Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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॥ ८०१ ।।
अमरावईपुरीए आसी सिरिसेणणामगो राया । रायन्नचकचूडामणिकिरण छुरियपयपीढो ।। ३१२।। तस्स य देवी देविव्व दिव्वलायन्नपुन्नसव्वंगी । आसि सुजसाभिहाणा कोइलकुलकोमलालावा ।। ३१३|| तीए उयरम्मि जाओ निय च्छई सा तओ वरे सुमिणे । गयवसहसीहमाई पडिबुद्धा भत्तुणो कहइ ।। ३१४ | सोवि य नियबुद्धीए पुत्तं रज्जाचियं फलं कहइ | एवं भवउत्ति परेण पणयजेगेिण सा भइ ।। ३१५ ।। पत्ते पभायसमए निमित्तए अट्ठ सुमिणसत्थण्णू । आकारेइ पणायं अचइ कुसुमाइदाणेण ।। ३१६ ।। पुच्छइ ते सुमिणाणं एएसि किमिह मह फलो हाही । ते मीमंसियसत्था सुविसत्था संगया बेंति ।। ३१७ ।। देवी देव ! नवहं मासाणं किंचि साइरेगाण । पुत्तं जगही हीरंव विक्कमकंतभूचकं ।। ३१८ ।। परिणामे सो चक्की नवनिहित्रिणिओगफलियस यलिच्छो । सालसजक्खसहस्सेहि रक्खिओ मञ्चलोगपहू ।।३१९।। अहवावि भत्तिपणमंततियसबहुसीसकुसुमदामेहि । ओमालिजंतकमा नियमा तित्थाहिवो हाही ।।३२२ ।। संमाणिया सुबहुयं वित्तिपयाणेण तो गया ठाणं । णिययं निमित्तिया ओ जाओ य सुओ स समयम्मि ।। ३२१|| दिनं पियंकरोत्ति य णामं सव्वस्स जं पियं जायं । जायम्मि तम्मि वसुहामंडलमंडणसमाणम्मि ।।३२२|| साय पुण चंदकंताजीवो मंतिस्स सुमइनामस्स । तत्थेव पुरे जाओ पुत्तत्ताए पवित्तगुणो ॥ ३२३ ॥ मइसागर इय नामं तस्स कयं जायणं कमा पत्तो । तो दावि मंतिरायण्णनंदणा पाढपेमपरा || ३२४ ॥ काले किल केवइए वालीणे भूवई य सिरिसेणो । पलियकलियं नियं सिरमादरिसतले निभालेइ || ३२५ ।। तक्खणमेव स चितेति एवमेसेो निओवि जइ देहो । पडिवञ्जई विगारं को नामन्नो धुवा होही ? ॥३२६ ॥ ता सव्वमिणं जलबुब्बुयव्व दिट्ठ तहा विणट्ठे च ।
॥८० १ ॥

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