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पचेंद्रिय अपर्याप्ता भने १४ संझी पचेंघिय पर्याप्ता एम सर्व संसारी जीवोना चौद स्थानक-नेद-कर्म ग्रंथादिकने विष कह्यां बे. पृथ्वीकायादिक स्थावरना पांच सूदम अने पांच बादर मळी दश, प्रत्येकवनस्पतिकायनो एक; विगलेंजियना त्रण, अने संझी तथा असंझी पंचेंऽियना बे नेद एम सर्वेमळीने सोळ नेदने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता करतां बत्रोश नेद पण प्रकारांतरे गएया .
हवे जीवना पांचशे त्रेश नेद कह्यां देते श्रा प्रमाणे; नारकीना सात लेद ले तेने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता करतां चौद नेद थाय, पांच सुदम स्था. वर, पांच बादर स्थावर, एक प्रत्येकवनस्पतिकाय अने त्रण विगछिय एवं चौद तथा पांच समुर्बिम तिर्यंच पंचेंडिय ने पांच गर्नज तिथंच पंचेंड्रिय एवं दशमळीने चोवीश नेद थाय, तेने पर्याप्ता तथा अ. पर्याप्ता करतां तिर्यंचना अमताळीस नेद थाय. एक सोने एक गर्नज मनुष्यना पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता गमतां बसेंने बे अने समुर्बिम मनुष्यना एकसोने