SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) अथ त्रेवीशमुं किमाहारधार. पूर्व, पश्चिम, उत्तर अने दक्षिण ए. चार तथा उर्ध्व (उंची) अने अधो (नीचि) मळी दिशा माथी जीव केटली दिशाउँनो आहार ग्रहण करे ने एम जे कहेवू ते किमाहार. एक अणाहारक ने बीजा आहारक एम जीवो बे प्रकारना डे. तेमां परनवजतां विग्रहगतोए जीव एक समयथीमांमी वधारमा वधारे चारसमय सुधी अणाहारी होयअने केवळझानी कर्म खपाववाने आठ समयनो केवळी समुद्घातकरे तेमांत्रीजे चोथे अने पांचमे समये केवळ कार्मणयोग होय, त्यां ते पण त्रण समय सुधी अणाहारहोय अने चौदमे गुणस्थानके सैलेशीकरणे जीव अंतरमुहुर्त प्रमाण अणाहारी होय अने सिघनाजीव अनंतकाळ सदासर्वदा अणाहारी होय बे, उपर कहेला अणाहारी जीव सिवाय बाकीना सर्व जीवो आहारक जाणवा. थाहारक एवा चोवीसेदंमकनाजीवो बए दिशाओथी आहारग्रहणकरे. ले, पण एमां एटद्यु
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy