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१८ काले कालं समायरे-हर काम ठीक समय पर करो। १६ वच्चं मुत्तं न धारए-मल-मूत्र का वेग मत रोको। २० कोहं असच्चं कुग्विज्जा--क्रोध को विफल करो २१ अस्थि सत्थं परेण परं-जहां शस्त्र है, वहां स्पर्धा है । २२ तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं ब्रह्मचर्य सब तपों में उत्तम है। २३ नेहपासा भयंकरा-स्नेह का बंधन बड़ा भयंकर होता
२४ न तं तायन्ति दुस्सील-दुराचारी को कोई नहीं बचा
सकता। २५ न य भोयणम्मि गिद्धे-रस-लोलुप मत बनो। २६ कत्तारमेवं अणुजाइ कम्म-कर्म कर्ता के पीछे दौड़ता
२७ एवं खु णाणिणो सारं, जं न हिंसइ किंचणं ।
किसी भी प्राणी की हिंसा न करना, यही ज्ञान का सार है। २८ अन्नाणी कि काही, किं वा नाहिइ छेय पावगं । ___ अज्ञानी क्या करेगा, जो श्रेय और पाप को भी नहीं जानता। २६ सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं । ___ मनुष्य का कोई सत्प्रयत्न विफल नहीं होता। ३० इहलोए निप्पिवासस्स नत्थि किंचि वि दुक्करं ।
उसके लिए कुछ भी दुःसाध्य नहीं है, जिसकी प्यास बुझ
चुकी। ३१ ना पूलो वागरे किंचि, पुदो वा नालियं वए।
बिना पूछे मत बोलो और पूछने पर झूठ मत बोलो। ३२ अणायारं परक्कम्म, नेव गृहे न निण्हवे ।
अपने पाप को मत छिपाओ।। ३३ अपूच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अंतरा।
बिना पूछे मत बोलो, बीच में मत बोलो। ३४ चएज्ज देहं न उ धम्मसासणं ।
शरीर को छोड़ दो पर धर्म को मत छोड़ो।
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योगक्षेम-सूत्र
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