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(१००) सर्व ज्ञानावरणी कर्मनोदय थवाथी, आवरणरुप उपाधी रहीत. केवळझान सर्वथा एकज प्रकारनं ने अने बाकीना चारे ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्मना भयो पशम प्रमाणे होवाथी घणां प्रकारनां डे. मतिज्ञान ने श्रुतज्ञान परोक्ष ने अने अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान तथा केवळज्ञान प्रत्यक्ष कह्यां डे. ___ दश जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक ए देवताना तेर दंगके तथा नारकी अने गर्नज तिबैंचपंचेंजियना दंझके सम्यकदृष्टि जीवने मतिज्ञान, श्रुतझान अने अवधिज्ञान एम त्रण ज्ञान होय , बेजिय, तेइंघिय, अने चौरिप्रिय ए त्रण विकलेंडियना दंगके अपर्याप्तावस्थाए केटलाएक जीवोने मतिज्ञान श्रने श्रुतज्ञान एम बे ज्ञान सिशंतने विषे कमां ने. गर्नज मनुष्यना दंमके पांचे ज्ञान कह्याडे. पांच एकेंजियना दंगके एकज मिथ्यात्व गुणगणुं होवाथी ते जीवोने ज्ञान होतुं नथी. सिझ्ना जीवोने केवळज्ञान होय .
॥ इति ज्ञान हार ॥