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स्वयं जीओ और दुनियां सीखे
१ सिखाने की बात मत बोलो, पहले जीने की बात को बोलो । २ जिस व्यक्ति ने अपने व्यवहार से और आचरण से पढ़ाना शुरू किया, सिखाना शुरू किया, वह वास्तव में शिक्षक होता है । ३ दूसरों को वही व्यक्ति विनय के मार्ग पर ले जा सकता है जो स्वयं विनय के मार्ग पर चल चुका है ।
४ आचरण से जो पाठ पढ़ाया जा सकता है, वह शब्दों से नहीं पढ़ाया जा सकता ।
५ प्रत्येक आदमी अन्तर्विरोध का जीवन जीता है, कहता कुछ है और करता कुछ है ।
६ उपदेश से आदमी कम बदलता है। जब तक भीतरी परिवर्तन नहीं होता तब तक आदमी नहीं बदलता ।
७ जो स्वयं अभ्यासी नहीं होता, वह अच्छा प्रशिक्षक नहीं बन
सकता ।
८ मनुष्य का व्यवहार ही वह दर्पण है जिसमें उसका व्यक्तित्व भलीभांति देखा जा सकता है ।
& शांति के क्षणों में जो सलाह तुम दुसरे को दे सकते हो, अशांति के क्षणों में खुद के ही काम नहीं आती। अपनी ही सलाह के विपरीत चले जाते हो ।
१० धरती के देवता हैं वे जो अपने अनुकरणीय आचरण से दूसरों में सत्पथ गमन की प्रेरणा भरते हैं ।
११ अपने चरित्र को दर्पण के सामन सहेजकर रखो जिससे दूसरों को भी उसमें अपना प्रतिबिम्ब देखने की आकांक्षा हो ।
१२ जो सिखाओ उस पर खुद भी चलो ।
१३ श्रेष्ठ दिखने का नहीं, श्रेष्ठ बनने का प्रयास करें ।
१४ दूसरों को सिखाने की भावना रखने वाला व्यक्ति स्वयं कुछ नहीं सीख सकता, दूसरों पर रोब जमाने वाला अधिकारलोलुप कभी भी अच्छा शासक नहीं बन सकता ।
१५ आत्मसुधार से प्रसन्नता आती है ।
१६ जो दुनियां को हिलाना चाहता है, उसे पहले अपने को ही गतिशील बनाना चाहिए ।
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योगक्षेम-मूत्र
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