Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 15
________________ अन्य विद्वान् भी। वे अपने ढंग के बेजोड़ थे। पर्याय अस्थायी है, वह नियम से जाती है । उसका स्थान अन्य नहीं ले सकता। पंडितजी जी हमारे साथी थे, वे श्री पं० जगन्मोहन लालजी और हम एक साथ और एक कक्षा में पढ़ते थे। यह सम्पर्क लगभग दो वर्ष तक रहा। इसलिए उनके जीवन को हम निकट से जानते हैं । जो उनको मानता था, उसे वे अपना सहायक बना लेते थे। उसके लिए वे सब कुछ करने के लिए तैयार रहते थे। उसके लिए सार्वजनिक संस्था का उपयोग करने में वे नहीं चूकते थे। विद्वत्ता की दृष्टि से विचार करें तो इस काल के विद्वानों में प्रथम श्रेणी के विद्वानों में उनकी गणना होती थी। समयोपयोगी भाषण करने में वे निपुण थे। लेखनी उनको चूमती थी। वे अच्छे लेखक थे । त्यागी हो या मुनि यदि वह धर्म के विरुद्ध दिखाई देता था तो उसकी सार्वजनिक रीति से खिचाई करने में वे चूकते नहीं थे। जैन सन्देश पत्र के वे प्रधान सम्पादक तो थे ही। उनके लिखे हुए.----अनेक ग्रन्थ हैं जिनके पढ़ने से ज्ञात होता है कि वे यथासम्भव धर्मशास्त्र में तो अधिकार रखते ही थे। इतिहास के भी वे माने हुए विद्वान् थे। इसके लिए उन्होंने भारतीय दर्शनों का भी अध्ययन किया था। लिखित साहित्य में वेद प्राचीन हैं इसमें सन्देह नहीं। आश्रमों में रहने वाले वैदिक ऋषियों के वे उद्गार मात्र हैं। वर्णाश्रम व्यवस्था के आधार पर उनमें जो संकेत मिलते हैं, उनके आधार पर ही आरण्यक और ब्राह्मण ग्रन्थ लिखे गये हैं । इनका जैन धर्म की दृष्टि से पंडितजी ने अध्ययन ही नहीं किया था, किन्तु उपयोगी जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने में उनका भरपूर उपयोग करने में वे हिचकिचाहट का अनुभव नहीं करते थे। शोक-सभा में मान्य हंसा बाबुजी मेरठ की एक घटना सुनाते रहे कि वहां काली चरण जी नाम के एक भाई रहते थे। वे जैन धर्म के अत्यन्त विरोधी थे। किसी मुनि को देखते थे तो पीछा कर लेते थे। एक बार ऐसा हुआ कि मान्य पण्डितजी वहां आये हुए थे। इस कारण वहां के जैनों ने सार्वजनिक सभा रखी। जैन विद्वान् अपने धर्म के विषय में क्या कहते हैं, यह जानने के लिए पं० कालीचरण जी भी उस सभा में आये। जब पंडितजी ने वेदों और पुराणों से जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध की तो वे कहते हुए सुने गये कि “मैने यह सुन रखा था कि काशी के पण्डित विद्वत्ता में बेजोड़ होते हैं। आज मुझे इस बात की प्रतीति हुई कि काशी के ब्राह्मण पण्डित विद्वत्ता में बेजोड़ तो होते ही हैं, काशी निवासी जैन धर्म के पंडित विद्वत्ता में बेजोड़ होते हैं। इससे मेरे मन में जैन धर्म के प्रति जो विद्वेष था, वह निकल गया है और आज मैंने जाना कि परिग्रह एक बला है यह मुझे आज ही समझ में आया" । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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