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(१५३) पांच गर्नज तिर्यंच अने पंदर कर्म नूमिना मनुष्य नामळी बीस पर्याप्ता तथा वीस अपर्याप्ता एवं चाळीस नेदमां जाय . नवमा आणत देवलोकथी मामीने बारमा अच्युत देवलोक सुधीना चार देवलोकना देवोअने नव अवयक तथा पांच अनुत्तरविमानना देवो एसर्वे मळीने अढार देवलोकना नोकदयाजीव, ते पंदरकर्म मिना मनुष्यमां जाय . नारकीनो एक दमक तथा देवताना तेरदंझक मळोने चौद दंगकनी गति कही. जीवमात्र उत्पति काळे अपर्याप्तावस्थाए होय अने पलीथी पर्याप्ता थाय, ए अपेक्षाए अहीं नारकी तथा देवतानी गति पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता जीवन्नेदे कही तो ते करण अपर्याप्ता जाणवा. करण अपर्याप्ता जीव अवश्य पर्याप्ता थायज, तेथी संग्रहणी विगेरेमा कयु डे के नारकी तथा देवता चवीने पर्याप्ता तिर्यंचयने मनुष्य थाय एमां कोई विरोध नथी.. ..पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय तथा बे जिय, ते इंडिय अने चौरिंजिय एवं उदंगकनाजीवो