी, तेमा जीवसंबंधी संस्थान प्रकारनाने तेना नाम एक समचतुरस्त्र बीजुन्यग्रोध, त्रीजु सादि, चो, वामन पांचमुं कुब्ज अने हुं हुंमक. बीजु अजीव संबंधी संस्थान ते पांच प्रकारना डे तेना नाम, एक चोखुएं, बीजं त्रीखुर्पु त्रीजु वाटलु एटले चुमीना थाकारे चोडुंगोळ एटले थाळीनाआकारे,अने पांचमुं लांबु, एम जीव संबंधी अने अजीव संबंधी संस्थान कह्या तेमा हवे जीवसंबंधी संस्थान- अहिं प्रयोजन ३. माटे तेनुं वर्णन निचे प्रमाणे जाणवू. समचतुरस्र संस्थान-समचोरस श्राकार जेमक पर्यकासने बेग बता चारेबाजुए सरखं माप थाय ते आवी रीते. जमणा ढींचणथी माबा ढींचण सधीनी जेटली दोरी थाय तेटलीज मावा ढींचणथी जमणा Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (0) खन्ने ने जमणा ढींचणथी मावा खन्ने तथा पर्यंकाशन नामध्यनागथी माथा सुधी एम चारे दोरी सरखी थाय ते समचतुरस्त्र संस्थान अथवा पोतानाएकसो थाग्थंगुळ प्रमाण देहलराय एवं सर्वांगसुंदर नला लक्षणवाळू ते समचतुरस्त्र संस्थान जाणq. . न्यग्रोध परिमंमल संस्थान--वमवृदनी पेठे नानि उपरनो नाग सुंदर प्रमाणोपेत सुलक्षणवान् अने नानिनी निचेनो नाग असुंदर अलक्षणोपेत होय ते न्यग्रोध परिमंगल संस्थान जाणq. . सादि संस्थान-आदिनुं एटले नाजिनी निचेनुं सुलक्षण प्रमाणोपेत अने नानिना उपरर्नु असुंदर अलक्षणोपेत होय ते सादि संस्थान जाणवू. ___वामन संस्थान-पीठ, जदर अने हृदय ए हीन लक्षणो होय अने मस्तक, कोट (कंव), हाथ अने पग एटला अवयवो सुलक्षणा प्रमाणोपेत होय ते वामन संस्थान जाणवू. , कुब्ज संस्थान--कुबहुं ते वामन करतां वीपरीत एदले पीव,जदर अने हृदयए सुलक्षणाप्रमाणोपेत होर्य Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (नए) अने मस्तक, कंठ, हाथ अने पग एटलां अवयवो हीन लक्षणे अप्रमाणोपेतहोय ते कुब्जसंस्थानजाणq. हुंमक संस्थान-सर्व अंगोपांग कुलक्षण हीना. धिक अशोननिक होय ते ढुंमक संस्थान जाणवू. नारकी, पृथ्वीकाय, अपकाय,तेउकाय,वाउकाय, ने वनस्पतिकाय तथा बेइंडिय, तेइंघिय ने चौरिप्रिय अने समूर्डिम मनुष्य तथा समूर्बिम तिर्यंचचे एक ढुंमक संस्थान का . दश नुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिकना दंमके एक समचतुरस्त्र संस्थान होय . गर्नज तिर्यंच पंचेजिय अने गर्नज मनुष्य ना दमके बए संस्थान कह्या . उपर कह्या प्रमाणे पांचे एकेडिय दंगके हुंमक संस्थान के तेमां पृथ्वीकाय जीवोनां शरीर मसुरनीदाळ अथवा चंद्रमासरखां, अपकायनांपाणीनां परपोटासरखा, तेनकायनां सोयना नारानीषणीयो सरंखा, वाजकायनां धजा: सरखां अने वनस्पतिकायनां नानाप्रकारनायाकारेशरीरजाणवां, वाकाय वैक्रिय शरीर करे तोपण धजा नां जेबां संस्थान करे, गर्नज तिर्यंच पंचेयि अने Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्य तथा बारमा देवलोक सुधीना देवो उत्तरवैक्रियशरीरकरेतो ते घणां प्रकारनां संस्थाने(आकारे) करी शके . नवग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमानवासीदेवाने उत्तस्वैक्रियशरीरकरवानीशक्ति ले पण तेवा शरीर तेमनेप्रयोजननहिहोवाथी कदीए उत्तरवैक्रिय शरीरकरतांनथी. नारकोउत्तरवैक्रिय शरीर करे तो ते पण शरीरहुंमक संस्थानेज जाणवं. ॥ इति संस्थान द्वार ॥ अथ दशमुं प्राणहार. प्राणने धारण करे ते प्राणी-जीव कहेवाय ने. प्राण बेप्रकारे ने एकाव्यप्राण अने बीजुं नावप्राण, तेमां शरीर संबंधीलवोपग्राहीवात्मसंबंध तेऽव्यप्राण अने आत्मानाज्ञानादिगुणते नावप्राण जाणवां. स्पशैजिय, रसेंप्रिय, घ्राणेंऽिय, चक्षुरिंडियने श्रोप्रिय तथा मनबल, वचनबल, ने कायबल अने आयुष्य तथा श्वासोश्वास ए दश अव्यप्राण जाणवां, शान, दर्शन, चारित्र अने वीर्य एचार नावप्राण कह्यां ले. .. पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वाउकाय अने Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वनस्पतिकाय ए पांच एकेजियने, स्पर्शेद्रिय, कायबल ३ श्वसोश्वास अने ४ आयुष्य एम चार प्राण होयडे शंख विगेरे बेजियने उपर कहेलां चार प्राणनी साथे रसेंघिय अने वचनबल सहित प्राण होय.कीमी, मांकण, कानखजूरा विगेरे तेइंद्रियजीवोने उपर कहेला ब प्राणनी साथे प्राणप्रिय सहित सात प्राण होय छे. माखी, नमरा, नमरी विगेरे चौरिंद्रियजीवाने उपर कहलां सात प्राणनी साथे चहारंद्रिय सहित श्राप प्राण होय . असंही तिर्यंच पंचेंद्रियने उपर कहेलां आठ प्राणनी साथे श्रोतेंद्रिय सहित नव प्राण होय डे अने असंझी (समूर्छिम) मनुष्यने वचनबल नहि होवाथी अने श्वासोश्वास पर्याप्ति पुरी न करे माटे तेने सात के बाठ प्राण होय . नारकी, दशजुवन पति, व्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक, गर्नज तिर्यंच पंचें जिय अने मनुष्य ए सर्वसंझीपंचेंद्रियने पांच इंद्रिय, त्रणबल, श्वासोश्वास अने आयुष्य एम दशे प्राण होय. प्राणनी साथे जीवनेजे वियोग थाय तेनुं नाम मरण कहेवाय . सिझना जीवोने शरीर विगेरे नहि Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (U2) ए) दोवार्थ द्रव्य प्राणतो नयी पणनिजात्मगुण अनंत ज्ञानादि चारे जावप्राण होय बे. ॥ इति प्राण द्वार ॥ अथ गियास्मं पर्याप्त हार. पर्याप्ति - पुजलोपचयजः पुजल ग्रहणपरिणमन देतुः शक्ति विशेषः - पुलना उपचयथी थयो (जे) पुल ग्रहण परिणमन देतुरुप शक्ति विशेष, तेने पर्याप्तिकहे . जीवने एक गतिथी बीजी गतिए जातां साथे तेजस ने कार्मणशरीर होय. ते शरीरवमे करीनेजीव यथायोग्य आहारने ग्रहण करे बे ने पी ए - हारद्वारा चार, पांच के ब विनागे जीववीर्य प्रवृती एटले शक्ति फोरवे बे, केमके स्वयोग्य सर्व पर्याप्ति जीव साथेज धारंजे ने पुरी अनुक्रमे करे बे. पर्याप्त बे. १ आहारपर्याप्ति, २ शरीरपर्याप्ति, ३ इंडिय पर्याप्ति, ४ श्वासोश्वासपर्याप्ति, ५ जाषापर्याप्ति, अने ६ मनपर्याप्ति. प्रथम आहारने ग्रहणकरी परिणमावी रसख Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए३) लादि जुदा करवानी शक्ति विशेष तेने आहारपर्याप्ति he a. रसपणे परिणामने पामेल आहारने रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि ( हामकां ) मज्जा तथा वीर्य 'एसातधातुपणे परिणमावीने शरीर निपजाववानी शक्ति विशेष तेनेबीजी शरीरपार्याप्तिकहेडे. सातधातुपले परिणाम नेपालजेरस ते जेने जेटली द्रव्यइंद्रियोजोइए. तेने तेटली इंद्रियपणे परिणमाववानीजेश क्ति विशेष तैंने इंडियपर्याप्तिकहे बे, जे वने श्वासोश्वासयोग्य पुल ग्रहण करीने श्वासोश्वासपणेपरिणमावी श्वासोश्वासलेवा मुकवानीशक्तिविशेषने श्वासोश्वासपर्याप्ति hea. जाषा वर्गणा योग्यपुङ्गगलद्रव्यग्रही वचनपणे परिणमावी अवलंबी मुकवानी जे शक्तिविशेष तेने भाषापर्याप्तिकहेबे, मनोवर्गणा योग्य पुजलग्रहणकरी ते मनपरि मावी अवलंबी लेवा मुकवानी शक्ति विशेष तेने मनपर्याप्ति कहे बे. दारिक शरीरवाळो पहेली थादार पर्याप्ति एक समयमां ने बाकीनीबीजी सर्वेपर्याप्तिअनु *मे अंतरमुहुर्तमां एक पढी एक पुरण करे बे. वे Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए४) क्रियशरीरवाळो एक शरीरपर्याप्ति अंतर मुहुर्तमां अने बाकीनीपांचेपर्याप्ति एक एक समयमां अनुक्रमे एकपबी एकपुरीकरे. ____ आहार, शरीर अने इंद्रिय पर्याप्ति पुरी कर्या सिवाय कोइ जीव मरण पामे नहि. स्वयोग्य सर्व पर्याप्तिपुरीकरे तेने पर्याप्तो अनेस्वयोग्य सर्वपर्याप्ति पुरीकरीनथी त्यांसुधीतेने अपर्याप्तो कहेवाय. पर्याप्तिनां बे नेद , एक लब्धिपर्याप्तिने बीजी करण पर्याप्ति स्वयोग्य सर्वपर्याप्ति पुरीकरी नयी पण करशे ते लब्धिपर्याप्ति अने स्वयोग्य सर्व पर्याप्तिपुरीकरी लीधी ने तेने करणपर्याप्ति कहेडे. अपर्याप्ति पण वे प्रकारनी एक लब्धि थपर्याप्ति ने बीजी करण अपर्याप्ति. स्वयोग्य सर्वपर्याप्ति पुरीकरशेजनहि तेने लब्धिअप. र्याप्ति अने स्वयोग्य सर्व पर्याप्ति पुरीकरी नथी पण करशे तेने करण अपर्याप्ति कहेवाय .. . पर्याप्ति नाम कर्मना उदयथी लब्धिपर्याप्ति अने अपर्याप्ति नाम कर्मना उदयथी लब्धि अपर्याप्ति प्राप्त थाय , पण करणपर्याप्ति अने करण Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (एए) थपर्याप्ति नाम मात्र, एकर्मना उदयश्री थतीनथी. जेम देवतापर्याप्तिपुरीकरेज पणज्यांसुधीपुरीकरीनथी त्यां सुधी तेनुं कांश्क नाम आपद् जोश्ए माटे तेने करण अपर्याप्ति कहेडे, अने सर्वे पर्याप्ति पुरीकरी लीधी एम जणाववानेमाटे तेने करणपर्याप्ति कहे. ___ पृथ्वीकाय, अपकाय, तेनकाय, वाजकाय अने वनस्पतिकाए एकैप्रिय जीवोने थाहार,शरीर, इंघिय अने श्वासोश्वास एम चार पर्याप्ति कही ने. वेप्रिय, तेइंडिय अने चौरिंघिय तथा असंज्ञीपंचेंडियने उपरनी चार पर्याप्ति साथेनाषा पर्याप्तिसहित पांच पर्याप्ति कही . नारकी, दशजुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक तथा गर्नजतिर्यंच पंचेंडियअने मनुष्य ए सर्वे संझी पंचेंजियने उपर कहेली पांचपर्याप्तिसाथे मनपर्याप्तिसहित बए पर्याप्ति होय. ॥ इतिपर्याप्तिधार ॥ अथ बारमुं योनीद्वार..... _ योनी-उत्पत्ति स्थानक-सामान्ये जेजे जीवना उत्पत्ति स्थानक वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श कर। सरखां Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) होय, ते सवें एकजाती योनीमांहे गणीए, जेम गो. बरना बाणमाहे जुदा जुदा कीमा, क्रमीश्रा, वीडी विगेरे घणां जीव उपजे , ते सर्वना जुदा जुदा कुळ , पण योनी तो एकज गणाय, एवी रीते गणतां सर्व संसारी जीवोनी चोरासी लाख योनी बे. . पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वाकायनी सात लाख अने साधारण वनस्पतिकायनी चौदलाख तथा प्रत्येक वनस्पतिकायनी दशलाख योनी कही ये बे इंडिय, तेइंडिय, चौरिंडियनी बब्बे लाख, गर्नज तिर्यंचषंडियनीचारलाख, नारकीनीचारलाख तथा चारनिकायनादेवलानीचारलाख अने मनुष्यनी चौद लाख एम सर्वेमळी संसारीजीवोनी चोरासी लाख योनीकही अने सिना जीवोन शरीर नहि होवाश्री योनी पण नथी.. देवता तथा नारकीनी श्रचित्त योनी होयडे, गर्नेज तिर्यंच पंचेंप्रिय तथा गर्नज मनुष्यनीकांक सचित्तने कांक अचित्तरुप मिश्र योनी अने एकेप्रिय तथा विगडियनीमांहे कोश्कनी सचित्त, को Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनी श्रचित्तने कोश्कनीसचित अचित्तरुप मिश्रयोनी कही. देवता, नारकी अने एकेंन्डियनी योनी ढांकेन्जी होयडे, विगडियनी प्रगट ( उघामी) अने गर्नज तिर्यंच पंचेंप्रिय तथा गर्नज मनुष्यनी काश्क डांकेली ने कांक प्रगट एटले गर्न होवाथी बाहेर पेट मोटु देखाय अने मांद देखाय नहि तेमाटे एने कांश्क ढांकेली अने कांक प्रगट एमबेप्रकारे योनी कही. साते नारकीमांहे केटलाएकनी नष्ण योनी ने केटलाएकनी शीतयोनी होय. गर्नजतिर्यंचपंचेजिय, गर्नजमनुष्य अने चारेनिकायनादेवतानो कांश्कशीत अने कांकजष्णरुप मिश्रयोनी होय , तेउकायनी उष्णयोनी अने पृथ्वीकाय, अपकाय, वा. उकाय ने वस्पतिकाय तथा बेइंजिय, तेडिय अने चौरिप्रिय मांहे कोश्कनीउष्ण, कोश्कनीशीतने कोश्कनी शीतउष्णरुप मिश्रयोनीकही. ॥ इति पानी Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) अथ तेरमु कुलकोटी झार. जीवोने उपजवानीयोनीमांहे १९७५00000000000 कुलनीकोटी ने तेमां पृथ्वीकाय ने विषे बार लाख कुसकोटी अपकायनेविषे सात लाख कुलकोटी, तेलकायने विषे त्रणलाख कुलकोटी वानकायने विषे सात लाख कुलकोटी अने वनस्पतिकायनेविषे अठावीस लाख कुलकोटी बेज्ञप्रियने विषे सात लाख कु. लकोटी तेजियने विषे आठ लाख कुलकोटी अने चौरिडियनेविषे नवलाख कुलकोटी, जलचरने विषे सामाबार लाख कुलकोटो, खेचरनेविषे बारलाख कुलकोटी चोपगा ने विषे दश लाख कुलकोटी जरपरिसपनेविषे दशलाख कुलकोटी अने नूजपरिसर्पने विषे नवलाख कुलकोटी जाणवी, एमज मनुष्यनेविषे बारखाख कुलकोटी, देवताने विष बबीसलाखकुलकोटी श्रने नारकीने विषे पचीसलाख कुलकोटो. ए सर्व मळीने जीवाना एक कोमा क्रोम, सत्ताणुं लाखकोम पचासहमारक्रोम कुल कह्यां . ॥ इति कुलकोटी धार ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) अथ चौदमु ज्ञानधार. ज्ञान-जेने करी वस्तुनुं स्वरुप जाणीए, गुणपोये करी वस्तुनो निर्णय करीए तेनुं नाम ज्ञान,अथवा सामान्य विशेषात्मक वस्तुने विषे विशेष ग्रहणात्मक जे बोध तेनुं नाम ज्ञान कहेवाय. १ मति ज्ञान, ५ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनःपर्यवज्ञान, अने ५ केवलज्ञान एम ज्ञान पांच प्रकार, अ. पांच इंडिय तथा मनवमे नियत वस्तु, जीवने जे ज्ञान, तेनुं नाम मतिज्ञान. सांनळवे करी जाणीए एटले सम्यक प्रकारे शास्त्र जाणवा, वांचवा तथा सांनळवाथी मननपूर्वक वस्तुनुं जीवने जे ज्ञान थाय तेनुं नाम श्रुतज्ञान. इंद्रियादिकनी अपेक्षा विना मर्यादा प्रमाणे रुपी वस्तुनुं जीवने जे झान था.य तेनुं नाम अवधिज्ञान, संझी पंचेप्रिय जीवना मनोगत जावर्नु अर्थात् मनचिंतित अर्थ- जीवने जे ज्ञान थाय तेनुं नाम मनः पर्यवज्ञान. संपूर्ण लोकालोकर्नु तया जीवयजीवना सर्व गुण पर्यायोनुं तथा रुप। श्ररुपी सर्व वस्तुउनुं जीवने जे झान थाय तेनुं नाम केवळज्ञान Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) सर्व ज्ञानावरणी कर्मनोदय थवाथी, आवरणरुप उपाधी रहीत. केवळझान सर्वथा एकज प्रकारनं ने अने बाकीना चारे ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्मना भयो पशम प्रमाणे होवाथी घणां प्रकारनां डे. मतिज्ञान ने श्रुतज्ञान परोक्ष ने अने अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान तथा केवळज्ञान प्रत्यक्ष कह्यां डे. ___ दश जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक ए देवताना तेर दंगके तथा नारकी अने गर्नज तिबैंचपंचेंजियना दंझके सम्यकदृष्टि जीवने मतिज्ञान, श्रुतझान अने अवधिज्ञान एम त्रण ज्ञान होय , बेजिय, तेइंघिय, अने चौरिप्रिय ए त्रण विकलेंडियना दंगके अपर्याप्तावस्थाए केटलाएक जीवोने मतिज्ञान श्रने श्रुतज्ञान एम बे ज्ञान सिशंतने विषे कमां ने. गर्नज मनुष्यना दंमके पांचे ज्ञान कह्याडे. पांच एकेंजियना दंगके एकज मिथ्यात्व गुणगणुं होवाथी ते जीवोने ज्ञान होतुं नथी. सिझ्ना जीवोने केवळज्ञान होय . ॥ इति ज्ञान हार ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) अथ पंदरमुं श्रज्ञानद्वार. अज्ञान-अनंत धर्मात्मक वस्तुने मोहनीकर्म ना उदयथी एकरुप पुर्णकरीजाणे, संसार हेतु तेने मोक्ष हेतु जाणे, एकांते ग्रहण करवारुप अथवा त्याग करवारुप एम एकांतेज वस्तु स्वरुप माने पण उन्नय रुप नजाणे, माटे मिथ्यात्वना उदये करीने मिध्यावीनुं जाणपणुं ते अजाणरुपज होय तेनुं नाम अ. ज्ञान कयुं . १ मतिअज्ञान, २ श्रुतअज्ञान, ३ विनंगझान एम त्रण प्रकारनां अज्ञान कह्यां . तेर देवताना दमक एक गर्नज मनुष्यनो तथा एक गर्नज तिर्यचनो अने एक नारकीनो दंगक एम सर्व मळीने सोळदंगकने विषेत्रण अज्ञान साने अने पांच एकेजियना तथा त्रण विगोपियना दमके एम श्रादिंगके एक विनंगझान विना बाकीना बेअझान कह्यां बे. ॥ इति अज्ञान छार ॥ अथ सोळमुं दर्शन झर. दर्शन-सामान्यपणे निराकारोपयोगरुप वस्तु Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) नो जे अवबोध तेनुनाम दर्शन १ चक्षुदर्शन, ५ अचकुदर्शन, ३ अवधिदर्शन, ४ केवळदर्शन एम चार प्रकारे दर्शन . चकुदर्शन-घटादि पदार्थोंने आंखोवमे सामान्य पणे देखq ते. अचकुदर्शन एटले चक्नु सिवाय बाकोनी जियो जे स्पर्शन, रसन, प्रागन, श्रोतन थने नोइंडिय जे मन एणे करी शब्दादिक अर्थनो जे सामान्यावबोध थाय ते अवकुदर्शन, अव्य, क्षेत्र, काळने नाव ए चार मर्यादा मांहे रह्यां जेरुपी प्रव्य तेनो सामान्यावबोध ते त्रीजु अवधिदर्शन, सर्वनव्यनो सामान्यावबोध ते निरावरण अप्रतिपातीएवं चो| केवळ दर्शन जाणवू. ए चार दर्शन अनाकार बे, कारणके जाति, गुण, क्रियादिक विशेषण रहित तथा वस्तुना आकार रहित केवळ आकांकडे एवं देखीए नेनुं नाम दर्शन का . पृथ्वीकायादि पांच एकडियना पांच दमक, बे इंडियनो एकदमकथने तेभियनो एक दमक एम सात दमकने विषे एक अचदर्शन होय, चौरिधि Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · ( १०३ ) यनादंमके चक्कुदर्शन तथा यचदर्शनकयुं बे. तेर देवताना दमक, एक नारकीनो दंरुक ने एक तिर्येच पंचेंद्रियनो दंक एम पंदर दंमकने विषे चकुदर्शन, चक्षुदर्शन ने अवधिदर्शन एम त्रण दर्शन होय ने मनुष्यना दंगके केवळदर्शन सहीत चारे दर्शन होय बे. सिझना जीवोने एक केवळदर्शन होय . ॥ इति दर्शन द्वार ॥ अथ सत्तरमुं दृष्टि द्वार. दृष्टि - जे अवलोकनकरवुं तेने दृष्टिकहीए. ते दृष्टि त्रण प्रकारे बे. १ सम्यग् दृष्टि, १ मिध्यादृष्टि ने ३ मिश्रदृष्टि तेमां श्री वितरागे कहेलां वस्तुतत्वनुं ज्ञानथाय ते प्रथम सम्यग् दृष्टिजाणवी. सम्यग्दृष्टिनां लक्षणथी जे विपरीत ते बीजी मिथ्यात्वदृष्टि तथा सारं अथवा मातुं ज्ञान बेहुने विषे जे खरापणानुं थाय ते त्रीजी मिश्रदृष्टि जाणवी. पृथ्वी कायादिकपांच एकेंद्रियनादं रुके एक मिध्यादृष्टि. विगलेंद्रियनात्रण दमके एक मिथ्या Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) स्वदृष्टि अने बीजी सम्यक्त्वदृष्टि एम बे दृष्टि कही कारणके जे जीव परजवथो सास्वादन सम्यक्त्व सहीत थावे जे तेने अपर्याप्तावस्थाए सम्य. क्व दृष्टि होय हे ते अपेक्षाए विगलेंद्रियना दंगके वे दृष्टि जाणवी, तेर देवताना दंझके गर्नज मनुष्य अने तिर्यंचना दंमके तथा नारकीना दंगके एम सोळ दंमके त्रण दृष्टि कही . पण एमां नव ग्रैवेयके एक सम्यक्त्व अने बीजी मिथ्यात्व ए बे दृष्टि लाने तथा पांच अनुत्तर विमाने एक सम्यक्त्व दृष्टिज लाने तथा समुर्छिम तिर्यंचने समयक्त्व अने मिथ्या व ए बे दृष्टिज लाने अने समुर्छिम मनुष्यने एक मिथ्यात्व दृष्टि कही . ॥इति दृष्टि धार ॥ . अय बढारमुं योगधार. . योग-युक्तथर्बु तेने योगकहीए अथवा जी. वना बलवीर्य, शक्ति, पराक्रमने योग कहीए, अथवा योग एटले व्यापार तेयोग त्रणप्रकारनांचे मन १ योग १ वचन योग अने ३ काययोग, Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५ ) मनयोग एटले मननोव्यापार ते चारप्रकारे a बे. १ सत्यमनोयोग, २ असत्यमनोयोग, ३ सत्यासत्यमनोयोग ने ४ असत्याच्यमृषा मनोयोग वचन योग एटले जापानो व्यापार ते चार प्रकारे बे. १ सत्य वचनयोग २ असत्य वचनयोग ३ सत्यासत्य (मिश्र) वचनयोग ने ४ असत्याच्यमृषा वचनयोग, काययोग एटले कायानोव्यापार ते सातप्रकारे बे. १ श्रदारिक काययोग २ श्रदारिक मिश्र काययोग ३ वैयि काययोग ४ वैक्रिय मिश्र काययोग ५ थादारक काययोग ६ आहारक मिश्रकाययोग अने ७ कार्मणकाययोग. ए प्रमाणे बधामळीने पंदर योग कां बे. सत्य मनयोग एटले वस्तुने वस्तुरूपे चितववी जेमके जीवादिक पदार्थ द्रव्यरुपे नित्य, पर्यायरुपे नित्य एम अनेकांतपणे चिंतववुं ते सत्य मनयोग ने तेथी विपरीत ते असत्य मनयोग जेम जीवादिक पदार्थ एकांतपणे नित्य विश्वव्यापी इत्यादिक चिंतत्रवं तेनुं नाम सत्यमनयोग. सत्यासत्य मनो Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) योग एटले कांश्क साचुं कांश्क जुएम मिश्र नावेचिं. तवद् जेमके आजे गाममा दश जनम्या दश मुथा एम अनुमाने कांइक साचुं जुवं चिंतववं. असत्या अमृषामनोयोग एटले थार्नु अमुक नाम , अमुक जात , आ वस्तु लाव. था वस्तु ले इत्यादिक चिंतवतुं तेथी जीनवचन विराधाय नहि माटे जुन पण नदि अने साच पण नहीं एवं व्यवहारिक चिंतवq. साचा वकार्नु आत्मानीसाथेजोमवु ते सत्य वचनयोग, असत्यवचननी साथे आत्माने जोमवू ते असत्यवचनयोग, कांश्क सत्य अने कांक असत्य एम मिश्रनाषा बोले ते सत्यासत्य वचनयोग, है देवदत्त चोपनी लाव ब्रह्मदत्त अमुक गाम गयो एम बोलवू अर्थात् थामंत्रण, याचना विगेरे करवु ते सत्याअमृषावचनयोगजाणवो. औदारिक शरीरने योगे जे जीवनो व्यापार ते औदारिक काय योग, अने ने अपर्याप्तावस्थाए मनुष्य अने तिर्यंचने कार्मण साथे मिश्र जे औदारिक पुजलजन्य व्या. पारने औदारिक मिश्रयोग जाणवो, वैक्रिय शरीरने Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) योगे जे जीवनो व्यापार ते वैक्रिययोग अने देवता तथा नारकीने अपर्याप्तावस्थाए कार्मग साथे मिश्र जे वैक्रिय पुजल अथवा मनुष्यादिकने उत्तर वैक्रिय करतां ज्या सुधी तेनीपर्याप्तिपुरीथश्नथी त्यां सुधी औदारिक पुजल साथे वैक्रिय पुजल मिश्र होय तेनाथी थतो जीवनोव्यापार ते वैक्रियमिप्रयोग जाणवो. आहारक शरीरनेयोगे जे जीवनो व्यापार ते आहारक काययोग अने आहारकशरीर करतां ज्यां सुधी तेनीपर्याप्तिपुरीकरीनथी त्यां सुधी औदारिक शरीर साथे आहारक मिश्रहोय तेनाथी थतो जे जीवनो व्यापार ते थाहारकमिश्रयोग जाणवो. सातमुं कार्मण काययोग एटले कर्मदळ साथे आत्मप्रदेशनुं मळवू ते कार्मण शरीर कहीए तेणे करी परनवादिकथी आगमन शक्ति तेनुं नाम कार्मणकाययोग जाणवो, तैजस शरीर अने कार्मण शरीर सर्वदा होय तेथी तैजस काययोग मांहेज गएयो डे एम जाणवू. देवताना तेर दमक, नारकीनो एक दंगक एम Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०८ ) चौद दमके मनना चार, वचनना चार तथा वैक्रियकाययोग, वेक्रियमिश्रकाययोग अने कार्मणकाययोग ए त्रण योग कायाना मळीने अगियार योग कलां बे. तिर्यचना दंडके एक आहारककाययोग अने बीजो दारक मिश्रकाययोग वर्जीने बाकीना तेर योग कलां बे, गर्भजमनुष्यना दंककने विषे पंदर योग होय बे. बेइंडिय, तेइंद्रिय छाने चौरिंडियना रुके एक प्रौदारिककाययोग, बीजो श्रौदारिक मिश्रकाययोग, त्रीजो कार्मणकाययोग ने चोथो असत्या मृषावचनयोग एम चार योगकझां बे. वाचकायना एकदंरुकने विषे एक औौदारिककाययोग, बीजो दारीक मिश्र काययोग, त्रीजो वैक्रियकाययोग, चोथोवेक्रिय मिश्र काययोग, अने पांचमो कार्म काययोग एम पांच योग कह्यां बे. पृथ्वीकाय, अपकाय, तं काय छाने वनस्पतिकायना दंगके एक बौदारिक काययोग, बीजो श्रदारिक मिश्रकाययोग अने जो कार्मण काययोग एम त्रणयोगकझांबे, सिझना जीवो योगी बे ॥ इति योगद्वार ॥ 8 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५) अथ जगणीसमुं उपयोग द्वार. उपयोग - वस्तुस्वरुपने उळखवा, जाणवा, प्रकाशवाने विषे जेउपयोगी होय तेनुंनाम उपयोग ए जीवनुंलक्षण जीवस्वभावचेतना रुपजाणवु, ते उपयोग साकारं छाने निराकार एम बे प्रकारनो बे तेमां दरेकवस्तुने नियमेकरी ग्रहण करवी एज तेनो परिणामरुपयाकार तेजेनेकरीनेथाय ते पांचज्ञान ने अज्ञानरुप या प्रकारे साकार उपयोग जाणवो अने ए लक्षणोथीनीन्न उपयोग ते निराकारचार प्रकारनां दर्शनरुपजाणवो. साकारने निराकार बने मळीने बार प्रकारनां उपयोग कांबे. ● मनुष्यना दंगके बारउपयोगहोयडे. नारकीनो एकदंरुक, तिर्यचपचेंद्रियनो एकदमक तथा देवताना तेरदंगक ए पंदरदंरुकने विषे केवळज्ञान, केवळदर्शनाने मनः पर्यव ज्ञान विना बाकीना नवउपयोग होय. बेइंडिय तथा तेईप्रियना दंगके एक मतिज्ञान बीजुं श्रुतज्ञान त्रीजुं Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) मतियज्ञान चोथु श्रुत अज्ञान अने पांचमुं अचक्कु दर्शन ए पांच उपयोग होय, अने चौरिंद्रियना दंगके ए पांच उपयोगनीसाथे एक चक्षुदर्शनसहीत ब उपयोग होय , पृथ्वीकायादि पांच थावरना दमके एक मतिअज्ञान बोजु श्रुतअज्ञान अने त्रीजुं अचकुदर्शन एम त्रणउपयोगहोय. समुर्बिम तिथंचने मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शन ए उ उपयोग कह्या . समुर्छिम मनुष्यने मतिअज्ञान, श्रुतश्रज्ञान, चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शन एम चार उपयोग करा . सिहना जीवने एक केवळदर्शन अंने बीजु केवळझान ए वे उपयोग जाणवा. एक समये जीवने एक उपयोग होय. बदमस्थ जीवने पहेले समये दर्शन अने बीजे समये ज्ञान तथा केवळीनगवानने तो पहेले समये ज्ञान ( विशेषावबोध ) अने बीजे समये दर्शन ( सामान्याव बोध ) होय . इति उपयोगमार. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (???) पथ वीश गुणस्थानकद्वार. गुणस्थान- गुण जे जीवना ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि गुण तेनुं स्थान अशुद्ध, शुद्ध, शुद्धतर, शुद्धतम विगेरे अध्यवसायने गुणस्थानक कदेबे, जो पण जीवना असंख्याता अध्यवसाय स्थानक ने असंख्य गुणस्थानक होयड़े तो पण स्थल व्यवहारे चौद गुण स्थानक कांबे सेनां नाम १ मिथ्यादृष्टि गुणस्थानक, २ सास्वादन गुणस्थानक३ मिश्रदृष्टि गुणस्थानक, ४ अविरति सम्यक् दृष्टि गुणस्थानक, ५ देशविरति गुणस्थानक, ६ प्रमत्त संयत गुणस्थानक, 9 अप्रमत्तसंयत गुणस्थानक, निवृत्ति अथवा अपूर्व करण गुण स्थानक, ९ निवृत्ति - बादर संपराय गुणस्थानक, १० सूक्ष्म संपराय गुणस्थानक, ११ उपशांतमोह वीतराग गुणस्थानक, १२ क्षीणमोद वीतराग गुणस्थानक, १३ सजोगी गुणस्थानक, १४ अयोगी केवळी गुणस्थानक एम चौद गुणस्थानक जाणवतं. मिथ्यात्व एटले जीन वचनथी विपरीत दृष्टी, जेम धंतुराना बीज खाधे थके श्वेत वस्तुने पण पी Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ळीवस्तु जाणे ने तेम मिथ्यात्व मोहनीयना जोरथी रागद्वेष मोहादिक अढार दोषे सहीत अथवा सं. सारना हेतु एवा स्त्री हथियार वगरे चिन्हे करीने सहीत होय तेने पण देवकरी माने धनधान्य स्त्री वगेरेमा आसक्त परिग्रहादिक गुरुना लक्षणे हीनने गुरु करी माने हिंसादिक अधर्मने धर्म करी माने एने मिथ्यात्व कहीए. एवा मिथ्यात्व उदयवंत जीव पण कोश्क देखादेखीए, कोर सुगतिनी अनिसाषे तथा कोइ नकजीव मोक्षहेतु क्रिया करे माटे तेने मिथ्यात्व गुणस्थानक कहीए अथवा एकांशे घटादिकनी मान्यता अविरुक्ष पण होय ते कारणे अने अ. झरनो अनंतमो नाग जीवने सदा सर्वदा उघामो रहे अवराय नहि ते गुणने लीधे पण मिथ्यात्व उदयवंत जीवने मिथ्यात्व गुणस्थानक कडं . औपशमिक सम्यक्त्व वंत जीव अनंतानु बंधी कषायना उदये औपशमिक वमता वीरना स्वाद सरखो नाव मिथ्यात्व गुणस्थानक पाम्या पहेला जे जीवने होय ते सास्वादन सम्यकदृष्टी गुणस्थान बीजुं जाणवू. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९३) मिश्रमोहनीना उदयथी जीवने रुची के अरुची ए बन्ने न होय एवा जे अध्यवसाय ते मिश्रदृष्टी गुणस्थानक त्रीजं जाणवू. विरति गुण जाणतो तो पण अप्रत्याख्यान कषायोदये विरति श्रादरी न शके पण तत्वरुची, सम्यक्त्ववंत जीनवचन यथावस्थितपणे परिणमे तेनुं नाम अविरति सम्यक्दृष्टी गुणस्थानक चोथु जाणवू. प्रत्याख्यानी कषायोदये सर्व विरतिपणुं तो न थादरी शके, पण कांक अंसे सावध्य योगनी विरति करे. जेम निरपराध, निरपेक्ष, संकपी, सजीवने न हणवो, इत्यादिक सम्यक्त्व सहीत अध्यवसाय अथवा सम्यक्त्वसहीत एक नवकारसी करे एवा अध्यवसाय ते देशविरतिसम्यक्दृष्टीगुणस्थानक पांचU जाणवू. देशविरतिगुण स्थानकथी अनंतगुण विशुः सर्व विरतिरुप चारित्रना अध्यवसाय पण प्रमादेकरीनेसहीतहोय तेनुं नाम प्रमतसंयत गुणगणु बहु जाणवं. प्रमादपांच प्रकारे, मद, विषय, कषाय, निमा थने विकथा, ते पांचेप्रमादथीरहीत अनंतगुणविशुद, निश्चय Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) चारीत्रे स्थिरतारुप अध्यवसाय ते सातमु अप्रमत. संयतनामनुं गुणस्थानक जाणवू. पूर्वे नहि पामेला एवा अत्यंत विशुध्यध्यवसायेकरी चारीत्र मोहनीनी एकवीस प्रकृति उपशमाववा अथवा खपा. ववाने अर्थे रसघात, स्थितिघात, गुणश्रेणी, गुणसंक्रम अने अपूर्वस्थितिबंध ए पांचवाना धुरसमयथी करे ते थाउमुंअपूर्वकरणगुणस्थानक जाणवू; अथवा एक समये अनेकजीव ए गुणस्थानकेचढे पण अध्यवसाय, शुद, शुइनरादिके निवृत्ति एटले फेरफार होय माटे ते आग्मागुणस्थानकने निवृत्तिगुणगुणस्थानक पण कहे . नवमे गुणस्थानके एक समये घणा जीव चढे पण तेना अध्यवसायमा फेरफार न होय माटे तेनुं नाम अनिवृत्तिगुणस्थानक अथवा बादर एटले मोटाखंम अने संपराय एटले कषायना था गुणस्थानके जीव करे एटले कषायना उपशमाववाके खपाववाने अर्थे घणाखंमकरे तेथी तेनुं नाम बादरसंपरायनामा नवमुंगुणस्थानक जाणवू. सूक्ष्म ने संपराय एटले किट्टीकृत लोनकषायनो Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) उदय ज्यां ते सूदम संपराय नामे दशमुं गुणस्थानक जाणवं. जेम मेलवालुपाणी शान्तथवाथी मेल निचे बेसे ने पाणीनिर्मळथाय अथवा 'जणाय तेम ज्यां मोहनीकर्मनोनपशमथाय तेनुनाम उपतिमोद गुणस्थानक अगीयारमुं कडं . पाणी. मां मळ ले ते पाडं मोळावाथी अवस्य मलीन थाय, तेम । गुणस्थानकपामेलाजीवने कषाय सत्तामा ने तेथी त्यांथो अवस्य पमेज एम जाणवं, सर्व मोहनीप्रकृतिदयथतां, सत्तामांथो पण मोहनीकर्म टळीजतां अत्यंत विशुध्अध्यवसायस्थानकडे ज्यां तेनुं नाम दीणमोहगुणस्थानक बारमुं. जाणवू. बारमागुणगणेथी कोजीव पझे पण मरणपामें नहि. मन, वचनने काययोगसहीत वर्ते अने घाती कर्मनाक्ष्यथकी केवळझान होय ते सयोगी केवळी गुणस्थानक तेरमुं जाणवू.