Book Title: Yogakshema Sutra
Author(s): Niranjana Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 191
________________ ११ विष का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से वह मनुष्यों को मार देता है । उचित मात्रा में सेवन करने से विष भी रोग को दूर करता है। १२ व्यक्ति किसी कार्य में संलग्न हो, उसकी आंख, कान और वाणी का सीमित प्रयोग हितकर होता है। सीमा का अति क्रमण सृजन की शक्ति को ध्वंस में परिणत कर देता है । १३ काम के बाद आराम और आराम के बाद काम जो करता है, वह उस व्यक्ति की अपेक्षा अधिक काम कर सकता है जो निरन्तर काम ही काम करता है, विश्राम नहीं करता। १४ अति आशा का परिणाम कभी सुखद नहीं होता । अप्रत्यक्ष रूप से वह निराशा को ही आमन्त्रण है। योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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