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(१३०) अप्रत्याख्यानीकषाय जाणवो.एक्रोध सुकेला तळावनी रेखा सरखो, मान हामकाना थांजलासरखं, माया मेंढानाशिंगमा सरखी अने लोन कादवनारंग सरखो जाणवो. प्रत्याख्यानी सर्व विरतिरुप पच्चखाणने आवरे, आववा नदे एवो क्रोध,मान, माया अने लोन ने प्रत्याख्यानी कषाय जाणवो. ए क्रोध रेतीनी रेखा सरखो, मान काष्टना थानला सरखं, माया बळदना मुतरनी रेखासरखी अने लोन काजळनारंग सरखो जाणवो. संज्वलन चारित्रीयाने पण लगारेक दीपे, उदय आवे एवो क्रोध, मान, माया अने लोन ते संज्वलन कपाय जाणवो, ए क्रोधपाणीनीरेखासरखो, मान नेतरना थांनला सरखं, माया वांशनीबगल सरखी अने लोन हळदरना रंग सरखो जाणवो.
अनंतानुबंधी समकीतनो, अप्रत्याख्यानी देश विरतिनो, प्रत्याख्यानी सर्वविरतिनो अने संज्वलन कषाय यथाख्यातचारित्रनो घातकरनार . क्रोध मान, माया अने लोननी अपेक्षाए जीवो सर्वथी थोमामानी, मानीथी विशेषाधिक क्रोधी, क्रोधीथी