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(१७) जाय तथा यथाख्यात चारित्रधाराधक उत्कृष्टो मोटे पण जाय .इतिगति. मनयोग, वचनयोग अने काययोग ए त्रणे योगे पहेलेथी चार चारित्र अने अयोगीमा एक यथाख्यात चारित्र लाने. इतियोग. सागार उपयोगमां पांच चारित्र अने अनागार उपयोगमां सुमसंपरायचारित्र वर्जी ने बाकीना चार चारित्र लाने. इति उपयोग. प्रथमना चार चारित्र सकषायी अने यथाख्यात चारित्र कषाय रहित जाणवू. सकषायी चारित्रमांथी पहेला बीजा ने त्रीजा चारित्रे संज्वलननो क्रोध मान, माय अने लोन होय
तथा सुदमसंपरायचारित्रे एक संज्वलन लो. ननो कांश्क अंश होय . इति कषाय, सामायिकने बेदोपस्थापनिय चारित्रमा उलेश्या, परिहारविशुद्धि चारित्रमा पालीत्रण लेश्या अने सुक्ष्म संपराय तथा ययाख्यात चारित्रने विषे शुक्ल लेश्या कही . इति लेश्या, सामायिकने बेदोपस्थापनिय चारित्रे , सातमुं, आठमुं ने नवमुं एम चार गुणस्थानक होय, परिहार विशुःइ चारित्रे बने सातमुंएम बे गुणस्त्रा