SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७६) __ गर्नज-मनुष्य तथा गर्नज तिर्यंचना दंगके बए संघयण होय. बेप्रिय, तेप्रिय अने चौरिप्रिय ए त्रण दमकने विषे एक सेवा संघयण होय अनेनारकी, जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषीने वैमानिकए चौद दंगक तथा पांच एकेंजियना पांच दमकमळी उंगणीश दमकना जीव बए संघयणरहीत एटले असं. घयणी कह्या बे, कारणके ए उंगणीशदमकना जीवो ने हाड मांस होय नहि अने हाम मांस विना संघयण होतु नथी. केटलाएक आचार्यो तिर्यंच पंचेप्रिय संमूर्बिम अने मनुष्य संमूर्जिमने आए संघयण, पांचे एकेंजियने सेवार्त संघयण अने तेरदेवतानादंमके वज्ररुषन्न नाराच संघयण कहेडे पण ते कथन औपचारीक जाणवू. तिर्थकर, चक्रवर्ती, बळदेव,वासुदेव, तद्नव मोक्षगामी मनुष्य अने असंख्याता वरसना आयुषवाळा तिर्यंच तथा मनुष्योने पहेझुंज संघयणं कयुं . ॥ इति संघयणधार ॥
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy