Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कोदाहर
या विषयाउपदेशपदः य कहवि विजाहराण लोगेण तीए अणुरागो। ते खिसिउमाढत्ता असमाणवरब्भवगमाओ ॥२०५।। जहा। कत्थेसा महााग्रंथः
भ्यासे शुतियसवहू साहग्गामाणणे पवीणतणू । णिप्पडिमगुणा बहुमाणभायणं खेयरजणस्स ।।२०६॥ कत्थ पुण देवसेणो माणुर समेत्तं नराहिवसुओवि । ता जायमिणं णायं विक्खायं जं जए सयले ॥२०७॥ कह माणससरववरायहंसिया कणयप- IA
णम्उमकयवासा। कह विट्ठाविट्टालियचंचुपुडो नाम धंखुत्ति ।।२०८॥ एवं अणेगहा सा खिसिजंतीवि णो जया चयइ। तं ।।७९४॥ पइ अणुरागं तो जाया चिंता पिउजणस्स ।।२०९।। जह एईए रागो तं पइ तत्साविमीए कि अत्थि । भावप्पेमपरि-5
च्छणमायरओ जुञ्जए काउं ।।२१०।। तो लिहिओ पडिछंदो तीए सविसेससंदरायारो । रयणवईए पुरीए विजाहरदारगेण तओ ॥२११।। काउं देसियरूवं नीओ समयम्मि चित्तकम्मस्स । मीमसाए पयट्टाएऽणेगहा देवसेणस्स ॥२१२।। ढकंतेसु अणेगेसु चित्तफलिहेस मित्तसहिएण । तेण णिभालिज्जतेस तेस् सो तेण उवणीओ ।।२१३॥ दिट्ठो दूरवियासियलोयणजुयलेण तेण तो झति । जाओ सविम्हओ पुच्छियं च कस्सेरिसं रूवं? ॥२१४।। कहियं तेण जहेयं केणावि सकोउगेण दिट्टाए । कहमवि चंडालिए रूवं लिहियं मए लद्ध॥२१५।। तो सव्वंगं आले।इयम्मि रूवम्मि तम्मि सो जाओ तक्खणमक्खित्तमणो सुन्नो व्व गहेण गहिओव्व ॥२१६।। भणियं खणंतराओ जह सेाम ! इमा जहा तए भणिया। तह अन्नहावि हाजत्ति सव्वहा सव्वमालवसु ॥२१७।। णणं न हीणजाई रूवं न घडइ जमन्नहा एयं । णो अमयवल्लरी मारुयम्मि कत्थइ थले हाइ ॥२१८।। अहवा जा वा सा वा होउ इमा एयविरहिओ णाहं। सकेमि जीविउं ता कहेसु एईइ निवसं तं ।।२१९।। एवं भणिए कुमरेण तिव्ववम्महपरायणमणेण । पेच्छंताणं सव्वेसि तेसि सेोऽदसणीहओ।।२२०॥

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