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(१३५) काळे पण शान्तिने. पामे नहि. अंतरंग वेदरुप अग्नि धुंधवातो.रहे ते नपुंसक वेद जाणवो..
पांच स्थावर, त्रण विगलेंज्यि अने नारकीना दंगके एक नपुंसक वेद होय, गर्नज तिर्यंच अन गर्नज मनुष्यना दंमके त्रणे वेद होय, तथा देवताना तेरे दंगके नपुंसक विना बाकीना बे वेद होय श्रने समुर्बिम तिर्यंच तथा समुर्छिम मनुष्यने एक नपुंसक वेद होय . गर्नज मनुष्य, गर्नज तिर्यंच, जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने सुधर्मा तथा शान देवलोकनादेवो कायसेवी, कायसेवाए तृप्ति पामे, त्रीजा अने चोथा देवलोकना देवो स्पर्शसेवी, स्तनजुजा आलिंगनादिकायस्पर्श तृप्ति पामे. पांचमा थने का देवलोकना देवो रुपसेवी पोताने नोग योग्य देवीनारुप, हास्य कटाक्षादिकरुप देखीने तुप्ति पामे. सातमा अने भाउमा देवलोकना देवो शब्दसेवी पोताने लोग योग्य देवीना गीत वाजींत्र हास्य नेपुर ऊंकारादि शब्द सांजळीने तृप्ति पामे. नवमां, दशमां, अगियारमां अने बारमा देवलोकना