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( ८४ ) देहमान पांचसें धनुष्यनुं जाणवुं; ए प्रमाणे साते नारकीमां दरेक प्रतरोना नारकीनुं जव प्रत्ययिक शरीर मानक ने ते नारकीना जीवो उत्तरवै क्रिय शरीर करे तो जघन्यथी अंगुलना संख्यातमां जाग जेटलुं अने उत्कृष्टथी पोताना जव प्रत्ययिक शरीरथी बमणुं करी शके बे..
भुवनपतिना दशदंमक, व्यंतरनो एक दंगक ज्योतिषीनो एक दंगक एम बार दंगके देवदेवनुं जव प्रत्ययिक शरीर एटले स्वाभाविक शरीर जघन्य अंगुळना असंख्यातमां जाग जेटलुंने उत्कृष्ट सात हाथनुं होय . अने ते देवो उत्तरवैक्रिय शरीर करे तो जघन्य अंगुलना संख्यातमां जाग जेटलुंने उत्कृष्ट लाखजोजनपर्यंत करी शके बे, जघन्य शरीर उत्पत्ती समज होय .
पृथ्वी काय, अपकाय, ते काय वाकाय ने साधारण वनस्पतिकायना जीवोनुं शरीर जघन्य अने उत्कृष्टथी अंगुळना असंख्यातमा जाग जेटलुं होय ते. प्रत्येक वनस्पतिकायनुं शरीर जघन्यथी अंगुळना असंख्या
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