________________
८ साधक ! सभी जगह युद्ध से विजय नहीं होती। कहींकहीं हार से भी विजय होती है, लेकिन यह विजय ज्ञानियों
की है। ९ साधक ! आत्मा को समता के इस प्रकार भावित कर कि
राग-द्वेष से वह किसी भी पदार्थ को ग्रहण न करे। १० साधक, मैत्री, उपेक्षा, करुणा, विमुक्ति और मूदिता का
समय-समय पर आसेवन करते हुए सारे संसार में कहीं भी विरोध भाव न रख अकेला विचरे । ११ साधक ! मन के प्रवाह में न बहे। १२ साधक के शरीर, इन्द्रियां, मन आदि वश में रहते हैं जिससे
किसी मनुष्य को उद्वेग नहीं होता और जिसे स्वयं भी किसी मनुष्य से उद्वेग नहीं होता।
१५८
योगक्षेम-सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org