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________________ (१५५) था नवमां हजी मरण नथी श्राव्युं तो पण हुं मरी जश ए जीवने जय लागे जे ए सर्वपूर्वोक्त संज्ञाना नाव जाणवा. जीव नवोनवधी आहारादिक कृत्य वमे टेवाएलो माटे अजाण पणे, असंझीपणे अथवा तो संझीपणे पण उपर कहेली सर्व संझाए सहीत जीव होय . जेम नरघांवगामनारमाणस अन्य व्यवसायमां होय तो पण तेनी आंगळा उंची नीची थायले अथवा टकोरा वगामे, तथा काप मनो वहेपारी, कापमने फामवाना व्यवशायथो रात्रे उघमां पण अणजाणतां पोतानुं धोती- के अन्य वस्त्र फामे के कारणके ए हमेशानी प्रवृत्तिनी टेव , एम सर्व संसारी जीवो देहममत्वेकरी आहारादिकथी टेवाएला होवाथी हालपण जो अजाण होय अज्ञानी होय तो पण तेमा प्रवृत्ति करे ने एनुं नाम संज्ञा जाणवु: ॥ इति संज्ञाहार ॥ . अथ श्रष्ठावीसमुं स्वकाय स्थिति झार. स्त्रकाय स्थिति-(स्वकाय स्थिति) स्व पोनाना, काय- समुह, अर्थात पृथ्वीना जीवोनो समुह ते पू:
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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