Book Title: Yogakshema Sutra
Author(s): Niranjana Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 189
________________ ८ बहती सरिता के पल-पल परिवर्तित जल में एक बार पैर रखकर उसी जगह दूसरी बार, फिर उसी जल में पैर नहीं रखा जा सकता क्योंकि तब तक तो वह बहने वाला जल बह चका होता है। है मृण्मय घरों को ही बनाने में जीवन को व्यय मत करो। उस चिन्मय घर का भी स्मरण करो जिसे कि पीछे छोड़ आये हो और जहां कि आगे भी जाना है। १७ जाग, ए मानव, उठ ! समय सरपट चाल से भागा जा रहा है। तुझे जो क्षण मिला है, वह फिर कभी नहीं मिलेगा। मनुष्य जीवन की ये अनमोल घड़ियां अगर भोग-विलास में गंवा देगा तो सदा के लिए पश्चात्ताप करना ही तेरी तकदीर में होगा, इसलिए अक्षय कल्याण की साधना के मार्ग पर चल । देख, अनन्त मंगल तेरे स्वागत की प्रतीक्षा कर रहा योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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