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________________ ( १५४) उत्पन्न थाय छे, एम सामान्ये चोवीरों दंरुकन यागति कही. " हवे चोवंशे रुके, पांचसे त्रेसठ जीवनेदमांथी आगति कदेबे - पहेली नरके पंदरकर्मभूमीज गर्भज मनुष्य, पांच गर्भज तिर्यच पंचेंद्रिय ाने पांच समुमितिर्येच पंचेंद्रिय एम पच्चीशभेदना जीव याव उपजे. बीजी नरके, पंदरक मंजू मिजगर्भज मनुष्याने पांच गर्भज तिर्यच पंचेंद्रिय एम वोस जेदनाजीव यावी उपजे त्रीजीनरके, पंदर कर्म भूमिज गर्भज मनुष्य तथा गर्जज जलचर, थलचर, उरपरिसर्प ने खेचर एम जंग णिश नेदमांहेथी जीव घ्यावी उपजे. चोथोनर के पंदर कर्मभूमिज गर्भजमनुष्यतया गर्भज जलचर थल चराने जर परिसर्य एम अढार नेदमांहे थीजीव यावी उपजे. पांचमी नरके पंदर कर्मनुमिज गर्भज मनुष्य तथा जलचर ने उरपरिसर्प एम सत्तर नेदमांदेथी जीव आवी उपजे, बघीतर के पंदर कर्मभुमिज, गर्जज मनुष्य ने गर्भज जलचर एम सोलनेद मांदेथी जीव झावी उपजे. सातमी नरके पण पंदर कर्मनुमिजग ज्ञ
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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