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(१४) (पेटमा ) प्रक्षेपाय (नखाय) अर्थात् मुख प्रक्षेपे जे थाहार ते त्रीजो प्रक्षेपाहार जाणवो. ... एजियनापांच, देवतानातेर, अने नारकीनो एक उंगणीस दंडके एक उजाहार अने बीजो सो. माहार होय . विगछियना त्रण, गर्नज तिर्यंचनो एक श्रने गर्नज मनुष्यनो एक एम पांच दंगकने विषे, उजाहार, लोमाहार अने प्रक्षेपाहार ए त्रणे प्रकारना आहार कमां ने. एकेडिय, विगडि, अने गर्नज तिर्यंच तथा मनुष्यनामळीदश दंगके सचित्त, अचित्त, अने मिश्र आहार होय डे एटले को वार सचित्त, कोइवार अचित्त अने कोश्वार कांश सचित्त कांश अचित्तरुप मिश्र एम त्रण प्रकारना थाहार होय जे श्रने नारकी तथा देवताना दंगके सदा सर्वदा अचित्तज आहार कह्यो . शरीर पर्याप्ती पुरी करे त्यां सुधी सर्व अपर्याप्ता अवस्थाए जीवोने उजाआहार होय डे अने शरीरपर्याप्ति पुरी कर्या पनी लोमाहार होय; ते लोमाहार असंझीने थजाणता अने संज्ञीने जाणता अजापता तथा देव