त्रणे योगनो रोध करे एटले बादर मनवचनने कायाना व्यापारने अन्नाके, मेरुपर्वतनी पेठे निःप्रकंप शैलेसीकरणकरता, अयोगी केवळो गुणस्थानक चौदमुं जाणवू. ते चौदमागुण Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९६) स्थानकना बेल्ला समये जीव ऋजु श्रेणीए मोक्ष प्रत्ये पामे . पहेला मिथ्यात्व गुणस्थानकनीस्थिति बन्न सनी अपेक्षाए अनादीनंत अने जव्यनीअपेशाए थनादीसान्त तथा समकीतथी पमेला जीवनी बताए सादीसान्त तेथी जघन्यथी अंतरमहर्त बने उत्कृष्ट देशेउणीअर्धपुजल परावर्त जेटली कही . बीजा सास्वादन गुणस्थानकनी स्थिति जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी र थावलीका जाणवी. श्रीजा गुणस्थानकनी स्थिति जघन्य तथा उत्कृष्टयी पण आंतरमहर्त जेटली कही जे. चोथा थविरति सम्यक्गुणस्थानकनी स्थिति जघन्य अंतरमुहुर्त श्रने उत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपमथी कामेरी कह। . पांचमुं देशविरति गुणस्थानक उछ प्रमतगुणस्थानक, अने तेरमुं सयोगीगुणस्थानक ए दरेक गुणस्थानकनी स्थिति जघन्य अंतरमुहुर्त अने उत्कृष्ट देशे उणपूर्व क्रोम वर्षनी कही बे. सातमुं अप्रमत, थाउमुं अपूर्वकरण, नवमुं अनिवृत्तिबादरसंपराय, Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) दशमुं सुक्ष्म संपराय अने श्रगियारमुं उपशांत मोह गुणस्थानकनी स्थिति जघन्य एक समय थने उत्कृष्ट अंतरमुहुर्त दरेकनी कही . बारमा क्षीणमोह गुणस्थानकनी स्थिति जघन्य तथा उत्कृष्टथी पण अंतर मुहुर्तनी जाणवी. चौदमा अयोगीकेवळीगुणस्था. नकनी स्थिति पांचहस्वाक्षर उच्चारण काळ जेटली कही बे. दरेक गुण स्थानके खेश्या, योग, उपयोग, बंध, उदय, उदीरणा अने सत्ता कहे . मिथ्यात्वादिक प्रथमना 3 गुणस्थानके सर्व बए खेश्याहोयडे; अहीयां प्रत्येकलेश्याना असंख्याता खोकाकाश प्रदेश प्रमाण अध्यवसायस्थानक होय डे ने तेथी प्रमत्त गुण स्थानके पण काश्क कृष्ण लेश्याना अध्य वसाय होय माटे कांस्वीरोध जाणवो नदी. सातमा अप्रमत गुणस्थानके, तेजो, पद्म थने शुक्ल ए त्रण लेश्या होय.श्रापमा अपुर्व करणगुणस्थानकथीतेरमा गुणस्थानक सुधी एक शुक्ल लेश्या कही थने चौदमुं श्रयोगी गुणस्थानक अशी कबुं जे. पहेला मिथ्यात्व Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) गुणस्थानके अने चोथा अविरतिसम्यक्पृष्टी गुणस्थानकने विषे, आहारकर काययोग अने आहारक मिश्र काययोगविना बाकीना तेरयोग कह्यां . त्रीजामिश्र गुणस्थानके चारमनना, चारवचनना अने औदारिक काययोग तथा वैक्रिय काययोगस. हित दशयोग कह्यां डे. पांचमा देशविरति गुणस्थानके चार मनना, चार वचनना अने औदारिक का. ययोग, वैक्रियकाययोग तथा वैक्रियमिश्रकाय योग सहित अगियार योग कह्यां दे. उपर कहेला अगियार योगनी साथे थाहारक काययोग अने आ हारकमिश्र काययोग सहीत तेरयोग गठ्ठा प्रमत्त गु. णस्थानके, अने तेमांथी आहारकमिश्र अने वैक्रियमिश्रविना अगियारयोग अप्रमत्त गुणस्थानके कह्यां . आठमा अपूर्वकरण गुणस्थानकथी बारमा वीण मोह गुणस्थानक सुधी दरेक गुणस्थानके, चारमनना, चार वचनना अने एक औदारीक काययोग मळी नवयोग होय . तेरमा सयोगी केळवी गुणस्थानके, एक सत्य वचनयोग, बीजु असत्यामृषा वचनयोग, Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११ए) त्रीजु सत्यमनयोग, चोथु असत्यामृषामनयोग, पांचमुं श्रोदारीककाययोग, बहु औदारीकमिश्र काययोग अने सातमुं कामर्णकाययोग एम सात योग कह्यां . चौदमा अयोगी गुणस्थानके योगने रुंधे माटे एके योग होय नही अयोगी ने माटे एम जाणवू. पहेला मिथ्यात्व गुणस्थानके अने बीजा सास्वादन गुणस्थानके, त्रण अज्ञान अने चक्षु दर्शन, अचकुदर्शन तथा अवधिदर्शन सहीत न उपयोग सिहांतने विषे कह्या . त्रीजा मिश्र गुणस्थानके त्रण अज्ञान झानेकरीमिश्र अने त्रण दर्शन एम 3 उपयोग होय . अविरति सम्यक् गुणस्थानके अने देशविरति गुणस्थानके, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान,अवधिज्ञान अने चतु, अचहु तथा अवधिदर्शन सहीत ब उपयोग कह्या बे, उहा प्रमत्तगुणस्थानकथी बा. रमा दीणमोहगुणस्थानक सुधी पूर्वोक्त उ उपयोगनी साथे मनःपर्यवज्ञान सहीत, सात उपयोग कह्या . तेरमे अने चौदमे गुणस्थानके केवळ ज्ञान अने केवळ दर्शन एवं बे उपयोग जाणवा ? ज्ञाना Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) वरणीयकर्म, दर्शनावरणीयकर्म, ३ वेदनीय कर्म, ४ मोहनीय कर्म, ५ थाबुकर्म, ६ नामकर्म, ७ गोअकर्म थने ७ अंतराय कर्म एवं था कर्म डे. प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानकथी सातमाअप्रतमगुणस्थानक सुधीना सातगुणस्थानकमांथी एक मिश्रगुणस्थानक वर्जी बाकीना गए गुणस्थानके सातके आठ कर्म बांधे; आयु बंधकाळे श्राप अने आयु न बांधतो होय त्यारे सातकर्म सदा सर्व जीव बांधे त्रीजुमिश्र गुणस्थानक, बाग्मुंथपूर्व करण अनेनवमुं अनिवृति बादरगुणस्थानक एवं त्रण गुणस्थानके घायु कर्मविना बाकीना सांत कर्म बांधे. दशमा सुक्ष्मसंपरायगु. णस्थानके एक श्रायु कर्म थने बीजु मोहनीय एवे कर्म वर्जी बाकीना उ कर्म बांधे. अगियार# उपशांतमोह, बारमुं क्षीणमोह अने तेरमुं सयोगी केवळी एवं त्रण गुणस्थानके एक साता वेदनीजबांधे अने चौदमुश्रयोगीगुणस्थानक तो श्रबंधक डे त्यां को जीवकर्म बांधे नहि एम कडं . मिथ्यात्वथी मांमी सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानक सुधी आवे कर्मनो Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) उदय, अगियारमे तथा बारमे गुणस्थानके मोहनीय कर्मविना बाकीना सात कर्मनो उदय अने तेरमे तथा चौदमे गुणस्थानके, अघाती एवा वेदनीय, थायुः, नाम अने गोत्र एवं चार कर्मनो उदय होय .मि. ध्यात्वथी प्रमत्त सुधी उ गुणस्थानकमांथी एक मिश्र गुणस्थानक वर्जी बाकीना पांच गुणस्थानके, सातके श्राम कर्मनी उदीरणा, मिश्रगुणस्थानके कर्मनी उदीरणा, अप्रमत्त,अपूर्व अने अनिवृत्ति गुणस्थानके आयुकर्मथने वेदनीय कर्मविना कर्मनी उदीरणा, सूक्ष्म संपराय गुणस्थानके उ अथवा पांच कर्मनी उदीरणा अने उपशांतमोहगुणस्थानके, वेदनीय, श्रायुः अने मोहनीयविना बाकीना पांच कर्मनी 3. दीरणा होय , तथा बारमा क्षीण मोह गुणस्थानके उपर कहेला त्रण कर्मविनां पांचकर्मनी अने आवलीका थाकते ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय कर्मनी उदीरणाटळे तेथी बाकीना एक माम. कर्म थने बीजुंगोत्र एवंबे कर्मनीउदीरणा होय तया तेरमा सयोगीगुणस्थानके पण ते नाम अने गोत्र Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) कर्मनी उदीरणा कहीले. चौदमुं अयोगी गुणस्थानक अणुदरीक होय त्यां एके कर्मनी उदीरणा होय नहि. पहेला गुणस्थानकयी मामी अगियारमा गुणस्थानक सुधी पाठ कर्मनी सत्ता, बारमा गुणस्थानके मोह नीयकर्म वर्जी सात कर्मनी सत्ता अने तेरमे तथा चौदमे गुणस्थानके वेदनीय कर्म, आयुः कर्म, नाम कर्म अने गोत्रकर्म ए चार अघाती कर्मनी सत्ता कही डे. पृथ्वी कायादि पांच एकेंड्रियना दंमके एक मिथ्यात्व गुणस्यानक सिहांतने विषे कडंडे. बेइंडिय, तेइंजय अने चौरिंजियनादमके मिथ्यात्व अने शास्वादन एम बे गुणस्थानक लाने. नारकी, जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिकने विषे पेहे. लेयी चार गुणस्यानक लाने पण एमां एटबुं विशेष के अनुत्तर विमानवासी जीवोने एक अविरति समकीत दृष्टि चोथुगुणस्थानकज होय.गर्नज तिर्यंच पंचेप्रियने पहेलेथी देशविरति पर्यंत पांच गुणस्थानक अने मनुष्यना दमके चौदे गुणस्थानक कह्यां ने. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ॥ इति गुणस्यानक घार ॥ अथ एकवीसमुं आहारधार. आहार त्रण प्रकारना डे ओजाहार, रोमाहार अने प्रक्षेपाहारतेमां ओज-तैजस शरीर, तेणे करीने जे आहारले तेनु नाम ओजाहार अर्थात् जीव परनवे जतां प्रयमसमये तैजस अने कार्मण शरीरवमे औदारिक शरीर योग्य पुजगलनो आहार करे अने बीजा समययीमांमी, कार्मण साये औदारिक मिश्र कायवमे थाहार करे ते, शरीर पर्याप्ति पुरी थाय त्यां सुधीजे थाहार ते सर्व ओजाहार जाणवो.लोमा. हार स्पर्शेखिये करीने जीवजे आहार पुद्गल ग्रहण करे तेनुं नाम लोमाहार जेमके-तेलादिक शरीरे चोळवाथी अंदर गरमी तथा चिकाश आदि श्रावे अथवा उष्ण काळने विषे पाणीना स्पर्शवमे एटले न्हावाथी अगर नीनू कपहुं शरीर उपर राखवायी शीतळ पणाएकरी तृषा गरमी अने दाह विगेरे उपशमे एम जे स्पर्श प्रियवमे थाहार ते लोमाहार जाणवो. प्रक्षेपाहार जे कोळीया विगेरे करी कोगमा Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) (पेटमा ) प्रक्षेपाय (नखाय) अर्थात् मुख प्रक्षेपे जे थाहार ते त्रीजो प्रक्षेपाहार जाणवो. ... एजियनापांच, देवतानातेर, अने नारकीनो एक उंगणीस दंडके एक उजाहार अने बीजो सो. माहार होय . विगछियना त्रण, गर्नज तिर्यंचनो एक श्रने गर्नज मनुष्यनो एक एम पांच दंगकने विषे, उजाहार, लोमाहार अने प्रक्षेपाहार ए त्रणे प्रकारना आहार कमां ने. एकेडिय, विगडि, अने गर्नज तिर्यंच तथा मनुष्यनामळीदश दंगके सचित्त, अचित्त, अने मिश्र आहार होय डे एटले को वार सचित्त, कोइवार अचित्त अने कोश्वार कांश सचित्त कांश अचित्तरुप मिश्र एम त्रण प्रकारना थाहार होय जे श्रने नारकी तथा देवताना दंगके सदा सर्वदा अचित्तज आहार कह्यो . शरीर पर्याप्ती पुरी करे त्यां सुधी सर्व अपर्याप्ता अवस्थाए जीवोने उजाआहार होय डे अने शरीरपर्याप्ति पुरी कर्या पनी लोमाहार होय; ते लोमाहार असंझीने थजाणता अने संज्ञीने जाणता अजापता तथा देव Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) ताने मनोज्ञपणे अने नारकीने अमनोज्ञपणे परिणमेले, ॥इति आहारहार ।। अथ बावीसमुंथाहारनी इच्छादार. पृथ्वीकायादिक सर्व एकेंडियने आहारलिलाप सदा सर्वदा निरंतर होयड़े. बेइंजिय, तेइंजिय, चरिंघिय अने नारकीनाजीवोने एकवार थाहार लीधा पनी वधारेमां वधारे अंतरमुहुर्तने यांतरे फरी थाहारनी इच्छा थाय, प,प्रियतिर्यंचगर्नजने व. धारेमा वधारे बे अहोरात्री अने मनुष्यने त्रण अहो. रात्रीने आंतरे स्वानाविक एटले तापरोगादिकना अनावे आहारनी इच्छाथायडे, था उत्कृष्ट थाहार इच्छा प्रमाण देवकुरु तथा उत्तरकुरुक्षेत्रना तथा जरत अने औरवत्त क्षेत्रनेविषे पहेला आराना मनुज्य तथा तिर्यंचनीअपेक्षाएजाणवो. जुवनपति, व्यतंर जोतीषि अने वैमानिकनादंमके, मनगमतो श्रने सर्व इंडियोने आब्हादकारीश्राहार परिणमेले. माटे आयुष्यनाकाळमाननीअपेक्षाए थाहारनी इच्छानो काळमान कह्यो .. दशहजार वरसना था. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) युष्यवाळा देवताने एक अहोरात्रीनेशांतरे थाहारनोइच्छायाय, दशहजारवरसथी समयाधिकथी मांगीने एक सागरोपमयी उग आयुष्यवाळा देवोने बेथी नव दिवसना आंतरे आयुष्यना प्रमाण प्रमाणे थाहारनी इच्छाकाळमान जाणवू. एक सागरोपमना आयुष्यवाळा देवोने एक हजारवरसे आहारनीच्या वे सागरोपमनाथआयुष्यवाळाने बे हजारवरसेाहारनी इच्छा, त्रण सागरोपमना आयुष्यवाळाने त्रण हजारवरसे आहारनी इच्छा एम जेटला सागरोपमनुं थायुष्य होय तेटला हजार वरसे देवाने आहारनी इच्छा थाय ते डेवट अनुत्तर विमानवासी देवोनुं तेत्रीश सागरोपमनुं उत्कृष्ट - युष्यचे तेदेवोने तेत्रीशहजारवरसे उत्कृष्ट आहारनीच्यानो काळमान जाणवो एम सर्व देवोने आयुष्य प्रमाणनी अपेक्षाए आहारनी इच्छानो का. ळमान कह्यो जे. ॥ इति आहार इच्छाधार ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) अथ त्रेवीशमुं किमाहारधार. पूर्व, पश्चिम, उत्तर अने दक्षिण ए. चार तथा उर्ध्व (उंची) अने अधो (नीचि) मळी दिशा माथी जीव केटली दिशाउँनो आहार ग्रहण करे ने एम जे कहेवू ते किमाहार. एक अणाहारक ने बीजा आहारक एम जीवो बे प्रकारना डे. तेमां परनवजतां विग्रहगतोए जीव एक समयथीमांमी वधारमा वधारे चारसमय सुधी अणाहारी होयअने केवळझानी कर्म खपाववाने आठ समयनो केवळी समुद्घातकरे तेमांत्रीजे चोथे अने पांचमे समये केवळ कार्मणयोग होय, त्यां ते पण त्रण समय सुधी अणाहारहोय अने चौदमे गुणस्थानके सैलेशीकरणे जीव अंतरमुहुर्त प्रमाण अणाहारी होय अने सिघनाजीव अनंतकाळ सदासर्वदा अणाहारी होय बे, उपर कहेला अणाहारी जीव सिवाय बाकीना सर्व जीवो आहारक जाणवा. थाहारक एवा चोवीसेदंमकनाजीवो बए दिशाओथी आहारग्रहणकरे. ले, पण एमां एटद्यु Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) विशेष , के, एकैडियना पांच दमकना जीवोतो, प्रण, चार, पांच अथवा बएदिशाओनो आहार ग्रहण करेडे, कारणके चौदराजसोक, सुक्ष्म एकेंडियी जर्यो , अने चौदराजलोक पनी अलोक , तेमा पु. दुगलादिकनहिहोवाथी आहार नहि, माटे जे शुक्ष्मजीवो लोकनामध्यन्नागमां तेने तो गए दिशाओनो आहार होय, पण जे लोकने मे रहेला , एवा जीवोने उपर अलोक होवाथी उर्ध्व दिशीनो आहार होय नहि माटे ते जीवोने उर्वदिशीसिवाय बाकीनी पांच दिशानो आहार होय; एवीज़ रीते लोकना मे रहेला जीवोने बेदिशीए अलोक होय तेने चारदिशानो अने जेने त्रण दिशाएअलोक होय तेने खाकीनी त्रणदिशानो आहार होय एम जाणवू. ॥ इति किमाहार हार ॥ अथ चोवीशमुं जीवनेद हार. जीवन्नेद-कर्मगति जात्यादिकनी अपेक्षाए जीवनी विशेष व्याख्या तेनुं नाम जीवनेद. जीवना मुख्य बे नेद , एक मुक्तिना अने बीजा संसारी, Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२ए) भाने कर्मथी मुकाणा मुक्तथया ते मुक्तिना अने कर्मे करीसहीत, चारगतिरुपसंसारमांपरिजमणकरे ले ते संसारीजीवोजाणषा. मुक्तिना-सिना जीवोना नेद-१ जीनसिक थजीनसिक, ३ सिर्थसिह, ४ अतिर्थसिक, ५ गृहः स्थलिंगेसिक, ६ अन्यलिंगेसिक ७ स्वलिंगेसिक ब्रिलिंगेसिक ९ पुरुषलिंगेसिक, १० नपुंसकलिंगेसिक, २१ प्रत्येकबुद्धसिक १२स्वयंबुझसिक, १३ बुधबोधित सिक १४ एक समये एक सिइ थने १५ एक समये अनेक सिम एम जेवी पदवि थने जेवा चिन्हादिके जीवसिहि पदने पाम्पा मोके गया ते अपेक्षाए गपता सिझनाजीवोना पंदर जेद कहा .. ___ सर्व संसारीजीवोना एक, बे, त्रण, चार, पांच, उ, अने धौद, वत्रीश तथा पांचसेंने प्रेसठ नेदपण जुदी जुदी अपेक्षाए शत्रने विषे कह्या . ते आ प्रमाणे-श्रुताननो अनंतमो नाग सर्व संसारी जीघने सदा सर्वदा उपामो होय अवराय नहि ते चेतना लणे करी सर्व संसारी जीवो एक विध-एक Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) प्रकारना जाणवा. स्थावरनामकमोंदयेकरी जे स्थिर रहे एटले पोतानी शक्तिए हाली चाली शक नहि ते स्थावराने त्रसनामकर्मोदये जीवनस प्रणुपामे हालीचालीशके तडकेथी बांए थावे ते त्रस. एवं एकत्रसयनेवी जास्थावरमळी सर्व संसारीजीवना वे दथायडे, पुरुष, स्त्री ने न. पुंसक वेदनी अपेक्षाए त्रण भेद, नारकी, तिर्यच, म नुष्य ने देवगतिएकरी चारभेद, एकेंद्रिय, बेई. प्रिय, तेइंद्रिय, चौरिंडिय तथा पंचेंद्रिय मळी इंद्रियो नी अपेक्षाए पांच ने पृथ्विकाय, अप्पूकाय, तेजकाय, वाकाय वनस्पतिकायने त्रसकाय एम कायनी अपेक्षा सर्व संसारी जीवोना व भेद का बे. १ सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्ता, २ सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्ता, ३ बादर एकेंद्रिय पर्याप्ता, ४ बादर एकेंद्रिय पर्याप्ता, थं बेइंद्रिय अपर्याप्ता, ६ बेइंडिय पर्याप्ता, तेइंद्रिय अपर्याप्ता तेइंद्रीय पर्याप्ता, ए चौरिं प्रिय अपर्याप्ता १० चौरिंडिय पर्याप्ता, ११ संज्ञी पचेंद्रिय अपर्याप्ता १२ संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता, १३ संज्ञी 2. