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१३ संसार चक्र का अन्त कौन करता है-१. जिसने विकारों पर
विजय पाई है। २. छोटी-छोटी भूलों पर भी जो बारीकी से दष्टि रखता है, ३. मन-वाणी-कर्म में एकरूपता है। ४. जिसकी इन्द्रियां विपथगामिनी नहीं है। ५. जिसने कषायों पर विजय पाई है। ६. ब्रह्मचर्य की प्रभा से जो मंडित है।
७. जिसका मन समाधि में लीन है। १४ जितना-जितना पुद्गलाकर्षण, उतना-उतना पाप की ओर
प्रस्थान करना है।
भागी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चइ
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