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________________ (७५) अथ तुं इंडियधार. इंडिय-इंश एटले परमेश्वर्यवान् श्रात्मा तेर्नु चिन्ह अथवाजीवेरचेल, सेवेल अने जीवाधिन ते इंप्रियजाणवी. ते इंडियोपांचवे, १ स्पर्शेडिय (चाममी), ५ रसेंघिय (जीन), ३घ्राणेंजिय, (नाक), ४ चकुरिंजिय (नेत्र ) अने, ५ श्रोडिय (कान), दरेकइंडियो बेप्रकारे, एक अप्रिय अने बीजी जावेंजिय "प्रिय ते निर्माणनामकर्म अने अंगोपांग नामकर्मनाउदयथी प्राप्तथाय; तेनां बेन्नद , १ निर्वृत्तिऽडिय श्रने ५ उपकरण अप्रिय, निर्वृत्ति प्रवेजियनो बाह्य भने अत्यंतर आकार ले. तेमां बाह्याकार जातिनी अपेक्षाए घणां प्रकारनो , जेमके:-मनुष्यनांकान संदरनेत्रनीबन्नेबाजुए,अश्वनांकान उपलानागमांनेश्रणीदारने अने हाथीनांकान मोटा विशाळनेविंफणा (पंखा) ना आकार अथवा कोश्नां नाकचपटां, कोश्ना श्रणीदारहोय एवीरीते पांचेइंडियोनां बाह्याकार घणप्रकारनां ने
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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