________________
(१३) अनंतगणुसुख शब्दसेवीने तथा ते थकी पण धनंतगणुसुख मनसेवीने अने ते थकी अनंतगर्दा सुख अप्रवीचारीदेवोनेजाणq. उपर कहेला सर्व जीवोनासुखथी अनंतगणुं सुख गया डे राग थने शेष जेना एवा श्री वीतरागने जाणवू.
॥ इति वेदधार ॥
अथ बीसमुं कषायहार. कषाय-(कष-थाय)कष-संसार ने थाय-सान एटले जेनाथी संसारनो लान थायसंसारनी परंपरावधे तेनुनाम कषाय. अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानी प्रत्याज्यानीथने संज्वलन ए चार नेद कषायना जाणवा.
अनंतानुबंधी-अनंता संसारने वधारनार एवो क्रोध, मान, माया अने लोनते अनंतानुबंधों कषाय जाणवो, एक्रोध पर्वतनी लींटी जेवो, मान पाषाणना थानला जेवं, माया वाशना मुळ जेवी, अने लोन करमजनारंगजेवो जाणवो, अप्रत्याख्यानी को पण पच्चखाणने उदयभाववानदेयोमा पण पञ्चखाणनी प्राप्ति न थाय एवोक्रोध, मान, माया अने सोन ते