Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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यह कोई एक घटना नहीं है । ऐसी अनेक घटनाएँ हैं । इस दृष्टि से काशी के विद्वानों में जैन विद्वानों की भी गणना होती है। काशी संस्कृत विश्वविद्यालय में जैन दर्शन का भी अध्ययन-अध्यापन होता है । कभी-कभी मुझे और मान्य पं० कैलाश चन्द्रजी शास्त्री कभी भाषण करने के लिए बुलाया जाता था। सभी विद्वान् उन्हें सुनने के लिए उपस्थित रहते थे। एक बार मान्य पण्डितजी का भाषण वहां रखा गया । अपने भाषण में जैन धर्म की प्राचीनता पर बोलते हुए उन्होंने वेदों और पुराणों से उद्धरण उपस्थित कर जैन धर्म की प्राचीनता जिस ढंग से सिद्ध की उसे सुनकर ब्राह्मण विद्वानों ने जैने धर्म का लोहा माना ।
ऐसे थे हमारे विद्वान् पण्डितजी । 'जयधवला' के सम्पादन के समय प्रथम भाग में वे हमारे साथ थे। बाद में मान्य स्वर्गीय पं० महेन्द्र कुमार जी न्यायाचार्य अलग हो गये, परन्तु वे एक वर्ष तक जुड़े रहे अनुवाद का काम मेरे जिम्मे ही था । इसलिए पूरे जयधवला का अनुवाद आदि कार्य मैंने ही सम्पन्न किया है। प्रथम भाग की भूमिका लेखकों में मान्य पं० कैलाश चन्द जी मुख्य थे और टिप्पणी के संग्रह करने में न्यायाचार्य जी मुख्य थे । उन दोनों विद्वानों के अलग होने पर पूरा उत्तरदायित्व का निर्वाह हमें ही करना पड़ा ।
आज वे हमारे बीच में नहीं हैं । उनके वियोग को हमें सहना पड़ रहा है । उनका साहित्य हमारे लिये मार्गदर्शक बने और मार्गदर्शक के रूप में हम सदा उनको याद करते रहें यह इच्छा है ।
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