Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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॥७८७।।
र अवहरिया सा जत्तो समागमो अक्खओ होही ॥९८॥ घडियं तक्खणमागासगमणसज्जं विमाणमन्नेण। जोइसियकहियमग्गे चलिओ ललियंगओ तत्थ ॥९९।। पत्तो हिमवंतसिरे पेच्छइ खयरं पसाइउं लग्गं । तीए चलणुप्पलेसु भसलंव सुकोमलरावं ॥१०॥ जहा । मा अवमन्नसु सुंदरि! जम्हा अवहीरिओ तह नाहं । दुव्वारवम्महहओ सहामि खणमवि य जीवेउं ॥१०१।। तो ललियंगा पलयाणलुब्भडं नियमणम्मि वहमाणो । कोवं तं फरुसगिराहि दूरमेवं अहिविखवइ ॥१०२।। रे रे ! न निम्मलकुलो तं होसि जओ परेसिमवहरसि । एवं कलत्तमपवित्तदसणो तं अदट्ठव्वा ।।१०३।। अह 28 सोवि तिव्वरोसो तं पइ उद्धाविओ गहियखग्गो । उग्घडियविजुदंडोव्व नजए जलहरो गयणे ॥१०४।। जाव परक्कमपगरिसपरायणो पहरिउं तयं पतो। ताव धणदंडमुइंडमेस सहसावि कड्वेइ ।।१०५।। काऊण कन्नपज्जतमागयं अंतयस्स जीहाए । अणुरूवं बाणं चोरपाणहरणं विसज्जइ ॥१०६।। तेणेस हिययमम्मे तह विद्धो जह सरेण सह पाणा । निस्सरिया देहाओ तम्मित्तत्तंव वहमाणा ।।१०।। सा पुण तम्मि विमाणे वियसियकमलाणणा समारूढा । आणीया पिउपासे जाओ तेसिं महातोसो ॥१०८।। अह कहवि रयणिसमए सुहं पसुत्ता भुयंगमेण सिरे । डक्का अइउग्गविसेण तक्खणं आउलीहूओ ॥१०९॥ सव्वो संनिहियजणो मंता तंता महासहीओ य। णाणाविहा पउत्ताओ णेव लद्धो गुणलवोवि ।।११०॥ तत्तो गारुडविउणा चउत्थएणं महीवइसएण । मंतेहि य तंतेहि य उवयरिउ सा कया पउणा ॥११॥ एत्थंतरे विवाओ जाओ वीवाहगोयरो तेसि । जम्हा कओवयारा ते सव्वे तीए सजाया ॥११२।। अच्चंताउलियमणो जणगजणो तीए चितए तत्तो। कस्सेसा दिजउ समगमेव जं उठ्ठिया एए ॥११३।। उम्मायंतीए तओ भणिओ जणओ
॥७८७॥

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