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचेंद्रिय अपर्याप्ता भने १४ संझी पचेंघिय पर्याप्ता एम सर्व संसारी जीवोना चौद स्थानक-नेद-कर्म ग्रंथादिकने विष कह्यां बे. पृथ्वीकायादिक स्थावरना पांच सूदम अने पांच बादर मळी दश, प्रत्येकवनस्पतिकायनो एक; विगलेंजियना त्रण, अने संझी तथा असंझी पंचेंऽियना बे नेद एम सर्वेमळीने सोळ नेदने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता करतां बत्रोश नेद पण प्रकारांतरे गएया . हवे जीवना पांचशे त्रेश नेद कह्यां देते श्रा प्रमाणे; नारकीना सात लेद ले तेने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता करतां चौद नेद थाय, पांच सुदम स्था. वर, पांच बादर स्थावर, एक प्रत्येकवनस्पतिकाय अने त्रण विगछिय एवं चौद तथा पांच समुर्बिम तिर्यंच पंचेंडिय ने पांच गर्नज तिथंच पंचेंड्रिय एवं दशमळीने चोवीश नेद थाय, तेने पर्याप्ता तथा अ. पर्याप्ता करतां तिर्यंचना अमताळीस नेद थाय. एक सोने एक गर्नज मनुष्यना पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता गमतां बसेंने बे अने समुर्बिम मनुष्यना एकसोने Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक अपर्याप्तामळीत्रणसेंने त्रण मनुष्यना नेद वाय. दश भुवनपति थार व्यंतर, बाग्वाण व्यंतर, पंदर परमाधामी, दश तिर्यग्जूंनक, पांच चरज्योतिषी, पांच स्थिरज्योतिषी, नवसोकांतिक, त्रणकिस्विषिया, बार देवखोक, नवग्रैवेयक तथा पांच श्रनुत्तरविमानना मळीने नव्वाणुं तेने पर्याप्ता अने अपर्याप्ता गवतां एकसोने अहाणु नेद देवताना थाय. एवी रोते चौद नारकीना, अमतालीस तिर्यंचना, ऋणशेने त्रण मनुप्यना अने एकसाने यहाणुं देवताना मळी सर्व संसारी जीवोना पांचसेंने त्रेशन द कहां हैं, पृथ्वीकायना दंगके चार, थपकायना दमके चार, तेउकायना दंमके चार, वाकायना दंगके चार तथा वनस्पतिकायना दंमके उ जीवनेद जाणवा, वे इंडियना दंगके बे, तेइंडियना दमके थे, चौरिजिय ना दंमके ये अने तिर्यंच पंचेंजियना दंगके वीश जीवनेद कहां . मनुष्यना दंमके त्रणसें नेत्रण ने तेर देवताना दमके एकसोने बहाएं जीवनेद पामीए. ॥ इति जीवनेद धार ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३३) अथ पचीसमुं वेदहार. वेद-जे अनिखाप करवो ते वेद त्रम प्रकारे मोवेद, पुरुषवेद अने नपुंशक वेद ते दरकना वळी बब्बे नेद , १ अव्यवेद श्रने जाववेद. . दाढी, मुगदिक मुख पुरुषाकार, पुरुषचिन्द, वीर्यपतन, दृढता अने धैर्यादि लक्षणे युक्त ते अव्य पुरुषवेद तथा जेम श्लेष्मनाजोरेखटाशनीश्वा थाय खटाश नावे तेम जे कर्मना उदयथी स्वीदर्शन, आलिंगन, मैथुनादिकनी श्वा थाय ते जावपुरुषवेद. ते वेद घासना नमका जेवो जाणवो, जेमघासनी ज्वाला एकदम उठे पण पाळी तरत समाश जायजे तेम पुरुषवेदी वेदना उदये विडलं थाय पण कार्य सिदिए तरत शांत थाय. ते पुरुषवेद जाणवो. स्तन, योनी प्रमुख श्रवयव सहित अने दाढी मुगदिक रहित ते अव्य स्त्रीवेद तथा जेम पित्तना जोरे मिष्टान्ननी इछा थाय मिष्ट नावे तेम जे कर्मना उदयथी पुरुष सुहामणो लागे, थालिंगन,मैथुनादिक अनिलाष उपजे ते नाव स्त्रीवेद ते वेद बकरोनी Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) लींमीना श्रग्नि सरखो जाणवो, एटले जेम लींमी. नी अग्नि जेम जेम खोरीए तेम तेम विशेष दीपे घणीवार प्रज्वले तेम स्त्रीवेदी वेदनाउदये घणी प्र. ज्वखे पुरुषनाकरस्पर्शादिके वधारे दीपे घणे कष्टे शांती थाय ते स्त्रीवेद जाणवो. ___ स्तनादिक स्त्री अवयवो आने दाढी मुगदिक पुरुष चिन्ह जेने होय नहि, कांइक स्त्रीनेमळतीकांश्क पुरुषने मळती नाषा बोले, स्त्रीनीपरे चाळा चेष्टा करे अने स्त्रीनी जेम कोमळता निर्बळतादिकेकरी सहीत होय ते द्रव्य नपुंसकवेद जाणवो तथा जेम पित्त श्लेष्मनाजोरे खारा खाटानी श्छाययाकरे खारं खाटुं नावे एम जेकर्मनाउदयथी स्त्री अने पुरुष ए बन्ने सबंधि विषयानिलाष उपजे ते नाव नपुंसक वेद जाणवो; ते वेदोदय नगर दाह सरखो बे, जेम नगर बलतुं होय तेमा रहेला उकरमांदिक घणा काळ सुधी बळे तरत लवाय नहि, तेम नपुंसकवेदी मोहाग्निज्वालाए वाजल्यमान घणा Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) काळे पण शान्तिने. पामे नहि. अंतरंग वेदरुप अग्नि धुंधवातो.रहे ते नपुंसक वेद जाणवो.. पांच स्थावर, त्रण विगलेंज्यि अने नारकीना दंगके एक नपुंसक वेद होय, गर्नज तिर्यंच अन गर्नज मनुष्यना दंमके त्रणे वेद होय, तथा देवताना तेरे दंगके नपुंसक विना बाकीना बे वेद होय श्रने समुर्बिम तिर्यंच तथा समुर्छिम मनुष्यने एक नपुंसक वेद होय . गर्नज मनुष्य, गर्नज तिर्यंच, जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने सुधर्मा तथा शान देवलोकनादेवो कायसेवी, कायसेवाए तृप्ति पामे, त्रीजा अने चोथा देवलोकना देवो स्पर्शसेवी, स्तनजुजा आलिंगनादिकायस्पर्श तृप्ति पामे. पांचमा थने का देवलोकना देवो रुपसेवी पोताने नोग योग्य देवीनारुप, हास्य कटाक्षादिकरुप देखीने तुप्ति पामे. सातमा अने भाउमा देवलोकना देवो शब्दसेवी पोताने लोग योग्य देवीना गीत वाजींत्र हास्य नेपुर ऊंकारादि शब्द सांजळीने तृप्ति पामे. नवमां, दशमां, अगियारमां अने बारमा देवलोकना Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) देवो मनसेवी, एटले पोताने लोग योग्य देवी मनमांहे चिंतवे तेवारे ते देवी पोताना स्थानके बेठीयकीज शृंगारधरी नली बुरी काम चेष्टा मनमां विं. तवतीनोगने माटे सावधान थाय तेवारे ते देवता त्यांज एटखे पोताने स्थानके बेठा थका मनसंकस्पे परम सुख परम तृप्ति पामे.देवीनी उत्पत्ति बोजा देवलोक सुधी अने गमना गमन थाउमा देवलोक सुधी जे. स्पर्शसेवी, रुपसेवी अने शब्द सेवीने पण कायसेवीनी पेठे शुक्रपुजल बे; ते शुक्रपुजल देवता नी शक्तिएकरीने देवांगनाना शरीर ने विषे शंक्रमे संचरे तेथी देवांगनाने संन्लोग सुख उपजे . ते शु. क्रपुजल वैक्रिय होवाथी गर्न उपजे नहि. नवग्रैके. यक अने पांचअनुत्तरविमानना देवता अप्रवीचारा एटले विषय सेवा रहित माटे मने करीने पण स्त्रीने प्रार्थे नहि माटे पराधिनरहित संतोषवंत सर्व विषय सेवी देवताउँथी पण अत्यंतसुखीया . काय सेवीथी अनंत गणु सुख स्पर्श सेवीने जाणवू ने ते थकी अनंत गणु सुख रुपसेवीने तेथकी Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) अनंतगणुसुख शब्दसेवीने तथा ते थकी पण धनंतगणुसुख मनसेवीने अने ते थकी अनंतगर्दा सुख अप्रवीचारीदेवोनेजाणq. उपर कहेला सर्व जीवोनासुखथी अनंतगणुं सुख गया डे राग थने शेष जेना एवा श्री वीतरागने जाणवू. ॥ इति वेदधार ॥ अथ बीसमुं कषायहार. कषाय-(कष-थाय)कष-संसार ने थाय-सान एटले जेनाथी संसारनो लान थायसंसारनी परंपरावधे तेनुनाम कषाय. अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानी प्रत्याज्यानीथने संज्वलन ए चार नेद कषायना जाणवा. अनंतानुबंधी-अनंता संसारने वधारनार एवो क्रोध, मान, माया अने लोनते अनंतानुबंधों कषाय जाणवो, एक्रोध पर्वतनी लींटी जेवो, मान पाषाणना थानला जेवं, माया वाशना मुळ जेवी, अने लोन करमजनारंगजेवो जाणवो, अप्रत्याख्यानी को पण पच्चखाणने उदयभाववानदेयोमा पण पञ्चखाणनी प्राप्ति न थाय एवोक्रोध, मान, माया अने सोन ते Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) अप्रत्याख्यानीकषाय जाणवो.एक्रोध सुकेला तळावनी रेखा सरखो, मान हामकाना थांजलासरखं, माया मेंढानाशिंगमा सरखी अने लोन कादवनारंग सरखो जाणवो. प्रत्याख्यानी सर्व विरतिरुप पच्चखाणने आवरे, आववा नदे एवो क्रोध,मान, माया अने लोन ने प्रत्याख्यानी कषाय जाणवो. ए क्रोध रेतीनी रेखा सरखो, मान काष्टना थानला सरखं, माया बळदना मुतरनी रेखासरखी अने लोन काजळनारंग सरखो जाणवो. संज्वलन चारित्रीयाने पण लगारेक दीपे, उदय आवे एवो क्रोध, मान, माया अने लोन ते संज्वलन कपाय जाणवो, ए क्रोधपाणीनीरेखासरखो, मान नेतरना थांनला सरखं, माया वांशनीबगल सरखी अने लोन हळदरना रंग सरखो जाणवो. अनंतानुबंधी समकीतनो, अप्रत्याख्यानी देश विरतिनो, प्रत्याख्यानी सर्वविरतिनो अने संज्वलन कषाय यथाख्यातचारित्रनो घातकरनार . क्रोध मान, माया अने लोननी अपेक्षाए जीवो सर्वथी थोमामानी, मानीथी विशेषाधिक क्रोधी, क्रोधीथी Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेषाधिक मायावंत अने मायावंतथी विशेषाधिक लोजीजीवो कह्यां डे. चोवीशे दंमके क्रोध, मान, माया अने लोन एम चारे कषाय होय बे, पण तेमां एटटुं विशेषक नारकीने क्रोध वधारे, तिर्यंचने माया वधारे मनुष्यने मान वधारे श्रने देवताउने लोन वधारे होय जे. एम कडं . ॥इति कषायहार ॥ अथ सत्तावीसमुं संज्ञाहार. संज्ञा-रुमा प्रकार, ज्ञान तेनुं नाम संझा कर हीए; ते संज्ञा बे प्रकारनी . एक ज्ञान संझा अने बीजी अनुनवसंज्ञा. ज्ञान संज्ञा ते मतिज्ञान, श्रुर ज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान अने केवळज्ञान ते केवळज्ञानरुपसंज्ञा दायिक अने मतियादिक सर्व संज्ञा दायोपशमिक . बीजी अनुन्नव संज्ञा ते पोतानांकरेलां शातावेदनियादि कर्मोथी उत्पन्न थाय ले ते जेमके श्रावस्तु मारे आहारयोग्य था वस्तुथी मारु पोषण थशे इत्यादिक एकछियादिकने पण अव्यक्तव्य शब्दार्थो लेख, ते अनुन्नव Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा. ते संज्ञा चार प्रकारे ने थाहारसंझा, जय संज्ञा, मैयुनसंज्ञा अने परिग्रहसंज्ञाए चार प्रकारे संज्ञा जाणवी; वली १ कोष, १ मान, ३ माया, ४ खोन, ५ उध थने ६ खोक संज्ञा पण कही . ते उपरनी चार संज्ञामां मेळवता दश संज्ञा . बीजा ग्रंथोमां वळी १ सुख, २ ःख, ३ मोह, ५ विति. गिडा, ५ शोक, थने ६ धर्म एउ नेदवासो पण संज्ञा कहेलो . ए संल ते पूर्वोक संज्ञा मांहे अंत. र्गत जाणवी. ____ नरकादिक चोवीसेदंगके सर्वजीवोने उपर कहेली चार अथवा दशसंशा होय . पृथ्वीकायादि जीवोने मन नथी तो पण था कहेली संझाउँतो सर्व जीवोने होय. जेम वनस्पतिकायजीवो जळादिकना थाहारवमे जीवे वे अने आवा प्रकारनी वस्तु मळे तो सारु, श्रावस्तुथी मारुशरीरपुष्टथशे, एवो अवक्तव्य शब्दार्थो ल्लेख, ते थाहार संज्ञा जाणवी. खडामणी विगेरे केटलीएकवनस्पति मनुष्यना हा. थनो स्पर्शयवाथी संकोचीजाय ले ए जयसंज्ञा Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) जाणवी. नासक कादिकोने स्त्रीनो स्पर्शथवाथी प्रफुलीतथायडे अथवा तामीवक्षनीपासे ताम वृक्ष होय तोज तामी फळे ले फळवाळी थाय ने ए मैथुन संज्ञानासण जाणवा. बोस्व पक्षाशादि वृक्षो नीधान (धन) ना उपर उगे ले अथवा पोताना मु. ळीथा वो नीधानने वींटे नीधाननी अासपास विंटलाय डे ए परिग्रह संज्ञानु लक्षण जाणवू. कोकनद वृक्षने मनुष्यादिकनो पगलागवायी हुंकारा करे ने ए क्रोध संशानुं लक्षण जाणवू. हुं उता था खोको सूखी केमथाय एवा श्रहंकारे करी रुदंती वृक्ष रुदन करे ने कारणके तेथी सुवर्णसिह थाय , ए मानसंज्ञानु सक्षण ने. वेलमी फळने पोताना पांदमा वमे ढांके , ए माया संज्ञाना सकण ने.थति तीन लोजनाउदये जीव धनउपरवृक्षथाय , अथवा को मोटोफणीधर नागथक्ष धननी रक्षा करे जे, ए लोन संझाना नाव जाणवा.बेखमीमार्ग तजी वृक्षने वीटलाय ए उघसंज्ञा, तथा कामी श्रेणीबंध चाखेने, माकम एकदमनासेडे, थने Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) था नवमां हजी मरण नथी श्राव्युं तो पण हुं मरी जश ए जीवने जय लागे जे ए सर्वपूर्वोक्त संज्ञाना नाव जाणवा. जीव नवोनवधी आहारादिक कृत्य वमे टेवाएलो माटे अजाण पणे, असंझीपणे अथवा तो संझीपणे पण उपर कहेली सर्व संझाए सहीत जीव होय . जेम नरघांवगामनारमाणस अन्य व्यवसायमां होय तो पण तेनी आंगळा उंची नीची थायले अथवा टकोरा वगामे, तथा काप मनो वहेपारी, कापमने फामवाना व्यवशायथो रात्रे उघमां पण अणजाणतां पोतानुं धोती- के अन्य वस्त्र फामे के कारणके ए हमेशानी प्रवृत्तिनी टेव , एम सर्व संसारी जीवो देहममत्वेकरी आहारादिकथी टेवाएला होवाथी हालपण जो अजाण होय अज्ञानी होय तो पण तेमा प्रवृत्ति करे ने एनुं नाम संज्ञा जाणवु: ॥ इति संज्ञाहार ॥ . अथ श्रष्ठावीसमुं स्वकाय स्थिति झार. स्त्रकाय स्थिति-(स्वकाय स्थिति) स्व पोनाना, काय- समुह, अर्थात पृथ्वीना जीवोनो समुह ते पू: Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) म्वीकाय, पाणीना जीवोनी जातीरुप समुह तेने विधे फरीफरी मरणपामीने तेनी तेजकायमा उत्पन्न थाय, तो तेनीअपेदाए जे स्थिति काळमानं तेनुं नाम स्वकाय स्थिति जाणवी... - पृथ्वी काय, अपकाय, तेनकाय अने वानकाय ए चार एकेजियना दमके उत्कृष्टी स्वकाय स्थिति असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काळनी अर्थात् पृथ्वीकायनो जीव मरणपामीने फरी तेजकायमा उपजे, पण पोतानी कायने मुके नहि तो असंख्यात उत्सर्पिणी अवपिणी काळ सुधी रहे. एमज अपकाय तेउकाय अने वानकायने विषेपणजाणी लेवु. वनस्पात कायन स्वकाय स्थिति उत्कृष्ट। अनेता काळ प्रमाण जाणवी. आजे वनस्पति कोयनी स्थिति कहीते व्यवहारराशी जीवनी अपेदाए जाणवी केमके व्यवहारराशीजीव मरणपामी नीगोदमां जायतो अनंती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काळ सुधी रहेने पडी पागे व्यवहार राशीमां आवे एम जाणवु: बेइंजिय, तेइंड्रिय अने चौरिंजिय एम विकधि Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) पमा दरेकने उत्कृष्टी स्वकाय स्थिति संख्याता हजार परश सुधीनी आणवी. तियेच पचेंजिय अने मनुष्यनी उत्कृष्टी स्वकाय स्थिति सात था जवनी कही . गर्नज तिर्यंच तथा मनुष्यो संख्याते श्रायुष्ये सातनव करे धने श्राग्मे नवे युगलीयाय ए थाने नवे करी उस्कृष्टी स्वकाय स्थिति त्रण पस्योपम थने सात पूर्व कोम वरसनी गर्भज तिर्यच तथा मनुष्य नी आणवी. सकाय जीवोनी स्वकाय स्थिति बेहजार सागरोपमनी कही , कारणके कोपण जीव वधारमा बधारे त्रसकायमांबे हजार सागरोपम सुधी रही शके ने पठी श्रवश्य एकिंद्रिय थाय, संज्ञीनी स्वकाय स्थिति उत्कृष्टी नवसें सागरोपमनी जाण. बीने पनी अवश्य असंझीमां जाय एम कडं . दे. वता तथा नारकी मरीने पाग देवता तथा नारकीमा जाय नहि अवश्य बीजी गतिए जाय. पृथ्वीकायादि उपर कहेला सघळा जीवोनी जघन्यकाय स्थिति अं. तर मुहुर्तनी जाणवी. . ॥ इति स्वकाय स्थितिधार ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) अथ लंगणत्रीसमुं विरहकाळहार. - विरहकाळ-एकजीवउत्पन्नथयापीबीजो जीव केटलाकाळनेअंतरेउत्पन्नथाय अथवाचवे एम जेदरेक दमकने विषकहेतुं तेनुनामयहिं विरहकाळ जाणवो. _ नारकोना दंगके प्राये समयसमयप्रत्ये जीव उपजे अने चवेजे;परंतु क्यारेक अंतरपमेतो जघन्य एकसमय अने उत्कृष्टोवारमुक्षुतनोजाणवो, सातेना. रकीमां कोजीवनउत्पन्नथायतो वधारेमां वधारे बार मुहुर्तसुधीनउपजे पण बारमुहुर्त पबीतो जरुर कोइनरकेजीवउपजे माटे सामान्ये सातेनारकीयाश्री बार मुहुर्तनोविरहजाणवो. जुदीजुदीनारकीनी अपेक्षाए, पहेली रत्नप्रजा नारकीए चोवीसमुहुर्त, बीजीशर्करा प्रनाए सात दिवस,वालुकाएपंदर दिवस,पंक प्रनाए एकमास, धुम प्रनाए बेमास, तमनाए चार मास अने तमस्तम प्रनानारकीनेविषे उमासनो उपजवा तथा चववानो विरहकाळएटले अंतर उत्कृष्टोजाणवो. अहिंजेनो जेटलो विरहकाळकह्योडे तेटलाकाळथी उपरांत अवश्य ए नरकोनेविषे कोश्पणजीव उत्पन्न Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) थाय एम का दशजुवनपतिनादंगके जीव निरंतरउपजेले अने चवेडे; परंतु कदीअंतरपमेतो जघन्यथी एक समयनो अने उत्कृष्टथी चोवीस मुहुर्तनो विरहकाळ एटले अंतरजाणवो एमज व्यंतर, ज्योतिषी तथा सौधर्मनेश्शान देवलोकने विषे पण प्रत्येके उपजवा तथा चववानोविरह काळ वधारेमांवधारे चोवीस मुहुर्तनों बे, तेवारपनोनिश्चे बीजोकोजीव देवतापणे उपजेअथवाचवे. त्रोजा देवलोके नवदिवसने विसमुहुर्तनो, चोथादेवलोके बारदिवसथने दशमुहुर्तनो, पांचमादेवलोक सामीबावीस दिवसनो, बहा देवलोके पीस्ताळीसदिवसनो आग्माए सो दिवसनो, नवमाए तथा दशमाएप्रत्येक संख्याता मासनो अने अगियार तथा बारमाए संख्याता वरसनो विरहकाळ जाणवो. या संख्याता वरस ज्यां सुधी सोवरसपुरानथाय त्यांसुधीनागणवा. पहेला, बीजा तथा त्रीजा ग्रैवेयके संख्याता सेंकमो वरसनो, चोया, पांचमा अने बहा ग्रैवेयके संख्याताहजार Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) वरसनो श्रने सातमाशाउमातथा नवमात्रैवेयके संख्यातालाखवरसनो उपजवाचववानो विरह काळ कह्योठे. ज्यांसुधी हजार वरस पुरा न थाय त्यां सुधी संख्याता सेंकमा वरस, ज्यांसुधी, लाखवरस पुरा नथायत्यांसुधी संख्याताहजारवरस अने ज्यांसुधी क्रोमवरसपुरानयाय त्यांसुधीना संख्यातालाखवरसगणाय जे.एक सर्वार्थ सिविना बाकीनाचारअनुत्तरविमाननेविषे पढ्योपमना असंख्यातमानागजेटलो अने सर्वार्थ सिइ विमानने विषे पढ्योपमनासंख्यातमानागजेटलो उत्कृष्ट विरहकाळकयोडे. जघन्यथी एक समयनो उत्पात तथा चवन विरहकाळ सर्वदेवलोकेजाणवो. - पृथ्वीकायादिपांचे एकेजियनादंमके प्रत्येक समये जीवउत्पन्न थायजे अने चवे माटे. ते एकेजियनेविषे विरहकाळहोयनहि. . __बेइंडिय, तेइंघिय अने चौरिद्रियना दंझके प्र. त्येके उत्पात अने चवननो विरह वधारेमां वधारे अं. तरमुहुर्त अने जघन्यथा एक समयनो करो. गर्लज Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४ ) तिर्यंच पंचेंजियने विषे बार मुहुर्तनो अने समुर्छिम तिर्यंचपंचेंजियनेविषे अंतरमुहुर्तनो जन्म तथा मरणथाश्रीविरहकाळजाणवो, गर्नज मनुष्यने विषे बारमुहुर्तनो अने समुर्बिममनुष्यनेविषे चोवीस मुहुर्तनो उत्कृष्ट विरहकाळहोय. मोदनेविषे निरंतर जीवउत्पन्नथायजे. पण क्यारेक अंतर पडे तो जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी उ मासर्नु सिगतिनेविषे. श्रांतरुंकडंडे तथा सिइगतिथी सिहना जीवोनेचववानुनथी माटे चवनविरहकाळ होयनहि एमजाणवू. , . ॥इति विरहकाळ छार॥ - अथ त्रीसमुं चवन संख्याद्वार अने एकत्रीसमुं उपजवानुं संख्यादार. चवन संख्या-एक समयमांजीवकेटलाचवे (मरे) ए संख्या जे कहेवु ते. चवन संख्या तथा एक समयमा केटलां उत्पन्न थाय एम जे कहे ते उपजवानी संख्याहार. ए बन्नेछार नेगा कहे . ....नारकीना दमके, जीवो उपजे तो समये समये जघन्यथी एक, बेत्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता थ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४ए) संख्याता उपजे ने तथा चवे . दश जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक मां सौधर्म देवलोकथी मांगीने आठमा सहस्त्रार देवलोक सुधीना देवलोकने विषे जीवो जो उपजे तो, एक समयमा जघन्यथी एक, बेत्रण अने उत्कृष्टा संख्याता असंख्याता जीवो उपजे तथा चवे . कारणके आठमा देवलोक सुधी तिथेच पण जायने ने ते तिर्यंचगतिमांजीवोअसंख्याता ले माटे असंख्याता उपजे एम जाणवू. नवमा आदि उपरना देवलोके एक समयमां डेवट संख्याता जीवो उपजे अने चवे बे. ते देवलोकमां फक्त गर्नजमनुष्यजायजे. पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय अने वाउकायनादुमके, प्रतिसमये जीवो असंख्याता उपजेले अनेचवेडे, तथा वनस्पतिनादंडके प्रतिसमये जीवो अनंताउपजे ने अनंताचवे बे; वनस्पतिकायमा जीव अनंता ने माटे वनस्पतिकायमांथीयाव्या जीवो वनस्पतिकायमां समयेसमये अनंतापजे अने अनं. ताचवेवे एम जाणवू. बेइंजिय, तेइंजिय, चौरिडिया Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) अने तिर्यंचपंचेंडियना दमके, देवतानी पेठे एक वे त्रणथी यावत् संख्याता असंख्याता उपजेशने चवे. - गर्भज मनुष्यने विष उपजेतो एक समये वधारेमां वधारे संख्याता जीवो उपजे अने चवे, तथा समुर्बिम मनुष्यने विषे देवतानी पेठे संख्याताने असंख्याता उपजे अने चवे . सिङ्गति (मोक्ष)ने विषे जीवो उपजेतो एक समये एक, बेथी मामीने यावत् एकसोने पाठ सुधि उपजे . ते सिगतिमांथी प. मवानो अन्नाव होवाथी कोश् चवतो नथी. ॥शत चवन तथा उपजवानु संख्याधार ॥ अथ बत्रीशमुं गतिहार.. __ गति-गमन करवू-कया दंमकनो जीव कया कया दंगके जाय एमजे कहेव॒ते अहिंगतिहार जाणवू. - नारकी जीवो नारकीमाथी नीकळी, गर्नज तियच अने गर्नज मनुष्य एम बेदमकमां जाय . दशजुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने सौधर्म तथा शान देवलोकना देवो नवांतरे, पृथ्वीकाय, अपकाय, बनस्पतिकाय, पंचेंजिय तिर्यंच अने मनुष्य एम Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (१५१) पांच दंमके जाय, तथा सनत् कुमारादिसहस्त्रार पर्यतना देवो गर्नज तियेच अने मनुष्य एम बे दंमके जाय, ने सहस्त्रारथी उपरना देवलोकना देवो एक गर्नज मनुष्यनाज दंमके जाय . पृथ्वोकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय तथा बेइंडिय,तेऽप्रिय अने चौरिं प्रिय ए बदमकना जीवो, नवांतरे पांच एकेंजिय, त्रण विगलेंज्यि, तथा तिर्यंच पंचेंघिय अने मनुष्यना मळी दश दंगकने विषेजाय अने वानकाय तथा तेउका यनाजीवो ए उपर कहेला दश दमकमांथी एक मनु प्यनादमक सिवाय बाकीना नवदंमकने विषे जायजे. गर्नजतियेच पंचेंजियग्रने गर्नजमनुष्यनादमकमांथी संख्याता आयुष्यवाळा जीवो पोतानाकर्मानुसार २४ दमकमां जाय तथा असंख्याता आयुष्यवाळा तो तेर. देवतानाजदंगकेजायजे.संख्यातायुष्यवाळा गर्नज मनुष्यमांथी वज्ररुषननाराच संघयणना धणी कोइक जीव आले कर्म खपावीने सिगति मांहे पण जाय . एम सामान्ये चोवीसे दंगकना जीवोनीगति कही.. हवे चोवीसे दंझकना जीवोनी गति पांचसेंने Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *(१५५ ) त्रेसठ जीवनेदने विषे कहे :-पहेलोयीठो नारकीना जीवो आयुदये नारकीमांयी नीकळीने पंदर कर्म नूमिना गर्नजमनुष्यपर्याप्ता, पंदर कमेनूमिना गर्न जमनुष्य अपर्याप्ता तथा पांचगर्नजतिर्यंचपर्याप्ताने पांचगर्नेजतिर्यंचयपर्याप्ता एवं चालीशजीवन्नेदने विषे जाय, तथासातमी नारकोथीनीकड्यां जीवो तो पांच गर्जज तियेच पर्याप्ताने पांच गर्नज तिर्यंच अपर्याप्ता एमदशजीवनेदने विषे जायचे. दशजुवनपति, सालव्यंतर, पंदरपरमाधामी, दशतिर्यग ज्रनक, दशज्योतिषी, सौधर्म, शान अने एक किटवीषिया एम चोसठ जातिनां देवोमांथी नोकल्या जीवो, पंदर कर्मनूमिनागनज मनुष्य अने पांच जातिना गर्नज तिथंच तथा बादर पृथ्वीकाय, बादर अपकायने बादरप्रत्येकवनस्पतिकाय मळी त्रेवीसपर्याप्ता तथा त्रे. वीस अपर्याप्ता एवं वेताळीस नेदमा जाय . सनत कुमारथी मामीने सहस्त्रार पर्यंत देवलोकना देवो, वे किक्ष्वीषिया जातिना देवो अने नवलोकांतिकना देवो एम सत्तर जातिना देवोमांथो नोकल्या जीवो, Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) पांच गर्नज तिर्यंच अने पंदर कर्म नूमिना मनुष्य नामळी बीस पर्याप्ता तथा वीस अपर्याप्ता एवं चाळीस नेदमां जाय . नवमा आणत देवलोकथी मामीने बारमा अच्युत देवलोक सुधीना चार देवलोकना देवोअने नव अवयक तथा पांच अनुत्तरविमानना देवो एसर्वे मळीने अढार देवलोकना नोकदयाजीव, ते पंदरकर्म मिना मनुष्यमां जाय . नारकीनो एक दमक तथा देवताना तेरदंझक मळोने चौद दंगकनी गति कही. जीवमात्र उत्पति काळे अपर्याप्तावस्थाए होय अने पलीथी पर्याप्ता थाय, ए अपेक्षाए अहीं नारकी तथा देवतानी गति पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता जीवन्नेदे कही तो ते करण अपर्याप्ता जाणवा. करण अपर्याप्ता जीव अवश्य पर्याप्ता थायज, तेथी संग्रहणी विगेरेमा कयु डे के नारकी तथा देवता चवीने पर्याप्ता तिर्यंचयने मनुष्य थाय एमां कोई विरोध नथी.. ..पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय तथा बे जिय, ते इंडिय अने चौरिंजिय एवं उदंगकनाजीवो Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) श्रायुदये श्राप थापणा दमकमांथी नीकळीने, पंदर कर्म मिना गर्नज मनुष्य पर्याप्ता, पंदर गर्नज मनुष्य अपर्याप्ता, एकसोने एक समुर्छिम मनुष्य अने अमताळोसतिर्यंचना ए सर्वे मळीने एकसोने उंगणा एंशी जीवनेदने विषे पोतपोताना कर्मानुसारे जाय डे. तेउकाय अने वाउकाय ए बे दमकना नीकळ्या जीव. अमताळीस नेदना तिर्यंचमां जाय . एवी रीते बावीस दंकनी गति कही. ___गर्नज तिर्यंच पंचेंड्रिय एवा जलचरजीवो आउमाथी बारमा देवलोके, नव ग्रैवेयके अने पांच श्रनुत्तर विमाने जाय नहि माटे सर्व पांचसे ने वेसठ जीवनेदमांथी ए अढार स्थानकना पर्याप्ता तथा अपर्याप्तामळी त्रीस जीवन्नेद वादकरता वाकीना पांचसेंने सतावीस जीवनेदमां जलचर जीवो जाय बे. गर्नजरपरिसर्पजीवो उपर कहेला पांचसेंने सत्तावीस जीवन्नेदमांथी सातमीअने ही नारकीना पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता मळी चार नेद वर्जीने बाकीना पांचसेंने वीस जीवन्नेदमां जाय . गर्लज. Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५) थलचर जीवो ( चोपगा ) उपर कड़ेला पांचसेने स तावीस जीवनेदमांथी सातमी, बही ने पांचमीनारकीनापर्याप्ता तथा पर्याप्ता मळोवनेदवर्जी ने बा - कीना पांच में एकवीस जीवनेदने विषे जाय बे. गर्नजखेचरजीवो उपरकडेला पांचसेंने सतावीसजीवनेदमांथी सातमी, बही, पांचमी अने चोश्री नारकीनापर्याप्ता तथा पर्याप्तामळी आठनेदवर्जीने बा - कीना पांचसेंने जंगलीस जीवनेदमा जाय बे. गर्भज जुजपरिसर्पजीवो उपरकहेलापांचसेंने सत्तावीस जीव दमांथी सातमी, बही, पांचमी, चोथी ने त्रीजी नारकीनापर्याप्ता तथा अपर्याप्ता मळीदशनेदवर्जीने बाकीनापांच सेनेसत्तरजीवभेदमांजाय बे. दवे असंज्ञी तिर्यंच पंचेंद्रियजीवो आयुकये निकलीनेत्रणसेंने पंचाणुंभेदने विषे जाय तेनां नाम कहे बे;- दश भुवन पति, सोल व्यंतर, पंदर परमाधामी, दशतिर्यग् जुंनक, उप्पन्न अंतरद्वीपनामनुष्यो, पहेली नारकी घने पंदर कर्मभूमिनामनुष्यो एवं एकसोने वीस पर्यात तथा पर्याप्ता मळीने बसेंने बेताळीस तथा Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) एकसोने एक समुर्छिम मनुष्यो अने अमताळीस नेद तिर्यंचना गणतां त्रणसेंने पंचाएं जीवनेद थया तेमां असंझी तियेच पचेंजियनी गति जाणवी, एवं त्रेवीस दंगकनी गति कही. . मनुष्यना दमके गति कहे जे. प्रथम समुर्छिम मनुष्य थायुदये, समुर्छिम मनुष्यमांथी नोकळ्या, पंदर कर्म जुमीज मनुष्यपर्याप्ता, पंदरकर्मजुमिज अपर्याप्या, एकसोने एक समुर्छिम मनुष्य अने अ. मताळीस नेदना तियेच एवं एकसोने उंगणा एंसी जीवनेदमां जाय जे पंदर कर्म जुमिना गर्नज मनुष्यो मांथी जीवो नोकळीने पांचसेंने त्रेसठ जोवन्नेदमां जाय . त्रीस अकर्म नुमिना मनुष्यमांथी नीकळया जीवो, दशजुवनपति, सोलव्यंतर, पंदर परमाधामी, दशतिर्यग् बनक, दश ज्योतिषी, एक किल्वीषिया अने सौधर्म तथा शान ए वे देवलोक मळी चोसठ जोवनेदमां जाय . बप्पन्न अंतर छीपनामनुष्यमांथी नीकळ्या जीवो, दश जुवनपति, सोलव्यंतर, पंदर परमाधामी अने दश तिर्यग् अंनक एम एकावन Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. (१५७) जीवन्नेदमां जाय ले. इति गतिधार. ___अथ तेत्रीशमुं श्रागतिहार. - श्रागति-आगमन-कया दमकने विषे कयाकया दंगकना जीवो आवीने उपजे एम जे कहेवू तेनुं नाम अहिं श्रागतिहार जाणवू. . नारकी तथा देवताना मळी चौद दंगकने विषे एक तिर्यंच पंचेंडियअने बीजा मनुष्य एम बेदंगक मांदेथी जीवो श्रावी उत्पन्नयायडे. पृथ्वीकाय, अपकाय अने वनस्पतिकाय एम त्रण दंगकने विषे, एक नारकीवर्जीने बाकीना त्रेवीशे दमकमांडेथीजीवोगावी उत्पन्नथायले. तेउकाय, वाउकाय, वे इंघिय, ते इंडिय अने चौरिप्रिय एम पांच दंगकने विषे. थावरना पांच, विगछियना त्रण, तिर्यंच पचेंघिय अने मनुष्य एम दश दमक मांडेयी जीवो श्रावी उत्पन्न थाय . तिथंचपचेंजियना दमकनेविषे चोवीशे दमकमांदेथी जीवो आवी उत्पन्न थाय . मनुष्यना दंगकने विषे. तेउकाय अने वाउकाय सिवाय बाकीना बाबीश दंगकमांहेथी जीवो आबी Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५४) उत्पन्न थाय छे, एम सामान्ये चोवीरों दंरुकन यागति कही. " हवे चोवंशे रुके, पांचसे त्रेसठ जीवनेदमांथी आगति कदेबे - पहेली नरके पंदरकर्मभूमीज गर्भज मनुष्य, पांच गर्भज तिर्यच पंचेंद्रिय ाने पांच समुमितिर्येच पंचेंद्रिय एम पच्चीशभेदना जीव याव उपजे. बीजी नरके, पंदरक मंजू मिजगर्भज मनुष्याने पांच गर्भज तिर्यच पंचेंद्रिय एम वोस जेदनाजीव यावी उपजे त्रीजीनरके, पंदर कर्म भूमिज गर्भज मनुष्य तथा गर्जज जलचर, थलचर, उरपरिसर्प ने खेचर एम जंग णिश नेदमांहेथी जीव घ्यावी उपजे. चोथोनर के पंदर कर्मभूमिज गर्भजमनुष्यतया गर्भज जलचर थल चराने जर परिसर्य एम अढार नेदमांहे थीजीव यावी उपजे. पांचमी नरके पंदर कर्मनुमिज गर्भज मनुष्य तथा जलचर ने उरपरिसर्प एम सत्तर नेदमांदेथी जीव आवी उपजे, बघीतर के पंदर कर्मभुमिज, गर्जज मनुष्य ने गर्भज जलचर एम सोलनेद मांदेथी जीव झावी उपजे. सातमी नरके पण पंदर कर्मनुमिजग ज्ञ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) नज मनुष्य अने जलचर एम सोलनेदमाहेथीश्रावी उपजे. नरकने विषे अपर्याप्ता जीवो जाय नहि ए प्रकारे नारकीना दंमके आगति कही. ___दशजुवनपति, सोल व्यंतर, पंदरः परमाधामी अने दशतिर्यग्जूनक ए एकावनजातिनादेवोनेविषे एकसोने एक क्षेत्रना गर्नज मनुष्यपर्याप्ता, पांचग जतियेच पर्याप्ता अने पांच असंझी तिर्यच पचेंजिय एमएकसोनेअगियार नेदमांदेथी जीव आवी उपजे. दश प्रकारना ज्योतिषी अने सौधर्म एम अगियार जातीनां देवोने विषे पंदर कर्मचूमिज गर्नज मनुष्य, त्रीस अकर्मनुमिज