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कहते हैं
१ कहते हैं---"यौवन दृढ़ और साहिक कार्यों का काल होता है, प्रौढ़ावस्था विवेक-संगत और सोच-समझकर काम करने का दौर होती है, वृद्धावस्था में आदमी अपने गुजरे जीवन का लेखा-जोखा करता है। २ कहते हैं-"जो दुनियां से चिपटता है, दुनियां उससे भागती है और जो दुनियां से घृणा करता है, दुनियां उससे चिपटने
को बेचैन रहती है। ३ कहते हैं---"इस संसार में भगवान का दर्शन पाना आसान
हो सकता है लेकिन गुरु-कृपा प्राप्त करना आसान नहीं है।' ४ कहते हैं-."मानसिक अवसाद के ही कारण अति भोजन
की प्रवृत्ति जागती है । असंतृप्त वासनाओं के रूप में बैठी कुंठाएं अतिभोजन के रूप में प्रकट होती हैं। ५ कहते हैं--"पन्द्रह मिनिट क्रोध के रहने से मनुष्य की जितनी
शक्ति नष्ट होती है, उससे वह साधारण अवस्था में नौ घण्टे कड़ी मेहनत कर सकता है।" ६ कहते हैं- "बात करने के समय का ध्यान रखना चाहिए। दिन में कुछ समय ऐसे होते हैं, जिनमें सलाह देना घातक होता है-यथा अति प्रातःकाल, भोजन से पूर्व तथा भोजन के तत्काल बाद या सप्ताहान्त के दिनों में। कभी किसी को
सलाह उस समय न दें, जब कोई अन्य व्यक्ति उपस्थित हो।" ७ कहते हैं- “सवेरे दस बजे तक प्रसन्नचित्त रहिए फिर दिन
का शेष भाग आप ही अपना ध्यान रख लेगा। यानि दिन का आरंभ यदि प्रसन्नता से करते हैं तो दिन भर चुस्त और स्वस्थ रहेंगे।
कहते हैं
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