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________________ (११७) गुणस्थानके अने चोथा अविरतिसम्यक्पृष्टी गुणस्थानकने विषे, आहारकर काययोग अने आहारक मिश्र काययोगविना बाकीना तेरयोग कह्यां . त्रीजामिश्र गुणस्थानके चारमनना, चारवचनना अने औदारिक काययोग तथा वैक्रिय काययोगस. हित दशयोग कह्यां डे. पांचमा देशविरति गुणस्थानके चार मनना, चार वचनना अने औदारिक का. ययोग, वैक्रियकाययोग तथा वैक्रियमिश्रकाय योग सहित अगियार योग कह्यां दे. उपर कहेला अगियार योगनी साथे थाहारक काययोग अने आ हारकमिश्र काययोग सहीत तेरयोग गठ्ठा प्रमत्त गु. णस्थानके, अने तेमांथी आहारकमिश्र अने वैक्रियमिश्रविना अगियारयोग अप्रमत्त गुणस्थानके कह्यां . आठमा अपूर्वकरण गुणस्थानकथी बारमा वीण मोह गुणस्थानक सुधी दरेक गुणस्थानके, चारमनना, चार वचनना अने एक औदारीक काययोग मळी नवयोग होय . तेरमा सयोगी केळवी गुणस्थानके, एक सत्य वचनयोग, बीजु असत्यामृषा वचनयोग,
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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