गर्नजमनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच एम पचास नेदमाहेथी जीवो आवी उपजे. बीजा शान देवलोकने विषे पंदरकर्ममि, पांचहरि वर्ष, पांच रम्यक, पांचदेवकुरु ने पांच उत्तरकुरु एवं पांत्रीस देत्रना गर्नज मनुष्यो तथा पांचगर्नजतिर्यच एम चालीश नेदमाहेथी जीव आवो उपजे. पहेला किल्वीषिया जातिना देवोने विषे पंदर कर्मजुमि,पाँच सत्तरकुरुने पांच देवकुरु एवं पचीस क्षेत्रना गर्नज Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्यो तथा पांचगर्भज तिर्यच पंचेंडिय एम त्रीस नेदमाहेथी जीव श्रावी उपजे. त्रीजाथी आठमासुधी ब देवलोक, नव लोकांतिक अने बे किल्वीषिया एम सत्तर जातिना देवाने विष पंदर कर्ममिज गर्लज मनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच पंचेंप्रिय एम वीसनेदमाहेथी जीवो श्रावी उपजे. नवमा थाणंत देवलोकथी मामीने पांच अनुत्तर विमान पर्यत्ना अढार देवलोकने विषे पंदर कर्ममिज गर्नज मनुष्यना ने दमाहेथी जीव आवी उपजे. एवी रीते एक नारकीनो दंगक तथा तेर देवताना दंमक मळीने चौद दंगके श्रागति कही. पृथ्वीकाय, अपकाय अने वनस्पतिकाय एत्रण दंगकनेविषे अमताळीसन्नेदना तिर्यच, एकसोने एक समुच्छिम मनुष्य तथा पंदर कर्मजुमिज गर्नज मनुष्य पर्याप्ता,पंदर कर्मजुमिनागर्नज मनुष्य अपर्याप्ता तथा पंदर परमाधामी, दश जुवनपति, सोलव्यंतर, दशतिर्यग् ब्रूनक, दश ज्योतिषी, सौधर्म तथा शान अने एक किवीषिया जातिना देवो एम सर्वे मळी Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६१) बसेंने ताळीस दमाहेथो जीव श्रावी उपजे. ते उकाय, वाउकाय, बेइज्यि, तेइंजिय, चौरिप्रिय अने असंझीतिर्यंच पंचेंडियने विषे एकसोनेएक समुर्छिम मनुष्य अपर्याप्ता, पंदर कर्म जुमिज मनुष्य पर्याप्ता, पंदर कर्म जुमिज मनुष्य अपर्याप्ता अने श्रमताळीस नेदना तियैव एम एकसोने उंगणाएंसी नेदमांहेथी जीव थावी उपजे. गर्जज तिर्यंच पंचें. जिय एवा जलचर, थलचर, उरपरिसर्प, जुजपरिसर्प अने खेचरने विषे एकसान एक समुांबम मनुष्य अ. पर्याप्ता, पंदर कमजुमिज गर्नज मनुष्य पर्याप्ता, पंदर कर्म भुमिज मनुष्य अपर्याप्ता, अमताळीस नेदना तिर्यंच तथा पंदर परमाधामी, दश जुवनपात, सोलव्यंतर, दश तिर्यग् जंजक, दश ज्योतिष, त्रण किस्विषीया, नव लोकांतिक श्रने सौधर्मथी मामीने श्रापमा सहस्त्रार पर्यत् देवलोक तथा सात नारकी एम सर्वेमळीने बसेंने समसजीवन्नेद मांदेथीजीव भावी उपजे. त्रेवीस दंगके आगति कही. . समुर्बिम मनुष्यने विषे पंदर कर्म चुमिज म. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) नुष्य पर्याप्ता, बादर पृथ्वीकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, बादर पकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, सुक्ष्म पृथ्वीकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता सुक्ष्म पकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता सुक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, वादर साधारण वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता ऋण विकलेजियना पर्याप्ता अपर्याप्ता तथा वीस तिर्यच पंचेंद्रियना ने एक सोने एक समुमि मनुष्य एम सर्वे मळीने एकसोने इकोतेर नेदमांथी जीवो यावी उपजे. पंदर कर्म जुमिज गर्जज मनुष्य ने वीषे उपर कहेला एकसोने इकोतेर जीवनेद तथा नव्वाणु देवताना नेद ने पहेलीथी बहीनारकी सुधीना नारकी एम सर्वे मळीने बसेंने बोतेर नेदमांथी जीव यावी पजे. त्रीस अकर्म जुमिना मनुष्यने विषे पंदर कर्मनिज गर्जज मनुष्य पर्याप्ता ने पांच गर्भज तिर्यच पर्याप्ता मळी वीसने दम देथी जीवयावी उपजे. उप्पन्न अंतर द्वीपना मनुष्यने विषे पंदर कर्मनुमिज गर्भज मनुष्य पर्याप्ता तथा पांच गर्जज तिर्यचपर्याप्ता Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३) अने पांच समुर्छिम तिर्यच पंचेंद्रिय पर्याप्ता एम प. बोसनेदमाहेथी जोव यावी उपजे. एवीरीते चोवीस दंरके श्रागतिकही. ॥ इति श्रागतिहार ॥ .. अथ चोत्रीसमुं संपदा हार, ___ संपदा-पदवी वासना नाम. १ अरिहंतनी पदवी, १ चक्रवर्तिनी, ३ वासुदेवना, ४ बळ देवनी, ५ केवळीनी, ६ साधुनी, ७ श्रावकनी, न सम्यक्स. ष्टिनी, ए ममलिकनी, ए नव मोटी पदवी तथा चौद रत्न चक्रवर्तिना मेळवता त्रेवील पदवी थाय.ते चौद रत्नना नाम, १ सेनापति रत्न, ५ गाया पति रत्न, ३ वाधिक रत्न, ४ पुरोहित रत्न, ५ स्त्रीरत्न, ६ ह. स्तिरत्न अने ७ अश्वरत्न ए सात पचेंडीय रत्न ले तथा १ चक्र रत्न, २ खमग रत्न, ३ बत्र रत्न, ४ चर्म रत्न, ५ दंग रत्न, ६ मणिरत्न अने ७ कांगणि रत्न, ए सात एकेजिय रत्ल जाणवा. एम नवमोटो पदवी, सात पचेंजिय रत्न अने सात एकेजियरल घश्ने त्रेवीस थया, चौद रत्नमा सेनापति ते देश Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) साधे, गाथापति ते धान्य रसवती नीपजावे. वार्धिकते आवास घर निपजावे, पुरोहित ते घाव साजा करे, शान्ती कर्म करे श्रने विघ्न टाळे, स्त्रीरत्न लोग साधन श्रावे, अश्व तथा हस्ति स्वारीकरवाने कामयावे, चक्ररत्न षट् खंगसाधतामार्गबतावे,खमम् रत्न वैरी- मस्तक दे, बत्र रत्न चक्रवर्तिना हस्तस्पर्श बारजोजनसुधी वीस्तरे तेथी बारजोजनसुधीमायाकरे, चर्म रल ते कार्य उपन्येनते चक्रवर्तिनास्पशैं बारजो. जन विस्तरे ने तेमां प्रनातकाळे बीजवावे ते संध्याकाळे उपन्नोगमांबावे एवा शालिप्रमुखनेउत्पन्नकरे, दंगरत्न ते वांकी नूमिसमी करे, काम पमे हजार जोजन धरतीवीदारे अने तमित्रादिक गुफाना बार उघामे, मणिरत्न ते हस्त अथवा मस्तके बांद्युथकुं समस्तरोगहरे अने बार जोजन सुधी उद्योत करे, अने कांगणिरत्न ते वैताढय पर्वतनी गुफामा बन्ने नीतेथश्ने उंगणपचास मांमळाकरवा योग्य होय तथा तोला माप वधारे एवीरीते चौद रत्नना गुण अथवा उपयोग जाणवो. चक्र रत्न, खमग्रत्न, बत्र रत्न श्रने Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६५) दंग रत्न ए चार रत्नो श्रायुध शाळामां उपजे: चर्म रत्न,मणिरत्न अने कांगणिरत्न एत्रण रत्नो चक्रवर्तिना सक्षमीनंमारमांउपजे.सेनापति,गाथापति,वाकिंचने पुरोहित ए चार रत्नो चक्रवर्तिना पोताना नगरमां उपजे. स्त्री रत्न वैताढय पर्वते विद्याधरना नगरमा उपजे. अश्व रत्न तथा गजरत्न वैताय पर्वतनामूळे उपजे.चक्ररत्न,इत्र रत्नअनेदंगरत्नए त्रण एक धनुष्य एटले चार हाथ प्रमाणना होय.चर्मरत्न बेहाथ प्रमाण होय, खम्ग रत्न बत्रीस आंगुल लांबु होय, मणिरत्न चारयांगुललांबुने बे आंगुलनुपहोळुहोय, कांगणि रत्न सुवर्णमय चार थांगुल लांबु होय, सेनापति गाथापति, वार्धिक श्रने पुरोहित ए चारनी उचाइ (अवगाहना) चक्रवर्ति प्रमाणे जाणवी, स्त्रीरल चक्रवर्तियी चार अंगुलनीची होय, अश्व रत्न कानना मुळथी ते पुंगना मुळ लगे एकसोने था आंगुलनो खांबो श्रने एंशी आंगुलनो उँचो होय अने गजरत्न चक्रवर्तियी बमणो उँचो होष ले. सर्वे रत्ननुं माप चक्रवर्ति ने आत्म आंगुक्ष 17: Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाण जाणवू. पहेली नरकथी नीकळ्या जीवो कर्मानुसारे उपर कहेली त्रेवीस पदवीमाथी सात एकिंपियरत्न विना बाकोनीसोळपदवीपामे, बीजीनरकथी नीकळया जीवो कर्मानु सारे उपर कहेली सोळ पदवीमांथी चक्रवर्तिनी पदवीविना बाकीनी पंदर पदवी पामे, त्रीजी नरकना नीकळ्या ज.वो कर्मानुसारे उपर कहेली पंदर पदवीमायी एक वासुदेवनी अने बीजी बळ देवनी पदवी विना बाकीनी तेर पदवी पामे, चोथी नरकयी नोकळ्या जीवो कर्मानुसारे उपर का हेलीतेरपदवीमांथीतीर्थकरनीपदवीविना बाकीनीबार पदवीपामे,पांचमी नरकथी नोकळ्या जीवोकर्मानुसारे ते बार पदवीमांथो केवळीनी पदवीविना बाकीनी श्र. गियारपदवी पामे,नही नरकथी नोकळ्या जीवो कर्मामुसारे ते अगियार पदवीमांथी साधुजीनी पदवीविना बाकीनोदश पदवीपामे अने सातमीनरकथीनीकळ्या जीवो कानुसारे समकितदृष्टीनो, अश्वरत्ननी अने गज रत्ननी एम त्रण पदवी पामे, 'नुवनपति, वाण Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) व्यंतर अने ज्योतिषी ए त्रण निकायना नीकळ्या जीवो कर्मानुसारे वासुदेव अने तिर्थकरनी पदवी विना बाकीनो एकबीस पदवी पामे. पृथ्वीकाय, अपकाय, बनस्पतिकाय तथा गर्नज मनुष्यअने गर्नजतिर्यचना नीकळ्या जीवों कौनसारे तिर्थकर, चक्रवति, बळदेव धने वासदेवनी पदवीविना बाकीनी उगणीस पदवी पामे. बे इंज्यि, ते इंडिय अने चौरिप्रिय तथा समुर्छिम तियेच पंचेंजिने समुर्बिम मनुष्यमाथी नोकळ्याजीवो कर्मानु सारे तिर्थकरनी, चक्रवर्तिनी,ब. ळदेवनी, वासुदेवनी अने केवळीनो पदवी विना बाकीनी अढार पदवी पामे, तेउकाय अने वाउकाय. नानीकळ्याजीवो कर्मानुसारे सात एकेडियनी तथा हस्ति रत्ननी अने अश्वरत्ननी एम नव पदवी पामे. पंदरपरमांधामीने पहेला किन्धीषियाना नीकळ्या जीवो कर्मानुसारे निर्थकर, चक्रवति, वासुदेव, बळदेव अने केवळी विना बाकीनी अढार पदवी पामे. उयरना बे किल्वीषियाना नोकळ्या जीवो कर्मानुसारे उपर कहेली अढार पदवीमाथी सात एकेंजिय रत्ननी Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०) पदवी विना बाकीनी अगियार पदवी पामे, सौ. धर्म अने श्शान देवलोकना नीकळ्याजीवो कर्मानुसारे वीस पदवी पामे. त्रीजाथी थाउमा देवलोक सुधीना अने नव लोकांतिकना नीकळ्याजीवो कर्मानु सारे वीस पदवीमाथी सात एकिंडिय रत्ननी पदवी विना बाकीनी सोळपदवीपामे. नवमाथी बारमा देवलोकना तथा नव ग्रैवेयक सुधीना नोकळ्याजीवो सात एकिंजिय रत्नो तथा अश्वने हस्ति विना बाकीनी चौदपदवीपामे, पांच अनुत्तर विमानना निकळ्याजीवो तिर्थकरनी, चक्रवर्तिनी, बळ देवनी, केवळीनी, मंमळिकनी, साधुनी, श्रावकनी अने सम. कित दृष्टिनी एम आठ पदवी पामे. तिर्थकर अने चक्रवर्तिने विषे को जीवोने तिर्यकरनी, चक्रवर्तिनी मंमळिकनी, समकितनी,साधुनी अने केवळीनी एम ब पदवी लाने, वासु देवने विषे वासुदेवनी, मंगळिकनी अने समकीतनी एम त्रण पदवी लाने. बळदेवने विषे को जीवोने बळदेवनी, मंगलिकनी साधुनी, केवळीनी अने समकितनी एम पांच पदवी Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ (१६५) साने. मनुष्यमांहे पुरुषवेदे नव मोटी पदवी तथा सेनापति, गाथापति, वार्धिक अने पुरोहित एम तेर पदवी लाने, मनुष्यमांहे स्त्रीवेदे समकीतनी, श्रावि. कानी, साध्वीनी, केवळीनी अने स्त्री रत्ननो ए पांच पदवीलाने. ॥ इति संपदा हार ॥ श्रथ पांत्रीसमुं देवधार. देव-१ ऽव्यदेव, १ नरदेव, ३ धर्मदेव, ४ देवाधिदेव थने ५ नावदेव . मनुष्य अथवा तिर्यच पंचेंजियजीवोमांधीजेने देवतानुं आयुष्य बांध्यु डे ते श्रावतानवे देवपणे उपजशे एवा जे जीवो तेने उव्यदेव कहीए.चौद रत्न, नवनिधानजेहने होय तेने नरदेव कहीए. साधुना सत्तावीस गुणे करी सहित होय तेहने धर्म देव कहीए. बार गुणे सहित, अ. ढार दोष रहित तथा चोत्रीस अतिशय, पांत्रीस वाणीना गुण ए विगेरे अनंत गुणे करीने सहित धमना प्रवर्तक होय तेने देवाधिदेव कहीए. चारनिकायना देवोनेनाव देव कहीए. अन्य देवनी जघन्य Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) स्थिति अंतर मुहुर्तनी अने उत्कृष्ट त्रण पढ्योपमनी कही बे, नरदेवनी जघन्यस्थिति सातसेंवरसनी अने उत्कृष्ट चोरासीलाखपूर्वनीकहोने, धर्मदेवन जघन्यस्थिति अंतरमुहुर्तनी अने उत्कष्ट देशे उणी पूर्वक्रोम वरसनी कही बे, देवाधि देववी जघन्य स्थिति बहोंतेर वरसनी अने उत्कृष्ट चोरासीलाख पूर्वनी कही अने नाव देवनी जघन्य स्थिति दशहजारवरसनी अने उत्कृष्ट तेत्रोससागरोपमन। जाणवी. अव्य देवचवीने देवता थाय, नरदेव चवीने नरके जाय अथवा कोश्क चारित्र ग्रहण करी स्वर्गे अथवा मोके पण जाय डे, धर्म देवचवीने वैमानिक अथवा मोकमां जाय रे देवाधिदेव चवीने मोके जाय अने नावदेव चवीने बादर पृथ्वीकाय, अपकायने वनस्पतिकाय तथा गर्नज मनुष्य अने तिर्यचमां जाय . सर्वथी योमा नरदेव होय, नरदेवयी देवाधी देव संख्यात गुणा, देवाधि देवथो धर्म देव संख्यात गुणा, धर्म देवयी अव्यदेव असंख्यात गुणा अने ऽव्य देवग्री नावदेव असंख्यात गुणा जाणवा. Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) अव्यदेवनेविषे युगलीया मनुष्य तथा युगलीश्रा तिर्यंच थने सर्वार्थसिविना बाकीना सर्व स्थानकेथी जीवो श्रावी उपजे. नरदेवने विषे देवताना तेर दंगकने पहेली नारकीना नीकळ्या जीवो श्रावी ज़पजे, धर्म देवने विषे बहीने सातमी नारकी तथा तेनकायने वानकाय अने युगलीआ मनुष्य तथा यु: गलीया तियेच वर्जीने बाकीना सर्व स्थानकना नो. कळ्या जीवो आवीने उपजे, देवाधिदेवमा किल्धी षिया सिवाय वैमानिक देवलोकना देवो तथा पहेली, बीजी अने त्रोजी नारकोमाथी नीकळ्या जीवो था. वीने उपजे अने नावदेवने विषे तिर्यंच पंचेंजिय अने संझी मनुष्यमाथी नीकट्या जीवो आवीने उपजेले. ॥ इति देवछार ॥ अथ बत्रीसमुं संजतिहार. संजति-संयमी ते-१ संयती (संजमवाळा), २ संयता संयती, ३ असंयती, ४ व्रती (व्रतवाला), ५ ताबती, ६. अवती, ७ पञ्चखाणी, ७ पञ्चखाणा पाचखाणी, ए अपञ्चखाणी, १० पंमिया (पंमित),११ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) बालमिया, ११ बाला, १३ संवुमा (संवृत), १४ संवुमा असंवुमा, १५ असंवुमा, १६ जागरा(जागृत) २७ सुताजागरा, १० सुता, १ए धम्मिया (धर्मिष्ट), १० धम्माधम्मिया, २१ अधम्मिया, १५ धम्मविवसाश्या (धर्मव्यवशाइ), २३ धम्माधम्म विवसाश्या, २४ अधम्मविवसाइया, २५ धम्मेठिया (धर्ममांस्थित), २६ धम्माधम्मेठिया अने ७ अधम्मेठिया: एम स. त्तावीस प्रकारचं विवेचन चोवीस दंगके नीचे प्रमाणे जाणवू. नारकी, देवता, एकेंजिय, विगछिय एम बा. बीसदंगकनाजीवो तथा समुर्छिम मनुष्य श्रने समु. र्छिम तिर्यंच पंचेंजियना जीवो, असंयती, अव्रती, श्रपच्चखाणी, बाला, सुता, असंवुमा, अधम्मिया, अधम्मेठिया अने अधम्मविवसाश्या कह्यां. गर्नजतिर्यच पंचेंजियना दंगके जीवो, असंयती, संयतासंयती, अवती, व्रताव्रती, अपञ्चखाणी, पञ्चखाणा पञ्चखाणी, बाला, बालमिया, सुता, सुताजागरा, असंवुमा, असवुमा संवुमा, अधम्मिया, धम्माधम्मिया, श्रध Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३) म्मेठिया, धम्माधम्मेठिया, अधम्मविवसाश्या अने धम्माधम्म विवसाश्या कह्यां . गर्नज मनुष्यना दंमके तो संयती विगेरे सत्तावीसे बोल लाने .. ____ चोवीसे दमकमां उत्तमधर्म साधन योग्य गनज मनुष्यनो नव ले. तेमां संयम यश् शके . ते संयम ( चारित्र)ना पांच प्रकार . १ सामायिक चारित्र, २ वेदो पस्थापनियचारित्र, ३ परिहार विशुचिारित्र, ४ सूक्ष्म संपरायचारित्र अने ५ यथाख्यात चारित्र. ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनो जे लान तेनुं नाम सामायिक चारित्र, पूर्व पर्यायनो बेद अने नवापर्यायनुं स्थापन करवू ते दोपस्थापनिय चारित्र, विशेषकर्म निर्जरायें तपो विशेष ते परिहार विशुद्धि चारित्र, अति सूक्ष्म कषाय ते सूक्ष्म संपरायचारित्र अने अकषायपणुं थाय तेनुं नाम यथाख्यात चारित्र कमु बे. विशेषपणे जाणवाने अर्थे पांचे चारित्रे, १ नेद, १ वेद, ३ राग, ५ निर्गथ, ५ ज्ञान, ६ लिंग, ७ शरीर पक्षेत्र, ९ काळ, १० गति, ११ योग, १५ उपयोग, Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७४) २३ कषाय, १४ लेश्या, १५ गुणस्थानक, १६ नव,१७ आकर्ष, १७ नाव अने १ए अल्प बहुत्व एउंगणीस बोल संदेपे कहे . ___ सामायिक चारित्रना बे नेद , एक श्वरिकने बीजं यावत्कधिक तेमां श्वरिक एटले स्वल्पकाळy ने ते पहेला तथा बेल्ला तिर्थकरना वारामां होय अने यावत्कथिक एटले घणा काळन ते बावीश तिर्यकरना वारामां तथा महाविदेह क्षेत्रमा होय . दो पस्थापनिय चारित्रना बे नेद बे, एक सातिवार दो पस्थापनियने बीजु निरतिचार दोपस्थापनिय,तेमां सातिचार एटले मुळ गुणघातिने प्रायबितरुप होय अने निरतिचार एटले श्वरीक सामायिकवंत नव दिदितने वमिदिक्षारुप होय . परिहार विशुद्धिचारित्रना बे नेद बे, एक निर्विषमानसिकने बीजं निविष्टकायिक परिहार विशुश्चिारित्र, तेमा निर्विषमा नसिक एटले कर्म निर्जरा अर्थे तपो विशेष आचारित्रना आ सेवक ए कपमा प्रवर्तता होय तेने होय अने निर्विष्ट कायिक एटले आ, चारित्रमा प्रवर्तता Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७५) ना अनुचारी एटले वैयावच्चादिकना करनारने होय बे. सूक्ष्म संपराय चारित्रना बे दबे, एक विशुद मानसिक अने बीजु संक्लिष्ट मानसिक सुम संपराय चारित्र, तेमां विशुमानसिक एटले क्षयक श्रे. णीए चमतां जीवने विशुद्ध पारिणामिकरुप अने बीजें संक्लिष्ट मानसिक एटले उपशम श्रेणीथी पमतां जी. वने संक्लिष्ट पारिणामिकरुप होय. यथाख्यात चारित्रना बे नेदबे, एक बद्मस्थिकने बोजु कैवलिक, तेमा गामस्थिक ते अगियारमा तथा बारमा गुणस्थानके वर्तता जीवोने होय अने कैवलिक ते तेरमा तया चौदमा गुणस्थानके होय . तिनेद, सामायिक चारित्र तथा दोपस्थापनिय चारित्र, सवेदोने अ. थवा अवेदीने पण होय तेमां सवेदीने स्त्री, पुरुष अने नपुंसक एम त्रणे वेदे होय अने अवेदी ते उपशम वेदो तथा दपकवेदोने होय . परिहार विशुद्धी चारित्र सवेदी एटले पुरुष वेदवाळाने अथवा नपुंसक वेदवाळाने होय . सुक्ष्म संपराय चारित्र तथा यथा ख्यात चारित्र अवेदो एवा उपशम तथा क्षपकबेदी Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · ( ११६ ) ने होय . इतिवेद. पहलेथी चार चारित्र सरागी होय ने ययाख्यात चारित्र वितरागी दोय बे. इति राग, निर्मेयना व नेद बे १ पोलाक, २ बकुस, ३ प्र तिसेवना कुशील, ४ कषाय कुशील, ए निर्बंथ अने ६ स्नातक ज्ञानादिना अतिचार सेववे कर रो व्रतने डुशीत करे ते पोलाक कहीए, शरीरनी सुश्रुषा विजुषा करे अथवा उपकरण बहु मुख्यजल दळता राखे संग्रतेने बकुस कहीए, मुल गुणतो पाळे सेवे पण उत्तरगुणमां कis his बानो दोष लगाने तेने प्रतिसेवना कुशील कहीए, संज्वलन कषायोदये करी कांइक प्रशस्त परिणाम थाय पण मुळगुणमां तथा उत्तर गुणमां कांर दोष लगाडे नहि तेने कषाय कुशील कहीए, संपूर्ण ग्रंथी रहित मोहनीय वर्जीत वितराग स्थ तेने निर्बं कदीर ने घातीकर्म रहित सयोगी केवळी तथा सैलेशी प्रतिपन्न योगी केवळी तेने स्नातक कदेवायडे, सढुंसाधान्यनापुळा सरखा पुलाक, सढुंसाधान्यसरखां बकुस, मसळयाधान्य सरखा प्रतिसेवना कुशिल, उपण्या धान्य सरखां क Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) षाय कुशील, · काकीसहितचोखासरखा निर्यथ अने. अणीशुःश्चाखासदृश्यस्नातकजाणवा. : पुलाक, बकुस अने प्रतिसेवना कुशीलमां एक सामायिकचारित्र तथा बीजुं दोपस्थापनियचारित्र एम बे चारित्र लाने. कषाय कुशीलमा प्रथमना चार चारित्र लाने. निग्रंथमां अने स्नातकमां एक यथाख्यातचारित्रहोय. इतिनिग्रंथ. प्रथमना चार चारित्रे बे, त्रण अथवा चार ज्ञान होय .अने यथाख्यात चारित्रमा पांचज्ञाननीनजनाजाणवी, इतिज्ञान: स्वलिंगे पांच चारित्र लाने, अन्यलिंगेअने गृहस्थलिंगे परिहार विशुःही चारित्रविना बाकीना चार चारित्रलान्ने, एम अव्यलिंगनी अपेक्षाएजा. णवू तथा नावलिंगनी अपेदाए स्वलिंगे पांचे चारित्र होय अने अन्यलिंगे तथा गृहस्थलिंगे एके चा रित्र होय नहि. इति लिंग. पहेला तथा बीजा चारित्रने विषे त्रणचार अथवा पांचे शरीरलाने अने त्रीजा, चोयाने पांचमा चारित्रने विषे औदारिक, तैजस अने कार्मण एम त्रण शरीर होय . इति Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शरीर. कर्म जुमिमां पांचे चारित्र होय अने अकर्म जुमि तथा अंतर बीपमां एके चारित्र होय नहि. इति क्षेत्र. उत्सर्पिणी काळमां जन्मनो अपेक्षाए पहेले आरे एके चारित्र न लाने अने बीजा, त्रीजा तथा चोथा आरामां पांचेचारित्रलाने तथा पांचमां बहा आरामां एके चारित्रहोय नहि. या अव सर्पिणी काळमां जन्मनी अपेक्षाए पहेलाने बीजा आरामां एके चारित्र न होय, चोथा पारामां पांचे चारित्र होय,पांचमां पारामा एक सामायिकअने बीजें ने दोपस्थापनिय एम बे चारित्र होय अने बछे बारे एके चारित्र होय नहि. इतिकाळ. नारकी, तियेच अने मनुष्य ए त्रणे गतिमां चारित्रनो आराधक जायनहि पण देवगतिमां जाय तेमांसामायिक अने दोपस्थापनिय चारित्र आराधक जघन्य पहेले देव लोके अने उत्कृष्ट अनुत्तर विमाने जाय , परिहार विशुद्धी चारित्र आराधक जघन्य पहेले देवलोके अने उत्कृष्ट आठमे देवलोके जाय, सुक्ष्म संपराय चारित्र अने यथाख्यात चारित्रना आराधक अनुत्तर विमाने Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) जाय तथा यथाख्यात चारित्रधाराधक उत्कृष्टो मोटे पण जाय .इतिगति. मनयोग, वचनयोग अने काययोग ए त्रणे योगे पहेलेथी चार चारित्र अने अयोगीमा एक यथाख्यात चारित्र लाने. इतियोग. सागार उपयोगमां पांच चारित्र अने अनागार उपयोगमां सुमसंपरायचारित्र वर्जी ने बाकीना चार चारित्र लाने. इति उपयोग. प्रथमना चार चारित्र सकषायी अने यथाख्यात चारित्र कषाय रहित जाणवू. सकषायी चारित्रमांथी पहेला बीजा ने त्रीजा चारित्रे संज्वलननो क्रोध मान, माय अने लोन होय तथा सुदमसंपरायचारित्रे एक संज्वलन लो. ननो कांश्क अंश होय . इति कषाय, सामायिकने बेदोपस्थापनिय चारित्रमा उलेश्या, परिहारविशुद्धि चारित्रमा पालीत्रण लेश्या अने सुक्ष्म संपराय तथा ययाख्यात चारित्रने विषे शुक्ल लेश्या कही . इति लेश्या, सामायिकने बेदोपस्थापनिय चारित्रे , सातमुं, आठमुं ने नवमुं एम चार गुणस्थानक होय, परिहार विशुःइ चारित्रे बने सातमुंएम बे गुणस्त्रा Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) नक होय, सुक्ष्मसंपरायचारित्रे दशमु गुणस्थानक होय अने यथाख्यात चारित्रे अगियारमुं, बारमुं, ते रमुं तथा चौदमुं एम चारगुणस्थानक कह्यांबे. इति गुणस्थानक. सामायिक अने बेदोपस्थापनिय चारित्रवाळा जघन्य एकन्नव अने उत्कृष्टा आठ जव करे अने बाकीना त्रण चारित्रवाळा जघन्य एक नव अने उत्कृष्टा त्रणनव करे. इति नव. सामायिक चारित्र एकनवमां जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट नवसें वार आवे, वेदोपस्थापनियचारित्र एक भवमा जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट एकसोने वीसवार थावे परिहार विशुहि चारित्र एक नवमां जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट त्रणवार यावे, सुदम संपराय चारित्र एक जवमा जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट चार वार आवे अने यथाख्यात चारित्र एक नवमां जघन्य एकवार ने उत्कृष्ट बे वार आवे जे एम कथु . शति आकर्ष, पहेलेथी चार चारित्र सुधीमां एक क्षयोपशमन्नाव लाने अने यथाख्यात चारित्रने विषे उपशमन्नाव अने दायिकए वे नावलाने. इतिनाव. सर्वथी थोमा Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) सुक्ष्मसपरायचारित्रवाळा, सुक्ष्म पराय चरित्रवाळाथी परिहार विशुद्धि चारित्रवाळा संख्यातगुणा, परिहारविशुद्धि चारित्रवाळाथी यथाख्यात चारित्र - वाळा संख्यात गुणा, यथाख्यात चारित्रवाळाथी बेदो पस्थापनिय चारित्रवाळा संख्यात गुणा अने बेदो पस्थापनिय चारित्रवाळाथी सामायिक चारित्रवाळा जीवो संख्यातगुणा लाने इति अल्पबहुत्व. ए प्रमाणे उगणीशद्वारे संक्षेपे करीने पांच चारित्रकां. ॥ इति संजतिद्वार ॥ पथ साडी समुं जराउद्वार.. जराज - वेदनी-ते वे प्रकारे वे जरावेदन । ने शोक वेदनी ते सर्व संसार जीवोने होय. शरीरे करीने जे वेदाय ते जरावेदनी ने मने करीने जे वेदाय ते शोकवेदनी जावी, · नारकी नोएकद्रुक, देवताना तेरदमक, गर्भज तिर्यचनो एक दमक, अने गर्भज मनुष्यनो एक दंक एम सोल दंगकना जीवोने एक जरावेदनी ने बीजी शोकवेदनी एम बे वेदनी होयडे, Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) एकिंजियनापांचदमकथने विगलेंडियना त्रण दंमक एम आठ दंगकना जीवोने तथा समुर्चिम मनुष्य अने समुर्छिमतिर्यंचपंचेंजियने एक जरावेदनोज होय . सिझ्ना जीवोने एके वेदनी नथी. ॥ इति जराउछार ॥ . .. श्रथ अमत्रीसमुं परिग्रहहार. परिग्रह-संग्रह ते त्रण प्रकारे . १ कर्म परिग्रह, २ शरीर परिग्रह अने ३ बाह्य नंमोपगरण (नाजनादि उपकरण ) परिग्रह. ___नारकी तथा एकिंजियने एक कर्म परिग्रह अने बीजो शरीर परिग्रह एम बे परिग्रह होय जे. देवता तथा त्रण विगछिय, तिर्यंच पंचेंजिय थने मनुष्यने त्रणे परिग्रह होय . ॥ति परिग्रहधार ॥ अर्थ जंगणचाळीसमुंघल्प बहुत्वधार. अल्पबहुत्व एटले सर्व जीवोमां कया दंगके जीवो थोमा अने कया दंगके जीवो वधारे एम जे कहे, तेनुं नाम थहिं अल्पबहुत्व जाणवू. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) सर्वथी गर्नज मनुष्य थोमा, तेथी बादर अग्नि कायना दंगके जीवो असंख्यातगुणा, तेथी वैमानिकना दंगके जीवो असंख्यातगुणा, तेथी जुवनपतिना दंमके जीवो असंख्यातगुणा तेथी नारकीना दमके जीयो असंख्यातगुणा, तेथी व्यंतरना दंगके जीवो असंख्यातगुणा, तेथी ज्योतिषीना दमके जीवो अ. संख्यातगुणा, तेथी चौरिंजियना दंमके जीवो असं. ख्यातगुणा, तेथी तिर्यंच पंचेंजियना दंगके जीवो विशेषाधिक, तेथी बेजियना दंगके जीवो विशेषाधिक, तेथी ते इंडियना दमके जीवो विशेषाधिक, तेथी पृथ्वोकायना दंगके जीवो असंख्यातगुणा, तेथी अपकायना दंमके जीवो असंख्यातगुणा, तेथी वाउकायना दंगके जीवोअसंख्यातगुणा अने वाउकायथी वनस्पतिकायना जीवो अनंतगुणा कह्यां .ए प्रमाणे सामान्य चोवीशे दंगके जीवोनुं अल्पबहुत्व कयु. विशेष व्याख्याए जीवो सबंधी अल्पबहत्वना अठाणु नेदकहे गर्नजमनुष्यो सर्वे थश्ने (ए२७१६५, ५१५२६४३, ३७५५३५४, ३५५०३३६,) Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) सातकोमबाणुलाख अग्यावीशहजार एकसोनेबासठ क्रोमाक्रोम क्रोम, एकावनलाख बहेंतालीसहजार बसेनेत्रेतालीश कोमाक्रोम, सामनीशलाख उंगणसाठ हजार त्रणसेंने चोपनकोम, उंगणचालीशलाख पञ्चास हजार त्रणसोनेत्रीश जे. ते संख्यामांथी पण पुरुषो करतां स्री सत्यावीस गणी कामेरी . माटे, १ प्रथम सर्वथी थोमा गर्नज मनुष्यो ( पुरुषो), २ तेथी मनुष्यण। (स्त्री) संख्यातगुणी, ३ तेथी बादर ते. उकाय पर्याप्ता असंख्यातगुणा, ४ तेथी अनुत्तर विमानवासी देवो असंख्यातगुणा, ५ तेथी उपरला त्रण अवेयकना देवता संख्यातगुणा, ६ तेथी मध्य त्रण अवेयकना देवो संख्यातगुणा, ७ तेथी नीचला त्रण अवयकना देवो संख्यातगुणा, ७ तेथी अच्युत देवलोकना देवता संख्यातगुणा, ९ तेथी यारण्य देवलोकना देवो संख्यातगुणा, १० तेथी प्राणात देवलोकना देवो संख्यातगुणा, ११ तेथी आणत देवलोकना देवो संख्यातगुणा, १२ तेथी सातमी नरक पृथ्वीना नारको असंख्यातगुणा,१३ तेथी बही नरक Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) पृथ्वीना नारकी असंख्यातगुणा, १४ तेथी सहस्रार देवलोकना देवो असंख्यातगुणा, १५ तेथी महाशुक्र देवलोकना देवो असंख्यातगुणा, १६ तेथी पांचमी नरक पृथ्वीना नारकी असंख्यातगुणा, १७ तेथी लांतक देवलोकना देवता असंख्यातगुणा, १७ तेथी चोथी नरकपृथ्वीना नारकीयसंख्यातगुणा, १ए तेथी ब्रह्मदेवलोकना देवो असंख्यातगुणा, २० तेथी त्रीजी नरक पृथ्वीना नारकी असंख्यातगुणा, १ तेथी मांहेंज देवलोकना देवो असंख्यातगुणा, ५५ तेथी स. नत्कुमार देवलोकना देवो असंख्यातगुणा, २३ तेथी बीजी नरक पृथ्वीना नारको असंख्यातगुणा, २४ तेथी समुर्छिम मनुष्य असंख्यातगुणा, २५ तेथी शान देवलोकना देवो असंख्यातगुणा, २६ तेथी शान देवलोकनी देवीयो संख्यातगुणी, २७ तेथी सौ धर्म देवलोकना देवो संख्यातगुणा, २७ तेथी सौ धर्म देवलोकवासी देवीयो बत्रीसगुणी ले माटे संख्यातमुणी, ए तेथी जुवनपतिना देवता असंख्यातगुणा, ३० तेथी जुवनपतिनी देवयो बत्रीसगुणी छे माटे Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) संख्यातगुणी ३१. तेथी पहेली नरक पृथ्वीना नारकी असंख्यातगुणा, ३५ तेथी खेचर पंचेंजिय तिर्यंचयोनि या पुरुष असंख्यातगुणा, ३३ तेथी खेचर पंचेंडिय तिर्यंच योनिनी स्त्री त्रिगुणी डे माटे संख्यातगुणी, ३४ तेथी थलचर पंचेंजिययोनिया पुरुष संख्यातगुणा, ३५ तेथी थलचर पंचेंडिय योनिनी स्त्री त्रिगुणी जे माटे संख्यातगुणी, ३६ तेथी जलचर पंचेंडिय तिर्यंच योनिया पुरुष संख्यातगुणा, ३७ तेथो जलचर तिर्यंच योनिनी स्त्री त्रिगुणी माटे संख्यातगुणी, ३० तेथी व्यंतर निकायना देवो संख्यातगुणा, ३ए तेथी व्यंतर देवीयो बत्रीसगुणी ले माटे संख्यातगुणी, ४० तेथी ज्योतिषी देवता संख्यातगुणा, ४१ तेथी ज्योतिषीनी देवीयो बत्रीसगुणी जे माटे संख्यातगुणी, ४२ तेथी खेचर पंचेंजिय तिर्यंच योनी या नपुंसक संख्यातगुणा, ४३ तेथी थलचर पंचेंज्यि तिर्यंचयोनि या नपुं. सक संख्यातगुणा, ४४ तेथी जलचर पंचेंजिय तिथंच योनि या नपुंसक संख्यातगुणा, ४५ तेथी चौरिंजिय पर्याप्ता संख्यातगुणा, ४६ तेथी सर्व पंचेंजिय पर्याप्ता Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) विशेषाधिक, ४ तेथी बेहिय पर्याप्ता विशेषाधिक, ४७ तेथी तेइंडिय पर्याप्ता विशेषाधिक, ४ए तेथी पंचेंजिय अपर्याप्ता विशेषाधिक, ५० तेथी चौरिप्रिय अपर्याप्ता विशेषाधिक,५१ तेथी तेइंघिय अपर्याप्ता विशेषाधिक, ५५ तेथी बेज्ञप्रिय अपर्याप्ता विशेषाधिक, ५३ तेथी प्रत्येक शरीरवाला बादर वनस्पति कायिया अपर्याप्ता असंख्यातगुणा, ५४ तेथी बादर निगोदपर्याप्ताअनंतकायनाशरीर असंख्यातगुणा,५५ तेथीबादरपृथ्वीकायियापर्याप्ता असंख्यातगुणा५६तेथी बादर अपकायिया पर्याप्ता असंख्यात गुणा, ५७ तेथी बादर वाउकायियापर्याप्ता असंख्यात गुणा,५७ तेथी वादर ते उकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, एए तेथी प्रत्येक शरीरवाळा बादर वनस्पति कायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ६० तेथी बादर निगोदीया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ६१ तेथो बादर पृथ्वी का. यिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ६५ तेथी बादर अपकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ६३ तेथी बादर वाउकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ६४ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (300) तेश्री सुक्ष्म ते कायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ६५ तेथी सुक्ष्म पृथ्वीका यिया अपर्याप्ता विशेषाधिक, ६६ तेथे सुक्ष्म पकायिया पर्याप्ता विशेषाधिक, ६७ ते सुक्ष्म वा कायिया अपर्याप्ता विशेषाधिक, तेथी ६० तेथी सुक्ष्म तेका थिया पर्याप्ता संख्यात गुणा, ३५ तेथी सुक्ष्म पृथ्वीकायिया पर्याप्ता विशेषाधिक, So तेथी सुक्ष्म अपकायिया पर्याप्ता विशेषाधिक, ११ तेथी सुक्ष्म वा कायिया पर्याप्ता विशेषाधिक, ७२ तेथी सुक्ष्म निगोदनां शरीर अपर्याप्ता असंख्यात गुणा, ७३ तेथी सुक्ष्म निमोदनां शरीर पर्याप्ता संख्यातगुणा, १४ तेथी अनव्य सिड़िया जीव अनंत गुणा, ७५ तेथी पडिवाय प्रतिपत्ती सम्म दृष्टिजीव अनंतगुणा, ७६ तथी सिझना जीव अनंतगुणा, 99 ते बाद वनस्पतिकायिया पर्याप्ता अनंतगुणा, ७० तेथ बादर पर्याप्ता विशेषाधिक, ७५ तेथी बादर वनस्पतिका यिया पर्याप्ता श्रसंख्यातगुणा, ८०. तेथी बादर पर्याप्ता विशेषाधिक, ८१ तेथी सर्वपर्याप्ता बादरजीव विशेषाधिक, ८२ तेथी सुक्ष्म वनस्पतिका Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (रजए) थिया अपर्याप्ता असंख्यातगुणा, ७३ तेथी सुक्ष्म अपर्याप्ता विशेषाधिक, ४ तेथी सुक्ष्म पर्याप्ता वनस्पतिकायिया संख्यातगुणा, ५ तेथी सर्व सुक्ष्म पर्याप्ता विशेषाधिक, ७६ तेथी सर्व पर्याप्ता अपर्याप्ता सुक्ष्म जीव विशेषाधिक, ७ तेथी नव्यसिक्कि नव्यजीव विशेषाधिक, ७ तेथी निगोदनाजीव विशेषाधिक, नए तेथी वनस्पतिना जीव विशेषाधिक,ए. तेथी एकेजियजीव विशेषाधिक, ए१ तेथी तिर्यचयो निया विशेषाधिक, ए तेथी मिथ्या दृष्टि विशेषा धिक, ए३ तेथी थविरतिजीव विशेषाधिक, ए४ तेथो सकषायी जीव विशेषाधिक, ए५ तेथी बद्मस्थजीव वि. शेषाधिक, ए६ तेथी सयोगी विशेषाधिक, तेथी सर्व संसारी जीवविशेषाधिक अने एज तेथी सर्व जीववि. शेषाधिक . ॥ इति अल्प बहुत्वधार ॥ __ अथ चालीसमुं संझीझार. संझी-संज्ञा-जाणवू तेनेसंझा कहीए. संझा त्रण प्रकारनी बे, १ दीर्घकालीकी संज्ञा, २ हितोप Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 ( १९० ) देश की संज्ञा ने ३ दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा घणा काळनी वात जाणे एटले त्रिकालिक वस्तुनुं जाणपणुं ते दीर्घकालिक नामे संज्ञा जाणवी. पोताना शरीर रणने इष्ट वस्तुमां प्रवर्त्ते ने हित वस्तुथी निवर्ते तेनुं नाम हितोपदेशिकी संज्ञा जाणवी. द्वादशांगीना जणनार सम्यग् द्रष्टि श्रुतज्ञानने जे जाणे तेनुं नाम प्रष्टिवादोपदेशी की संज्ञा जाणवी. जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी ने वैमानिक ए देवताना तेर रुक तथा तिर्यचनो एक दंरुक ने नारकीनो एक दंक एम पंदर दंरुके, एक दीर्घका लिकी संज्ञा होय कारणके था अमुक काम कर्यु, अमुक काम करूं हुं, ने अमुक काम करीश एम तित, अनागत ने वर्तमान ए त्रणकाल विषयिकनुं जा पहुंबे माटे ते दीर्घकालिकी संज्ञा जाणवी. बेइंद्रिय, तेइंडियाने चौरिंडियना दंगके जीवोने एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय वे, कारण के एमने नाव मन बे माटे कांइक मनोज्ञान सहित वर्तमान काळने विषे इष्ट वस्तुनी प्रवृत्ति ने अनिष्ट वस्तुनी Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) निवृत्ति रुप जाण पणुं होय तेथो तेने हितोपदेशिकी संज्ञा जाणवते. पृथ्वीकायादिक पांचे एकेंशियना दंमके जीवोने एके संझा होय नहि, कारणके एमने एकज काय योग माटे संज्ञा रहित जाणवा. म. नुष्यना दंगके जीवोने दीर्घ कालिकी संज्ञा होय तथा कोइएक सम्यगदृष्टि, चौदपूर्वघरजीवोने बोजी दृष्टिवादो पदेशिकी संज्ञा पण होय . हितोपदेशिकी संज्ञा दीर्घकालिकी संज्ञाने विषे अंतर्जूतडे. ॥ इति संझीकार ॥ .. अथ एकताळीसमुं प्रकीर्णधार. जीवोना शरीरादिकना माप जे अंगुलेथी पामी एते अंगुलादिकनुं स्वरुप तथा जीवोना आयुष्य जे पक्ष्योपम सागरोपमादिकना कह्यांचे ते पत्योपमअने सागरोपमनुं स्वरुप संदेपथी कहे . . - एक आत्म अंगुल, बीजं उत्सेघांगुल अने त्रीजुं प्रमाण अंगुल एम अंगुल त्रण प्रकारे बे,तेमां जे काळे जे क्षेत्रेजेटबु मनुष्यनुं अंगुलहोय तेअंगुलप्रमाणने यात्म अंगुल कयु .यात्म अंगुले नगर, गाम, कुवा, तळाव, Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) वाव, गठ, पोळ, कोग, वहाण, रथ अने गामादिक मपाय जेमके रुषन्नदेवना वारे रुषनदेवना अंगुले मापीने लोको घर, हाट; कुवा प्रमुख करता हताअने श्रीमहावीर स्वामीनावारे महावीर स्वामीना अंगुले मापीने घर, हाट, कुवा प्रमुख लोको करता हता ए प्रमाणे आत्म अंगुलनुं स्वरुप जाणवू. अनंता सुदम परमाणुए एक व्यवहार परमाणु थाय, ते व्यवहार परमाणु मंदिरने विषेबिडादिकथी श्रावता सूर्यना किरणोमा जे उमतां रजना कणीया देखाय डे, तेना अनंतमा नाग जेटलो कीणो होय बे. अनंता व्यवहार परमाणुए एक उष्ण सन्नियो थाय, आठ उष्ण सन्निये एक सण सन्नियो थाय.ए आठ सण सन्निए एक उघरेणु अने आठ उर्घरेणुए एकत्रसरेणुथाय . ते त्रसरेणु बेडियादिक त्रस जीवोने चालती जे रज उमे डे, तेना एक कणीया बराबर जाणवो. आठ त्रसरेणुए एक रथरेणुए थाय; तेरथरेणु रथादिक चालतां जे रज उमे ने ते मांहेना एक कणीया जेवमो जाणवो. आठ रथरेणुए कुरुक्षे. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) जना युगलीयामनुष्यनाएकवाळाय, कुरुक्षेत्रना युगलीयामनुष्यनााठवाळाग्रे हरिवर्ष अथवा रम्यकवर्षदेवनायुगलीयानो एकवाळा. हरिवर्ष अथवा रम्यक वर्ष क्षेत्रना युगळीयाना आठ वाळाये हेमवंत अथवा औरएयवृत क्षेत्रना युगलीयानो एक वाळाग्र हेमवंत अथवा औरण्यवृत क्षेत्रना युगली. याना आठवाळा, महाविदेह क्षेत्रना मनुष्यनो एक वाळाग्र. महाविदेहना मनुष्यना आठ वाळाने, नरत अथवा औरवृतदेवना मनुष्यनो एक वाळाय जाणवो. आठ वाळाये एकलिंख,आठ विखे एकजु, आरजुंए एक जवमध्य अने आठ जवमध्ये एक उत्से घांगुल थाय, एवा उ उत्सेघांगुले एक पग, बे पगे एक वेंत,बे वेंते अथवा चोवीस अंगुले एक हाथ, चार हाथे एक धनुष्य, बे हजार धनुष्ये एकगाउने एवा चार गाजए एक जोजन थाय. ए उत्सेघांगुले देवतादिक सर्व संसारी जीवोनी अवगाहनानुं प्र. माण ( माप ) कडं में. ___चारसे उत्सेघांगुले एक प्रमाण अंगुल थाय. बने एक प्रमाण अंगुले चारसे उत्सेघांगुलथाय एम Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए४) जाणवू. पाठांतरे हजार उत्सेघांगुले करीने एक प्रमाण अंगुल थाय एम लख्यु माटे बह श्रृत कहे ते सत्य जाणवं. चोवीस प्रमाण अंगुले एक हाथ, चार हाथे एक धनुष्य, बे हजार धनुष्ये एकगाउने एवाचार गाउए एक जोजन थाय . शाश्वता पर्वतो, छीपो, समुछो, नदी, अहो, पृथ्वी, लोक, अलोक, नरका वासा अने विमानो विगेरेनुं लांबपणुं, पहोळपणुं तथा परिधि विगेरेना माप प्रमाण अंगुले कयां डे. ___ हवे पक्ष्योपमनुं स्वरुप कहे . एक नम्बार पव्योपम, बोजो अज्ञापट्योपम अने त्रीजो देत्र पट्यो पम एवी रीते त्रण प्रकारना पल्योपम , ने ते दरेक नावळी एक बादर अने बीजो सुक्ष्म एम बेवे नेद. गणता पस्योपम उ प्रकारना थाय . उत्सेघांगुले एक जोजन एटले चार गाउलांबो, पहोळोने उमो एवो एक कुपाकार पट्य ( पालो) कल्पीए, ने तेपथ्य मध्ये देवकुरु अथवा उत्तर कुरुमा उत्पन्न थयेलो एवो सात दिवसनो घेटो होय ते घेटानोवाळ एक उत्सेघांगुल प्रमाण सर तेना सात वार प्रात आठ खंम करीए त्यारे ए एक उंगुल प्र Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) माण वाळनां वीसलाख सत्ताएं इजार एकसोने बावन खंग थाय तेवा खंभे गंसीने ए पत्य जरीए, ते एवं रीते गंसीने नरी एके तेना उपर चक्रवर्तीन कटक चादयु जाय तो पण ते घसके नहि तथा गंगानदीनो प्रवाह तेने नेदीशके नहि, अग्निएकरीने बळे नहि अने वायरे करी एक बाळाग्र खंग पण उमे नदि ऐवो सीने नरीए; पी ए पट्यमांथी एकेका समये एकेक केशखंग काढतां जेटले काळे ते पथ्य खाली थाय लेटला काळने बादर उधर पक्ष्योपम कहे . ते नदार पट्यो पम संख्याता समयकाळ, प्रमाण होय , जे कारणमाटे ते खंम संख्याताज होय माटे संख्यातो काळ कह्यो जे एम उझर प. व्योपमनुं स्वरुप जाणवू. पूर्वे जे वालाग्रखंमेपल्यत्नयों ने ते वाळाय खंमने ज्ञानी बादरवालाग्र कहे जे.बादर एकेक खंमनाअसंख्याताअसंख्याता सुक्ष्म खममनथी कटपीए ते एवा सुक्ष्म कटपीए केजे एक खंमनो वळी बीजो खंग केवळी केवळझाने करी पण कल्पी नशके एवा सुदमखम कटपीए. एसदमखंके करी पूर्वोत्तरीते कष Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९६) नरीए पड़ी ते कुपमांथी समय समये एकेको खंग काढीए एम काढतां काढतां जेटलाकाळे एपल्यखाली थाय तेटला 'काळने सुदमजार पढ्योपम कहे . सुदम उक्षार पढ्योपम असंख्याता समय एटले सं. ख्याता कोम वरसनो होय . पच्चीस कोमा कोमी जहार पट्योपमना जेटला समय थाय तेटला छोप अने समुझो आति; लोकमां ने एम का बे. पूर्वोक्तयोजन प्रमाण पत्य बादरवाळाग्रेनरी अने तेमांथी सोसो वर्षे एकेक वालाग्र काढतां काढतां ते पक्ष्य जेटलाकाळे खाली थाय तेटलाकाळने बादर अक्षा पस्योपम कहे . बादर अक्षापल्योपम संख्याता क्रोम वरस प्रमाण थाय. हवे तेहीज बादर खमना पूर्वोक्त रीते असंख्याता सुम खंगकल्पोए ने ते कटपेला खंम्मांथी एकेको खंग सोसो वर्षे काढीए ने एम सुदम खम काढता काढतां जेटलाकाळे ते पढ्य खाली थाय तेटला काळने सुक्ष्म अध्यापथ्योपम कहे . सुक्ष्म अक्षपढ्योपम असंख्याता क्रोम वर्षे थाय, दश कोमाकोमी सुक्ष्म अज्ञपयोपमे एक अश Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) सागरोपम थाय;ए सुदम थापट्योपम अने सागरोपमे करी देवता, नारकी अने तिर्यंच विगेरेना थायुष्य तथा स्वकायस्थिति, नवस्थिति अने कर्म स्थितिनुं काळमान कडं बे. . पूर्वोक्त रीते एकयोजनप्रमाणपल्यनेविषे नरेला बादरवाळाग्रमांदेथी एकेकावाळा स्पर्शेला जेटला जेटसा थाकाश प्रदेश होय तेटला तेटला समये एकवाळा ग्र काढीए एम काढतां काढतां जेटलाकाळे ते पट्य खाली थाय तेटलाकाळने एक बादर क्षेत्र पथ्योपम कहीए. एक बादरक्षेत्र पट्योपम असंख्याती उत्सणी अने असंख्यातीयवसपीणीए थाय बे. हवे तेहीज बादरवाळापखंमना पूर्वोक्त रीते सूदमवाळारखंग कल्पीए नेते कल्पेला सुदम वाळायने स्पर्शला प्रदेश तथा अणस्पा एवा समस्त आकाशप्रदेशने समये समये काढतां जेटलाकाळे ते पक्ष्य खाली थाय तेटलाकाळने सुक्ष्मक्षेत्र पढ्योपम कहे . सुक्ष्मक्षेत्र पढ्योपमर्नु काळमान पूर्वोक्त बादरदेत्र पख्योपमयी असंख्यातगुणु असंख्यातीउत्सर्पाणी अने असंख्याती श्रवसीणी प्रमाण Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) कडं बे. एवा दश कोमाकोमी सुमक्षेत्र पस्योपमे एक सुदमत्र सागरोपम थाय. ए पठ्योपम तथा सागरोपमे करी त्रसादिक जीवोनुं परिमाण कर एम कडं . त्रण प्रकारना सुक्ष्म पट्योपमनुं प्रयोजन शास्त्र ने विषे ले अनेत्रण प्रकारना बादर पक्ष्योपम कहां तेतो फक्त सुक्ष्म पथ्योपमना सुखावबोध थवा माटे कह्यां ने तेनुं कांश बीजुं प्रयोजन शास्त्रने विष नथी. दश कोमाकोमी पस्योपमे एक सागरोपम थाय दश कोमाकोडी सागरोपमे एक उत्सीणी अने दश कोमाकोमी सागरोपमे एक श्रवसीणी थाय, एक उत्सhणी अने एक अवसपीणी मळीने वीस कोमा. कोमी सागरोपमे एक काळचक्र थाय. अनंताकाळ चके एक पुजल परावर्तन. थाय. एवा अनंता पुनस परावर्तनो, जीवे समकित अणफरस्या अतिक्रम्या माटे तत्वरुचीरुप शुइ समकितवमेजला प्रकारे ज्ञान दर्शन चारित्र पाराधी अनंत सुखनुं धाम मोक्षने माटे प्रयत्न करवो ते जीवने श्रेयस्कर . ... ॥ इति प्रकीर्णधार. ॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mcc com. we ca द्वारोने शुध्धि पत्रिका. पृष्ट लीटी अशुद्ध १. ९ विरहकाळओ विरहकालओ ११ संज्या संजया १० द्वारोना .१३ यस्मिन यस्मिन् ५ ए मूळ ३ छे. ४ ए मूळ छ भेद छे. ४ १५ झाकळy करांगें झाकळy, करानु, ६ ९ वनस्पतिकायने वनस्पतिकाय ते ९ २ पचेंद्रिय वळी पचेंद्रिय ते वळी १२ ११ कल्याणादिके कल्याणकादिके १२१६ सहसार देवलोक सहस्त्रार देवलोक १४ ६ जोजनना जोजननो १५ ६ धनवात घनवात १५ १८ ते नीचे तेना नाम नीचे १६ १ शेरुओ रोरुओ १६ ३ शेरुक रोरुक १७ १२ शर्कश शर्करा २५ १ धनोदधि घनोदधि २५ ३ पृथ्व पृथ्वी ३२ १० भुवननी भुवनो ३२ १५ पीड पीड छे, ३५ ३ संभूतला समभूतला ४० १२ जहार हजार ५२ १५ धनुपष्य धनुष्य Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२००) ७२ ८ मांथी-तेमां मां-तो ७५ १२ द्रवेंद्रियनो वेंद्रिय. ते ७५ १२ अभ्यंतर अभ्यंतररुप ८५११ लगे एक एक लगे लग एक ९२ १३ फोरवे छे ते नाम पर्याप्ति कहेवाय छे. ११२ १ जाणे छे . देखे छे ११३ १ जीवने रुची जीवने धर्मनी रुची ११५ १२ पडे पण मरण पामे नहि-पडे के मरण पामे नहि ११६ ६ तेथी ११८ १७ केळवी केवळी १२४ ४ एक एक एम १२५ ४ आहारभिलाष . आहाराभिलाष १२५ १७ माटे माटे देवाने १२६ २ वरसथी वरसथी उपर. १३७१२ वधारनार समकित थवा न दे १३८ ५ ने १४१ १ नीलक तीलक १४२ २ ए एम १४३ १ समुह ते अपकाय अने १४६ ११ देवलोक देवलोके १५१ १८ पांच पांचसे १५२ ९ साल सोल १७० ५. देववी- देवनी Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभार तथा स्वीकार. आ पुस्तक माटे रु. 15-0-0 श० परसोतमभाइ नागरदास धोलरावाळाना मदद तरीके पुस्तक छपाया पछी मळेला छे. * जाहेर विज्ञप्ति. * श्रीमान जम्बुगुरु विरचित जिनशतक // रन रजक संस्कृत ग्रंथ गुरुणीजी महाराज श्री सौभाग्य श्रीजीना उपदेशथी मळेल सहाय वडे खंभात जैनशाळा तरकथी मुंबई निर्णयसागर प्रेसमां छपायेल छ. संस्कृतना अभ्यासीओने घणोज उपयोगी, साधु साध्वीओने भेट. गृहस्थो माटे किं. बार आना. आ पुस्तक मळवार्नु ठेकाएं, श्रीजैन श्राविकाशाळा, . खारवामो, खंनात, जैनप्राचीन स्तवनादि संग्रह, प्राचीन महापुरुषोना बनावेला उपयोगी स्तवनो. चैत्यवन्दनो, सझायो, स्तुतिओ, विगरेनो संग्रह. कीमत मात्र, 6 आना. ते सीवाय अमारी पांसेथी नीचेना पुस्तको पण मळशे। પંચપ્રતિક્રમણ (નવસ્મરણ તથા જીવવિચારાદિ ચાર પ્રકરણના ). अर्थ साथे 3.0-12-0 देसीरा अर्थ सहित ३.०-४-०वक्यिाराह यार प्र० मथसाथै 3.0-4-0 साभाय सूत्र पथ सहित 3. 0-0-8 ४२|भासा 3.1-0-0 भनष यार शास्त्रीभां अर्थ साथे 3. 1-0-0 भावानु માસ્તર ઉમેદચંદ રાયચંદ પાંજરા પોળ- અમદાવાદ,