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________________ (१४६) थाय एम का दशजुवनपतिनादंगके जीव निरंतरउपजेले अने चवेडे; परंतु कदीअंतरपमेतो जघन्यथी एक समयनो अने उत्कृष्टथी चोवीस मुहुर्तनो विरहकाळ एटले अंतरजाणवो एमज व्यंतर, ज्योतिषी तथा सौधर्मनेश्शान देवलोकने विषे पण प्रत्येके उपजवा तथा चववानोविरह काळ वधारेमांवधारे चोवीस मुहुर्तनों बे, तेवारपनोनिश्चे बीजोकोजीव देवतापणे उपजेअथवाचवे. त्रोजा देवलोके नवदिवसने विसमुहुर्तनो, चोथादेवलोके बारदिवसथने दशमुहुर्तनो, पांचमादेवलोक सामीबावीस दिवसनो, बहा देवलोके पीस्ताळीसदिवसनो आग्माए सो दिवसनो, नवमाए तथा दशमाएप्रत्येक संख्याता मासनो अने अगियार तथा बारमाए संख्याता वरसनो विरहकाळ जाणवो. या संख्याता वरस ज्यां सुधी सोवरसपुरानथाय त्यांसुधीनागणवा. पहेला, बीजा तथा त्रीजा ग्रैवेयके संख्याता सेंकमो वरसनो, चोया, पांचमा अने बहा ग्रैवेयके संख्याताहजार
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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