________________
(
xii
)
अनायास आ जाती है । उपमाओं में सादृश्य और साधर्म्य की अपेक्षा शब्द साम्य का ही प्राधान्य दिखाई देता है। साम्य की इस अभूतार्थता के कारण वर्णनों में कृत्रिमता आ गई है। ऐसे ही स्थलों को लक्ष्य करते हुए आचार्य रुद्रट ने उपमा को केवल अर्थालंकार न मानकर उभयालंकार को कोटि में रख दिया था। ऐसे उदाहरणों में शब्द के अतिरिक्त साम्य का अन्य सुदृढ़ आधार न होने के कारण हिन्दी अनुवाद पढ़ते समय कभी-कभी मूल शब्द के अभाव में पूरी उपमा अनर्गल प्रलाप सी प्रतिभासित होने लगती है। शब्द साम्यमूलक पूर्णोपमा की वर्णन शैली के दो रूप हैं-एक में उपमान और उपमेय एवं उनके विशेषणों में सामानाधिकरण्य रहता है और द्वितीय में नहीं । द्वितीय शैली को यदि व्याकरण के झरोखे से देखें तो वह अनेक स्थानों पर दोष-पूर्ण लगेगी।
धद्धो वंकग्गीवो अवंचिओ विसमदिट्ठिदुप्पेच्छो ।
अहिणवरिद्धिव्व खलो सूलादिन्नुव्व पडिहाइ ॥ इस गाथा में खल की उपमा शब्द साम्य के आधार पर नये धनी और शूल-प्रोत चोर से दी गई है । उपमान, उपमेय और उनके विशेषणों में एक ही विभक्ति, एक ही वचन और एक ही लिंग है । यह उपमा कवि की अप्रतिहतप्रज्ञा और अगाध पांडित्य का परिचय देती है । कोरे शब्दसाम्य की वायवी भित्ति पर एक उपमेय का दो-दो उपमानों के साथ सफल साम्य निर्वाह करना कोई खेल नहीं है।
ठड्ढा खलो व्व सुयणो व्व संगया नरवइ व्व व्व मंडलिया। थणया तह दुग्गय चितिय व्व हियए न मायंति ॥ . इस मालोपमा में उपमान खल, सुयण, नरवइ और दुग्गचितिय एकवचन हैं, जबकि उपमेय थणया बहुवचन है।
सम उत्तगविसाला उम्मंथियकणयकलससंकासा ।
कामणिहाणो व्व थणा पुण्णविहीणाण दुप्पेच्छा ॥ ___ इस उपमा में उपमान कामणिहाण एकवचन है और उपमेय थणा बहुवचन । अर्थ करते समय बहुवचन विशेषण बहुवचन उपमेय के साथ तो सरलतापूर्वक अन्वित हो जाते हैं, परन्तु उपमान से अन्वित करने के लिये उन्हें एकवचन में परिवर्तित करना पड़ता है ।
१. स्फुटमर्थालङ्कारावेतावुपमासमुच्चयो किन्तु ।
आश्रित्य शब्द मात्र सामान्यमिहापि संभवतः ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org