Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 384
________________ उपदशपदा कुल माला ॥१४५॥ तह तस्स भयाओ पलायमाणवम्महमहल्लभिल्लस्स । बाणावलिव्व रेहइ करगलिया तत्थ बाणोली | विषयामहाग्रंथ:| ॥१४६।। सुइ संगाउ विगासो मे को अन्नोवि ओ सुई अत्थि । इय मल्लिया नवल्लं मिल्लइ कुसुमुक्करं सहसा ॥१४७।। भ्यासाह करणे शुकतत्थ विरुद्धावि सया जे केई जंतुणों परिवति । ते तस्साइसयाओ धणियं बंधुत्तणं पत्ता ।।१४८।। इय तव्वयणसव शुकीउत्तणओ उल्लसियपमोयपरवसो संतो। ललियंगो नियेयंगे न माइ जलहिव्व उव्वेलो ॥१४९।। निययंगसंगएहिं सव्वेहिं विभू-रा ॥७९॥ सणेहि वणपालं । कुणइ कयत्थं परितोसिएहि अन्नेहिवि धणेहिं ॥१५०।। जस्स समीवे देसंतरेवि गंतुं समीहियं आसि । रूपयुतं सो देवो मज्झ इह टियरस सयमेव आयाओ ।।१५।। इय नवजलहरगहिरेण घोसणं काउमुच्चसद्देणं । सहसा समुट्टिओ चरित्रम्आसणाओ तत्तो महीनाहो ॥१५२।। जस्स दिसाए सो भुवणभूसणो तीए कई पए गंतुं । सणियं पयप्पणामं भूनिहियसिरो समायरइ ।।१५३॥ पडपडहसहसारं नगरे घोसावणं करावेइ। जह जिणचंदस्स पयारविंदवंदणकए सव्वो ॥१५४॥ पउणीहोउ पुरजणो तत्तो संखित्तपरियरो पढमं । गंतुं लग्गो अइबहलपरियणो झत्ति संजाओ ॥१५५।। सकलत्तो सतणूओ सपरलोओ सबंधवो ससुही । सामंतसेन्नपरिवारिओ य तं वणमणुप्पत्तो ॥१५६।। अप्पाणं पिव पुन्नागपरिगयं तह असोगसंजुत्तं । दूरं परिओसपरो तत्थ पविट्ठो महीनाहो ॥१५७॥ मोत्तूण रज्जलीलं चामरछत्ताइयाण चाएण । पत्तो तित्थयरसमीवदेसमुग्गाढविणयपरो ॥१५८। दिट्टो सिंहासणतलनिविट्ठदेहो पयक्खि णेऊण । महिमिलियसिरेण नमंसिओ य थुणिओ तहा एवं ॥१५९।। "त्रिलोकप्राकारप्रतिमपरिगीतव्रतविधेनिधूतागस्त्यागश्च रितशतसाध्यस्य यशसः । भवन्तं सद्ध्यानानलनिहितचेतो भववनं, नमस्यन् सन्नहन्नलमिह जनो जन्महतये ॥१॥ क्व निःशेषश्रेयःप्रचयपरिचेय ॥७९०।

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