Book Title: Yogakshema Sutra
Author(s): Niranjana Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 180
________________ रोग का आनन्द १ यह सच्चाई है कि रोग का आनन्द होता है। रोग की अवस्था में आदमी जितनी बड़ी उपलब्धि कर लेता है उतनी बड़ी उपलब्धि शायद निरोग अवस्था में भी नहीं हो सकती। नीरोग व्यक्ति की एक चिन्तन धारा होती है और रोगी व्यक्ति की दूसरी चिंतन धारा होती है। २ ज्ञानी आदमी की दृष्टि में रोग हो सकता है पर रोग का कष्ट नहीं होता। वहां उसका आनन्द होता है। वहां रोगों को समाधि का निमित्त बनाया जा सकता है, ध्यान का साधन बनाया जा सकता है और उसे अनेक बुराइयों से बचने का साधन बनाया जा सकता है। ३ अवसाद को उत्साह में बदल देना ही मानसिक रोगों की कारगर चिकित्सा है। इसमें प्रेमोपचार को जितनी सफलता मिलती है, उतनी और किसी प्रयोग को नहीं। ४ भय, चिन्ता और तनाव से मुक्त होना रोग और पीड़ा के साथ मैत्री स्थापित करना है । ५ दुःख में यदि सुख की अनुभूति चाहते हो तो हंसमुख बनो। ६ रोग की पीड़ा शान्त करने के लिए चित्ताकर्षक और मनोरंजक पुस्तक से बढ़कर दूसरा कोई अच्छा साधन नहीं ७ संकल्प के द्वारा आदमी रोग के साथ मैत्री स्थापित करता है और पीड़ा को बिल्कुल शान्त कर देता है। ८ दूसरों की सहायता कीजिये। दूसरों का दुःख-दर्द बांटकर अपनी पीड़ा दूर कीजिये। रोग का आनन्द १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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