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________________ (१५) माण वाळनां वीसलाख सत्ताएं इजार एकसोने बावन खंग थाय तेवा खंभे गंसीने ए पत्य जरीए, ते एवं रीते गंसीने नरी एके तेना उपर चक्रवर्तीन कटक चादयु जाय तो पण ते घसके नहि तथा गंगानदीनो प्रवाह तेने नेदीशके नहि, अग्निएकरीने बळे नहि अने वायरे करी एक बाळाग्र खंग पण उमे नदि ऐवो सीने नरीए; पी ए पट्यमांथी एकेका समये एकेक केशखंग काढतां जेटले काळे ते पथ्य खाली थाय लेटला काळने बादर उधर पक्ष्योपम कहे . ते नदार पट्यो पम संख्याता समयकाळ, प्रमाण होय , जे कारणमाटे ते खंम संख्याताज होय माटे संख्यातो काळ कह्यो जे एम उझर प. व्योपमनुं स्वरुप जाणवू. पूर्वे जे वालाग्रखंमेपल्यत्नयों ने ते वाळाय खंमने ज्ञानी बादरवालाग्र कहे जे.बादर एकेक खंमनाअसंख्याताअसंख्याता सुक्ष्म खममनथी कटपीए ते एवा सुक्ष्म कटपीए केजे एक खंमनो वळी बीजो खंग केवळी केवळझाने करी पण कल्पी नशके एवा सुदमखम कटपीए. एसदमखंके करी पूर्वोत्तरीते कष
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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