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________________ (२७४) २३ कषाय, १४ लेश्या, १५ गुणस्थानक, १६ नव,१७ आकर्ष, १७ नाव अने १ए अल्प बहुत्व एउंगणीस बोल संदेपे कहे . ___ सामायिक चारित्रना बे नेद , एक श्वरिकने बीजं यावत्कधिक तेमां श्वरिक एटले स्वल्पकाळy ने ते पहेला तथा बेल्ला तिर्थकरना वारामां होय अने यावत्कथिक एटले घणा काळन ते बावीश तिर्यकरना वारामां तथा महाविदेह क्षेत्रमा होय . दो पस्थापनिय चारित्रना बे नेद बे, एक सातिवार दो पस्थापनियने बीजु निरतिचार दोपस्थापनिय,तेमां सातिचार एटले मुळ गुणघातिने प्रायबितरुप होय अने निरतिचार एटले श्वरीक सामायिकवंत नव दिदितने वमिदिक्षारुप होय . परिहार विशुद्धिचारित्रना बे नेद बे, एक निर्विषमानसिकने बीजं निविष्टकायिक परिहार विशुश्चिारित्र, तेमा निर्विषमा नसिक एटले कर्म निर्जरा अर्थे तपो विशेष आचारित्रना आ सेवक ए कपमा प्रवर्तता होय तेने होय अने निर्विष्ट कायिक एटले आ, चारित्रमा प्रवर्तता
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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