Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________
उपदेशपदः सुग मरण रायपत्तीकुंडलसुविण तह जम्मनाल णिही । णिहीकुंडल नाम कला जोव्वण इत्थीसु णो राओ ॥९७४॥ विषयामहाग्रंथ इय सुविगाएवि अण्णत्थ रायधूयाइ णवर पुरिसम्मि । गरुजणचिता मंतीणाणे उट्ठी य णामाई ॥९७५।।
भ्यासाहर
नाणे गाथाइयरस्सवि सुविणम्मी तीए रागो मिहात्ति चित्तम्मि । दंसण णाणे वरणं लाभो गमणस्स हरणंति ॥९७६॥
मंतट्रिहरिय घायत्थमंडले तीए पासणं मोक्खा । गमण विवाहो भोगा पिइवह चिइ तित्थगर दिक्खा ॥७७७॥ ७८०।।
सोहम्म भाग चवणं णिवसुय ललियंग कलगह वउत्ति । इयरी रिंदधूया सयंवरागमण बहुगाण ।।९७८।। चउकलपच्छा जोइसविमाणधणुगारुडेसु य विसेसेो। धणु ललियंगे रागो मयणुढाणा ओहरणं च ॥९७९।। जाणाण विजेस विमाणघडण जेऊणमागमेऽहि जिया। पिइचिंता सासण जलणकरण जम्मंतरविभासा ॥९८०॥ ललियंगम्भुवगम जलण भंस ऊढत्ति तेस पण्णवणा । भोगा सरदब्भुवलंभ चित तित्थगरदिक्खा य ।।९८१।। (ईसाणजम्म भोगा चवणं रायसुय कल वयवं । एसा उम्मायती राओ सवणाइणा तत्थ ।।९८२।।) विज्जाहरखिसा माणुसात्ति अणियत्तणे असमगो य । पडिछंदयचंडाली राय णिवणाए वीवाहो ॥९८३।। भागो विज्जाहरसाहहिं णो एक्कसे मिलाणाई। सहिहासा संवेगो अरहागमणं च णिक्खमणं ॥९८४।।
।।७८०।। Pol. बभिद भोग चवणं रायसुय पियंकरोत्ति चक्वित्तं । एयस्सा मंतित्तं अइसयपीईए चितत्ति ॥९८५।। अरिहागमम्मि पुच्छा सिट्ठ संवेग चरणपव्वज्जा। चित्ताभिग्गहपालण सेढी गाणं च सिद्धी य ॥९८६।।
आसि महावणनाम महावणं नंदणंव अइरम्मं । सव्वोउयतरुगणकुसुमसोरभाऊरियदिसोहं ॥१॥ कुसुमासवपाणस

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448