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________________ (६ए) सागरोपमउपरअंतरमुहुर्त जे. · व्यवन-कश् लेश्याएजीव कश् गतिमांजाय एम जे कहे, तेनुनाम अहीं च्यवन कहेझुंडे. कृष्ण, नील अने कापोत एत्रणलेश्यावाळाजीवों च्यवी ( मरी) ने उरगति(नारकी तथा तिर्यंच)मां जाय,अने तेजो पद्म अने शुक्ल एत्रणलेश्यावाळाजीवो च्यवीने सद्गति [मनुष्य अने देवगति]मां जाय. ' गाथा, अंतमुहुत्तम्मिगए ॥ आंतमुहुत्तम्मि सेस ए चेव । खेसाहि परिणयाहि ॥ जीवा वच्चंति परलोयं ॥ अर्थ-मनुष्य तथा तियेच ते परनवनी खेश्या श्राव्यापली, अंतरमुहुर्तेमरणपामे, अने देवता तथा नारकी पोतानी मुलगी (नवस्थ ) लेश्यानुमुहुर्त थाकतुं रहे [बाकी रहे ] तेवारे मरणपामीने परजव जाय. .. अल्पबहुत्व-कश्लेश्याए जीवथोमा अने कर खेश्याए जीवघणाहोय एमकहे, ते अल्पबहुत्व. बए सेश्यामांहे सर्वथीयोमाजीबो शुक्ललेश्याए होग,
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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