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________________ (U2) ए) दोवार्थ द्रव्य प्राणतो नयी पणनिजात्मगुण अनंत ज्ञानादि चारे जावप्राण होय बे. ॥ इति प्राण द्वार ॥ अथ गियास्मं पर्याप्त हार. पर्याप्ति - पुजलोपचयजः पुजल ग्रहणपरिणमन देतुः शक्ति विशेषः - पुलना उपचयथी थयो (जे) पुल ग्रहण परिणमन देतुरुप शक्ति विशेष, तेने पर्याप्तिकहे . जीवने एक गतिथी बीजी गतिए जातां साथे तेजस ने कार्मणशरीर होय. ते शरीरवमे करीनेजीव यथायोग्य आहारने ग्रहण करे बे ने पी ए - हारद्वारा चार, पांच के ब विनागे जीववीर्य प्रवृती एटले शक्ति फोरवे बे, केमके स्वयोग्य सर्व पर्याप्ति जीव साथेज धारंजे ने पुरी अनुक्रमे करे बे. पर्याप्त बे. १ आहारपर्याप्ति, २ शरीरपर्याप्ति, ३ इंडिय पर्याप्ति, ४ श्वासोश्वासपर्याप्ति, ५ जाषापर्याप्ति, अने ६ मनपर्याप्ति. प्रथम आहारने ग्रहणकरी परिणमावी रसख
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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