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१२ ध्यान शक्तिशाली टॉनिक है। यह मन तथा स्नायुओं को
शक्ति प्रदान करता है । पवित्र स्पन्दन शरीर के सारे जीव
कोषों में प्रवेश करते तथा रोग को दूर करते हैं। १३ ध्यान वायुयान है जो साधक को अनंत आनंद और अक्षय
शान्ति के साम्राज्य में उड़ा ले जाता है। १४ जैसे-जैसे चेतना का ऊर्ध्वगमन होता है, मनुष्य का व्यक्तित्व
खिल उठता है । चेतना के विकास के लिए स्वस्थ और शान्त
मन की आवश्यकता है। १५ ध्यान हमारे जीवन की स्थिति है, उसमें हम लंबे समय तक
ठहर सकते हैं, शांति हमारा अधिकार है, उसे हम किसी भी
समय आह्वान कर सकते हैं । १६ जैसे क्षुधा को नष्ट करने के लिए अन्न होता है तथा जिस
तरह प्यास को नष्ट करने के लिए जल होता है वैसे ही विषयों की भूख तथा प्यास को नष्ट करने के लिए ध्यान
१७ जैसे मनुष्य के रोगों की चिकित्सा करने में वैद्य कुशल होता
है वैसे ही कषायरूपी रोगों की चिकित्सा करने में ध्यान
कुशल होता है। १८ जैसे श्वापदों का भय होने पर रक्षक का और संकटों में मित्र
का महत्त्व होता है वैसे ही संक्लेश परिणाम-रूप व्यसनों के
समय ध्यान मित्र के समान है। १६ जैसे हवा को रोकने के लिए गर्भगृह होता है वैसे ही कषाय
रूपी हवा को रोकने के लिए ध्यान है और जैसे गर्मी के लिए छाया होती है वैसे ही कषायरूपी गर्मी को नष्ट करने के
लिए ध्यान है। २० ध्यानकर्ताओं के दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन होता
है। उनमें भौतिक और सामाजिक अपर्याप्तता, दबाव एवं कठोरता युक्त व्यवहार में कमी तथा आत्मसम्मान में वृद्धि
होती है। २१ ध्यान के द्वारा शरीर के अन्दर शक्ति का संरक्षण और __ भण्डारण होने लगता है। और यह अतिरिक्त ऊर्जा शरीर
योगक्षेम-सूत्र
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