SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०४) स्वदृष्टि अने बीजी सम्यक्त्वदृष्टि एम बे दृष्टि कही कारणके जे जीव परजवथो सास्वादन सम्यक्त्व सहीत थावे जे तेने अपर्याप्तावस्थाए सम्य. क्व दृष्टि होय हे ते अपेक्षाए विगलेंद्रियना दंगके वे दृष्टि जाणवी, तेर देवताना दंझके गर्नज मनुष्य अने तिर्यंचना दंमके तथा नारकीना दंगके एम सोळ दंमके त्रण दृष्टि कही . पण एमां नव ग्रैवेयके एक सम्यक्त्व अने बीजी मिथ्यात्व ए बे दृष्टि लाने तथा पांच अनुत्तर विमाने एक सम्यक्त्व दृष्टिज लाने तथा समुर्छिम तिर्यंचने समयक्त्व अने मिथ्या व ए बे दृष्टिज लाने अने समुर्छिम मनुष्यने एक मिथ्यात्व दृष्टि कही . ॥इति दृष्टि धार ॥ . अय बढारमुं योगधार. . योग-युक्तथर्बु तेने योगकहीए अथवा जी. वना बलवीर्य, शक्ति, पराक्रमने योग कहीए, अथवा योग एटले व्यापार तेयोग त्रणप्रकारनांचे मन १ योग १ वचन योग अने ३ काययोग,
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy