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________________ *(१५५ ) त्रेसठ जीवनेदने विषे कहे :-पहेलोयीठो नारकीना जीवो आयुदये नारकीमांयी नीकळीने पंदर कर्म नूमिना गर्नजमनुष्यपर्याप्ता, पंदर कमेनूमिना गर्न जमनुष्य अपर्याप्ता तथा पांचगर्नजतिर्यंचपर्याप्ताने पांचगर्नेजतिर्यंचयपर्याप्ता एवं चालीशजीवन्नेदने विषे जाय, तथासातमी नारकोथीनीकड्यां जीवो तो पांच गर्जज तियेच पर्याप्ताने पांच गर्नज तिर्यंच अपर्याप्ता एमदशजीवनेदने विषे जायचे. दशजुवनपति, सालव्यंतर, पंदरपरमाधामी, दशतिर्यग ज्रनक, दशज्योतिषी, सौधर्म, शान अने एक किटवीषिया एम चोसठ जातिनां देवोमांथी नोकल्या जीवो, पंदर कर्मनूमिनागनज मनुष्य अने पांच जातिना गर्नज तिथंच तथा बादर पृथ्वीकाय, बादर अपकायने बादरप्रत्येकवनस्पतिकाय मळी त्रेवीसपर्याप्ता तथा त्रे. वीस अपर्याप्ता एवं वेताळीस नेदमा जाय . सनत कुमारथी मामीने सहस्त्रार पर्यंत देवलोकना देवो, वे किक्ष्वीषिया जातिना देवो अने नवलोकांतिकना देवो एम सत्तर जातिना देवोमांथो नोकल्या जीवो,
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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