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(१४ ) तिर्यंच पंचेंजियने विषे बार मुहुर्तनो अने समुर्छिम तिर्यंचपंचेंजियनेविषे अंतरमुहुर्तनो जन्म तथा मरणथाश्रीविरहकाळजाणवो, गर्नज मनुष्यने विषे बारमुहुर्तनो अने समुर्बिममनुष्यनेविषे चोवीस मुहुर्तनो उत्कृष्ट विरहकाळहोय. मोदनेविषे निरंतर जीवउत्पन्नथायजे. पण क्यारेक अंतर पडे तो जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी उ मासर्नु सिगतिनेविषे. श्रांतरुंकडंडे तथा सिइगतिथी सिहना जीवोनेचववानुनथी माटे चवनविरहकाळ होयनहि एमजाणवू. , . ॥इति विरहकाळ छार॥ - अथ त्रीसमुं चवन संख्याद्वार अने एकत्रीसमुं
उपजवानुं संख्यादार.
चवन संख्या-एक समयमांजीवकेटलाचवे (मरे) ए संख्या जे कहेवु ते. चवन संख्या तथा एक समयमा केटलां उत्पन्न थाय एम जे कहे ते उपजवानी संख्याहार. ए बन्नेछार नेगा कहे . ....नारकीना दमके, जीवो उपजे तो समये समये जघन्यथी एक, बेत्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता थ