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________________ (४६) प्यनी उपर बत्रीस यांगळमां सर्व सिझनाअनंताजीवो रह्यां . ___ बार देवलोक, नवगैवेयक अने पांच अनुत्तर विमानना सर्वेमळीने चोरासीलाख सत्ताणुं हजारने त्रेवीस विमानो .ते विमानो अत्यंत सुगंधीमय, माखणना जेवो मृऽस्पर्श, नित्यग्द्योतवंत, मनोहर,अने जीनजुवनोए सहीत , तथा शब्द, रुप, गंध, रस, स्पर्श, ऋद्धि, गति, लावण्य, कान्ति, स्थिति, ए दशवाना मनोज्ञ जेमां एवा अति सुंदर विमानो ने विषे असंख्यात देवो रहे छे. पृथ्वीकायादि एकेंख्यिनां-पांच दंमकबे इंजियादि विगछियनां त्रण दंगक तिर्यंच पचेंडियनो एक दंभक अने मनुष्यनो एक दंझक एम दश दंमके जुवनो अनिश्चल अनित्य अने अनियमीत जे. जुवनपति निकायमा सातकोमने बहोंतेर लाख जीनजुवन , वैमानिकमां चोरासीलाख सत्ताएं ह. जारने त्रेवीस जीन जुवन ने अने ति लोकमांत्रण हजार बसें उंगणसाठ जीनजुवन के. एम सर्वे मळी
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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